आम आदमी पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता संजय सिंह को राज्यसभा का टिकट थमा दिया।संजय सिंह के साथ नारायण दास गुप्ता और सुशील गुप्ता को राज्यसभा के लिए चुना गया। पार्टी के संकटमोचन को उनकी वफादारी का इनाम मिल गया। केजरीवाल के करीबी और मनीष सिसोदिया के बाद पार्टी के नबंर तीन की हैसियत वाले नेता संजय सिंह के नाम के ऐलान के बाद से आम में फूट पड़ गई, लेकिन जनलोकपाल आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) बनने के बाद संजय सिंह लगातार अरविंद केजरीवाल के साथ हैं। संजय सिंह लगातार तीन चुनावों में कैंपेन कमेटी के इंचार्ज रहे, हालांकि उन्होंने एक बार भी चुनाव नहीं लड़ा। संजय सिंह पार्टी के ‘संकटमोचक’ के तौर पर उभरे।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के रहने वाले संजय सिंह 10वीं में एक बार फेल हो गए थे, लेकिन राजनीतिक में वो पास हो गए। उन्होंने समाजसेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उनके दोस्तों के मुताबिक सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए संजय सिंह साइकिल से कई-कई किलोमीटर साइकिल यात्रा करते थे। वो 16 सालों तक फुटपाथ पर रहने वाले लोगों और फेरीवालों के लिए काम करते रहे। साल 2007 में संजय सिंह ने कोका कोला के खिलाफ आंदोलन कर लाइम लाइट में आ गए। इसी दौरान उनकी केजरीवाल से मुलाकात हुई। संजय सिंह हमेशा से राजनीति में फुलटाइमर होना चाहते थे। संजय सिंह ने शुरू से केजरीवाल को अपना नेता मानते रहे है। इंडिया अंगेंस्ट करप्शन के दौरान अन्ना हजारे से जुड़े, लेकिन आम आदमी पार्टी के गठन के बाद अरविंद केजरीवाल का हाथ पकड़ लिया और आज उन्हें उनकी वफादारी का इनाम मिल गया। ये बातें आप विस्तार में वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा की किताब रामलीला मैदान में पढ़ सकते हैं। राज्यसभा ऐसे ही नहीं पहुँचते …संजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल के इशारे पर सुल्तानपुर से अमेठी तक फ़साद करवा डाला था . और यह बात संजय सिंह ने ख़ुद क़बूल किया.. पढ़िए रामलीला मैदान