नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अब अपराध की श्रेणी से बाहर है। हालांकि कोर्ट ने पशुओं से संबंध बनाने को अभी भी अपराध की श्रेणी में ही रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फैसला देने के बाद धारा 377 एक बार फिर चर्चा में है । लंबे समय से धारा 377 को खत्म करने की मांग की जा रही थी,क्योंकि इस धारा की वजह से एलजीबीटी समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा था।कोर्ट ने भी इस बात को स्वीकारा कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।देश में सभी को अपने तरीके से और समानता के साथ जीने का अधिकार है।सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकों को समाज में अपराधी के रूप में देखना गलत है,अब पूरे समाज को समय के साथ अपने आपको बदलना होगा पुरानी मान्यताओं को छोकर अपनी सोच को भी बदलना होगा।LGBTQ समुदाय के लोगों को भी समाज के अन्य लोंगो की तरह खुलकर जीने का सामान्य अधिकार हैं।
क्या है समलैंगिकता
आंकडों के अनुसार पूरे भारत में समलैंगिको की कुल संख्या लगभग 25 लाख है. मॉर्डन सांइस का कहना है कि ऐसे लोग जो सेम सेक्स वालों की ओर आकर्षित होते हैं ,उन्हें समलैंगिक कहते हैं और समलैंगिकता की प्रवृति पैदाइशी होती है इसमें ऐसे लोगों का कोई कसूर नहीं होता है। दिसंबर 2013 के फैसले को बदलते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के अन्य सदस्य जिनमें जज आरएफ नरिमन, जज एएम खानविलकर,जज धनंजय वाई.चंद्रचूड और जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि हम समाज में हो रहे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए बने कानून में जो भी संसोधन करना होगा उसके लिए हम किसी भी तरह बाध्य नहीं है।
संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरु की थी और 17 जुलाई तक इस फैसला को सुरक्षित रखा गया था। संविधान पीठ ने अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच यौन संबधों का होना अपराध के अंर्तगत नहीं आता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीने का अधिकार हर इंसान का मानवीय अधिकार होता है,इस अधिकार के आगे सारे अधिकार विचाराधीन हैं. एक सामान्य व्यक्ति की तरह LGBTQ के लोगों को भी समाज में पूरा सम्मान मिलना चाहिए।