लखनऊ। उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में जिस तरह से बुआ-बबुआ ने भाजपा के मोदी लहर को पस्त किया उसके बाद से लगने लगा है कि लोकसभा 2019 की राह भाजपा के लिए आसान नहीं होगी। बुआ और बबुआ ने मिलकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विश्वसनीय सीट गोरखपुर तक छीन ली। फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव में तो नतीजे और भी चौंकाने वाले थे। बसपा प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाथ मिलाकर पीएम मोदी और अमित शाह के विजय रथ को रोक दिया। उत्तर प्रदेश के तीनों सीटों पर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को हार मिली। इस जीत ने मायावती को उत्साह से भर दिया है। जीत के उत्साह से भरी बहनजी अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए 2019 में खुद मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं। एक टीवी चैनल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि मायावती साल 2019 में उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर या बिजनौर से लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं।
मायावती 2004 में सांसद चुनी गई थीं, उस वक्त भी उन्होंने अंबेडकरनगर से ही चुनाव लड़ा था। ऐसे में अपने कार्यकर्ताओं में जीत का जज्बा भरने के लिए बहनजी एक बार फिर से 2019 के महासंग्राम में खुद चुनाव अखाड़े में उतर सकती हैं। आपको बता दें कि इस बारे में पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि या घोषणा नहीं की गई है और न ही पार्टी के भीतर इसे लेकर कोई फैसला हुआ है कि मायावती आखिर किस सीट से लड़ेगी, लेकिन इतनी खबर जरूर आ रही है कि वह अंबेडकरनगर या बिजनौर में से किसी एक सीट पर चुनाव लड़ सकती हैं।
2014 में भाजपा ने छीनी थी अंबेडकरनगर सीट
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर लोकसभा सीट ने साल 2004 में मायवाती को संसद तक पहुंचाया था, लेकिन साल 2014 में बसपा के गढ़ माने जाने वाले इस लोकसभा सीट को भाजपा ने बसपा के हाथों से छीन लिया है। मायावती को 2014 में इस सीट से हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें से सीट भाजपा के हाथों गंवानी पड़ी थी। चौंकाने वाली बात तो ये थी कि अंबेडकरनगर सीट पर बीजेपी पहले कभी नहीं जीती थी, लेकिन 2014 में हालात बदल गए और बीजेपी नेता हरिओम पांडेय यहां से जीतने में सफल रहे थे।
वोटों के गणित पर एक नजर
अंबेडकर नगर सीट पर वोटों के गणित की बात करें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा ओबीसी और दलित है। इस लोकसभा सीट पर करीब 25% एससी हैं, जिनकी संख्या करीब 6 लाख है। वहीं इसके अलावा मुस्लिम, यादव, कुर्मी, ब्राह्मण और बनिया का प्रभाव इस सीट पर सबसे ज्यादा है। भाजपा ने इसी वोटबैंक में सेंध लगाने में सफलता हासिल की। 21014 में भाजपा ने ओबीसी, केवट, राजभर मतदाताओं को अपनी ओर झुकाने में सफलता हासिल की थी। पीएम मोदी को ओबीसी का चेहरा बताकर भाजपा ने उन्हें भी अपने पाले में कर लिया।
क्या कहता है बिजनौर लोकसभा सीट का गणित
अंबेडकरनगर के अलावा बिजनौर लोकसभा सीट से भी मायावती के अगले लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा गरम है।साल 2014 में जहां कुंवर भरतेंद्र सिंह ने सपा प्रत्याशी शाहनवाज राणा को 2 लाख 5 हजार 777 मतों से हराकर जीत हासिल की थी। इस सीट पर बसपा के प्रत्याशी मलूक नागर तीसरे नंबर पर रहे थे। खासबात ये है कि बिजनौर लोकसभा क्षेत्र मुजफ्फरनगर, मेरठ और से जुड़ा हुआ है। इस सीट पर जाट, गुर्जर, मुस्लिम का वर्चस्व है। 2014 के चुनाव में सपा-बसपा ने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए, जिससे मुस्लिम वोट बंट गए। मुस्लिम वोटों के बंटवारे के चलते भाजपा बाजी मार ले गई थी, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार अखिलेश और मायावती गठबंधन के जरिए भाजपा को घेरने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में भाजपा के लिए यहां जीत हासिल करना आसान नहीं होगा।
क्या होगा सपा-बसपा का गठबंधन
पहले 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा से मिली चुनौती के बाद सपा और बसपा के पास हाथ मिलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हालांकि दोनों ही पार्टियों के बीच सीटों को लेकर बात अटक सकती है। माना जा रहा है कि जहां मायावती सीटों को लेकर अपनी शर्तें रख सकती है तो वहीं सपा अखिलेश पर बाजी खेल सकते हैं। भीतर खेमे से खबर ये भी आ रही है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच जल्द ही गठबंधन का ऐलान हो सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि मायावती ज्यादा सीटों की अपनी मांग पर समझौता कर सकती है, जबकि सपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। सपा ने इसके लिए पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को अधिकृत किया हैष। वही बसपा की तरफ से मायावती ही इस बारे में फैसला करेगी। दरअसल सपा और बसपा जल्द ही लोकसभा चुनाव होने का अंदेशा जता चुके हैं। ऐसे में वो अपने गठबंधन में देर नहीं करना चाहती है। माना जा रहा है कि अपनी कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को संभावित गठबंधन के लिए फैसला लेने का अधिकार सौंपा जा सकता है कि जबकि बसपा की तरफ से मायावती ही गठबंधन का फैसला करेंगी। सपा-बसपा के साथ जिस तरह से आरएलडी की नजदीकी बढ़ रही है उससे अंदेशा ये भी लगाया जा रहा है कि इस गठबंधन में वो भी शामिल हो सकती है। हालांकि अजित सिंह से अखिलेश की दोस्ती तो जगजाहिर है। दोनों य ुवा सोच के नेता है, लेकिन मायावती के साथ बात बनेगी की नहीं ये आने वाले वक्त में ही तय हो सकेगा। लेकिन एक बात जो बसपा प्रमउक मायावती ने साफ कर दी है वो ये कि वो किसी भी शर्त पर सीटों के बंटबारे में समझौता नहीं करेगी। उन्होंने अपने लिए सीटों का चयन कर लिया है। वो उन सीटों के साथ किसी कीमत पर समझौता नहीं करेंगी, जिन सीटों पर बसपा उम्मीदवारों से भाजपा के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी थी।