जयललिता के मार्ग प्रदर्शक और तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम.जी.रामचंद्रन का 1987 में निधन हो गया। तब जय ललिता पार्टी की प्रचार सचिव थीं। एमजीआर के निधन के बाद जयललिता को शव यात्रा में शामिल नहीं होने दिया गया।एमजीआर की पत्नी जानकी राम चंद्रन के समर्थकों को लगा कि शायद उससे जय ललिता एमजीआर की उत्तराधिकारी बन जाएगी। शव के पास जय ललिता की पिटाई भी की गयी। पर जयललिता नहीं मानी। उन्होंने अपने निरंतर प्रयासों के जरिए अपने लिए जगह बनाई। शायद उनकी पिटाई के कारण जन भावाना जय ललिता के साथ हो गयी।
मुख्य मंत्री बनने के बावजूद जानकी , एमजीआर की राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं बन सकीं।जय ललिता न सिर्फ राजनीतिक उत्तराधिकारी बनीं, बल्कि आज मरीना बीच पर एमजीआर स्मारक के पास ही उनका शव भी दफनाया गया। एमजीआर की शव यात्रा के समय के अपमान की कहानी जय ललिता की जुबानी पढ़िए।
” कुछ थोड़े से लोगों ने यह ठान लिया था कि मैं अपने प्यारे नेता के आसपास न रह सकूं।मुझे शुरू से ही अपमानित किया गया।शोक समाचार सुनकर मैं फौरन एमजीआर के आवास पहुंची। पर मुझे घुसने नहीं दिया गया।मैं मकान के सामने और पिछवाड़े की सीढियों की ओर दौड़ती रही।लेकिन सभी दरवाजे बंद कर दिए गए।अंत में मैं तीसरी मंजिल स्थित एमजीआर के कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी तो मुझे बताया गया
कि उनका शव पिछले दरवाजे से निकाल कर राजाजी हाॅल ले जाया गया है। मैं फिर दौड़ी मुख्य फाटक के पास पहुंची।तो देखा कि एक एम्बुलेंस जाने को तैयार खड़ी है।मैं कार में सवार हुई और ड्रायवर से कहा कि एम्बुलेंस के पीछे कार दौड़ाए और किसी दूसरी गाड़ी को बीच में न आने दे।राजा जी हाॅल में मैं अपने नेता के सिरहाने लगातार 13 घंटे तक खड़ी रही। फिर अगले दिन भी वहीं आठ घंटे खड़ी रही। दूसरे दिन सुबह सात या आठ औरतें वहां आईं। वे मेरे पास खड़ी हो गयीं।बार -बार मेरे पैरों को कुचलती रहीं। शरीर में यहां -वहां नाखून गड़ाती रहीं और नोचती रही।चेहरा छोड़ पूरे शरीर पर उन्होंने हमले किए। क्योंकि चेहरे पर कुछ करतीं तो लोगों को नजर आ जाता। फिर पारिवारिक और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शव राजा जी हाॅल के भीतर ले जाया गया तो मुझे वहां नहीं जाने दिया गया। शव गाड़ी पर रखे जाने के बाद मैं उस पर फूल माला चढ़ाना चाहती थी। सैनिक इसमें मेरी मदद कर रहे थे। पर, मैंने देखा कि विधायक डा.के.पी.रामलिंगम गुस्से में मेरी ओर बढ़े आ रहे हैं।तभी नीली कमीज पहने युवक,जो बाद में मुझे बताया गया कि जानकी के छोटे भाई का बेटा और तमिल फिल्म अभिनेता दीपन था, कूद कर तोप गाड़ी पर आ चढ़ा।
उसने मेरे माथे पर प्रहार किया और मुझे धक्का देकर बाहर कर दिया। मैंने फिर चढ़ने की कोशिश की, पर दीपन ने फिर मुझे धकियाया ,पीटा और नीचे गिरा दिया। मेरे पूरे शरीर पर खरोंचें आई। बुरी तरह से घायल हो गयी। दीपन और राम लिंगम की अशिष्ट भाषा और असभ्य बरताव से मैं खींझ गई। अपनी अंतरात्मा के खिलाफ मैंने संस्कार में न जाने का फैसला किया।लौट आई।”
एमजीआर के परिवार में से किसी ने मुझे बाहर रखने का निदेश दिया होगा। मुझ पर हमले के बारे में मैंने राज्यपाल मुख्य सचिव और डीजीपी को सूचित कर दिया है।मैं अन्ना दुरै और एमजीआर के संदेश को लोगों तक ले जाऊंगी। जब अन्ना की मौत हुई तो एमजीआर द्रमुक के केवल कोषाध्यक्ष थे। पार्टी में उनका चौथा स्थान था। अब एमजीआर के गुजरने के बाद पार्टी के प्रोपगंडा सचिव होने के नाते मेरा स्थान पांचवा है।’
(जय ललिता ने एमजीआर के निधन के बाद इंडिया टुडे में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला को अपनी आपबीती बताई थी। वरिष्ठ चिंतक औऱ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने इसे अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किया, मीडिया सरकार ने वहीं से साभार लिया है। )