एक पर्दे की नायिका का राजनीति का महानायिका हो जाना, अपना कोई न हो और फिर लाखों की अम्मा हो जाना, शर्तों पर प्यार पाना और जीते जी भगवान का दर्जा पा जाना, जिद करके ठान लेना और उसे हासिल किए बिना सांस नहीं लेना, जैसे को तैसा की राजनीति करना यह सब कुल मिलाकर जो चरित्र गढ़ा जाता है वो अम्मा यानी जयललिता के रुप में नजर आता है। निश्चित तौर पर जयललिता के नहीं रहने पर दक्षिण की राजनीति में एक खालीपन आएगा जिसका असर आनेवाले सालों में केंद्र की राजनीति पर दूसरे तरीके से दिखेगा।
सितंबर महीने में जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता बीमार हुई और अस्पताल में भर्ती हुईं तब से उनके निधन की खबरें कई बार बाहर आई और तरह तरह की बातें हुईँ। पिछले हफ्ते उनके ठीक होने की खबर के साथ ही उनके चाहने वालों के बीच एक बार फिर जोश देखने को मिला लेकिन रविवार को अचानक पड़े दिल के दौरे ने उनको मौत की नींद सुला दी।
नेता और जनता का रिश्ता देखना हो तो आपको दक्षिण भारत की राजनीति को जमीन पर जाकर समझना होगा। उत्तर भारत में जहां पूरी राजनीति जाति-धर्म और पैसे के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है वहीं दक्षिण भारत में इनके साथ ही नेताओं और पब्लिक का रिश्ता अहम रोल अदा करता है। रुपहले पर्दे से लेकर खुरदरे जीवन में नायक जब वहां की आम जनता की रूह से मुलाकात करता है तो एक नई राजनीति को जन्म देता है। दक्षिण भारत की राजनीति में यह बहुत पहले से होता आया है लेकिन जयललिता का जया से अम्मा बनने का सफर तो एक मिसाल है।
सितंबर 2014 में आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में जयललिता के जेल जाने के बाद से लेकर उनके जेल से बाहर आने तक जिस किस्म से पब्लिक दीवानगी दिखी और तकरीबन १०० लोगों की आत्महत्या ने तो किसी भी हद तक जाने की दीवानगी को साबित किया। उस वक्त को ध्यान में रखकर ही सरकार और पूरे तंत्र ने उनके निधन की खबर को बड़े ही संजीदा तरीके से लोगों के सामने रखा। फिर उनके निधन पर जिस किस्म से लोगों का हुजूम, लोगों की भावनाएं औऱ उनका दर्द सामने आ रहा है उसका सच और मर्म देश के दूसरे हिस्सों में बैठे लोग आसानी से समझ नहीं पाएंगे। दक्षिण भारत में देखा गया है कि नेता और अभिनेता को यहां की जनता दिल से चाहती है और उनको समझने में ज्यादा दिमाग नहीं लगाती। तभी तो दुनिया भर में अपना डंका बजाने वाले बॉलीवुड के अभिनेता न तो अभिनेता के तौर पब्लिक के बीच वो क्रेज पैदा कर पाते हैं और न ही राजनेता के तौर पर । बल्कि यहां तो यह देखा गया है कि बतौर अभिनेता वो जितने लोकप्रिय होते हैं नेता बनने के बाद उनकी लोकप्रियता पर्दे पर और पर्दे के बाहर दोनों जगह कम होती जाती है।
जया के साथ ऐसा नहीं था, जया से पहले उनके राजनीतिक गुरु और मेंटर एमजीआर के साथ भी ऐसा नहीं था। जब एमजीआर पर्दे पर मशहूर थे तो राजनीति में कदम रखा, पार्टी बनाई और लोगों के दिलों पर राज करते करते सत्ता तक पहुंच गए और वहां भी राज किया। जया ने भी बतौर अभिनेत्री 300 से ज्यादा कई भाषाओं की फिल्मों में काम किया, नेशनल अवार्ड समेत फिल्मी दुनिया के तमाम अवार्ड जीते। एमजीआर के साथ जोड़ी बनाई और एक के बाद एक पच्चीस सिल्वर जुबली फिल्में दी। फिर जब राजनीति का रुख किया तो पैंतीस साल के राजनीतिक करियर में 6 बार मुख्यमंत्री बनीं।
दरअसल जयललिता सही मायने में इस देश में महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल रहीं। तमाम विवादों में नाम आऩे के बाद, दो बार जेल जाने के बाद भी अगर पूर्ण बहुमत से जयललिता लगातार दो बार सत्ता में लौटीं तो इसकी वजह निसंस्देह जनता के दिलों तक पहुंच जाना ही रहा होगा, इतने विवादों के बीच ऐसी ताकत जाति-धर्म और पैसे की राजनीति से हासिल नहीं की जा सकती। अपने तमिलनाडु के दौरे पर एकाधिक बार हमने यूं ही अम्मा कैंटीन का रुख किया है औऱ वहां जाकर यह महसूस किया है कि प्यार पाने का रास्ता वाकई पेट से होकर गुजरता है। और हो भी क्यूं नहीं, पेट भरने की ही जद्दोजहद में तो हमारी 95 फीसदी आबादी जुटी हुई है । जब आपको इस महंगाई के दौर में एक रुपये में इडली। पाँच रुपये में सांभर चावल। तीन रुपये में दही चावल, दस रुपए में भरपेट खाना मिले तो आपको भरोसा न हो लेकिन यह अविश्वसनीय सच है।
दक्षिण भारत की राजनीति में जिस लोकप्रियता के शिखर पर अम्मा थीं उसके करीब पहुंचने की उत्तर भारत के राजनेता महज कल्पना कर सकते हैं, और अगर ऐसी लोकप्रियता उत्तर भारत में किसी नेता तो हासिल हो जाए तो वो निस्संदेह देश का प्रधानमंत्री हो जाए। जिस किस्म से आजकल नोटबंदी को सरकार गरीबों के हितों के लिए उठाया गया कदम बता रही है। उस सरकार को जया से यह भी सीखना चाहिए था कि दस रुपए में उन्हें भरपेट खाना कैसे नसीब होगा। आज एक तरफ पूरे तमिलानाडु में आपको रोते बिलखते लोग दिख रहे हैं, ज्यादातर बेहद गरीब लोग हैं ये, एकदम हाशिये के लोग। दूसरी तरफ पूरे देश में बैंकों की कतार में लोग खड़े हैं, जो अभी तक बिना शिकायत किए अपने बेहतर भविष्य का इंतजार कर रहे हैं, भले ही वो इस बात के इंतजार में नहीं हों कि उन्हें कब १० रुपए में भरपेट खाना मिलेगा लेकिन वो इस इंतजार में जरुर होंगे कि उनके हिस्से का खाना कोई दूसरा न खा जाए।
अम्मा आज होती तो न जाने नोटबंदी के इस फैसले को कैसे लेती, वो चली गई लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार के सामने विकल्प छोड़ गई हैं, अम्मा बनने का या फिर करुणानिधि बनने का। अम्मा ऐसे नहीं बनते , बहुत याद आएंगी ‘अम्मा’ । ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे।