लालू के घर की बहु भी अब पोस्टरों में,ऑल इज वेल का दावा
ये पहली बार देखा गया कि राजद पार्टी की स्थापना वर्षगांठ धूमधाम से मनाया जा रहा हो और पार्टी के नायक-संस्थापक ही आयोजन के मंच पर मौजूद न हो। हलाकि ये कानूनी मजबूरी है क्योंकि बेल इस शर्त पर भी मिली है कि वो किसी राजनितिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते। 5 जुलाई को पटना में बड़े स्तर पर जो आयोजन किया गया उसमे दिखाया गया कि पार्टी एक जुट है और कहने की कोशिश की है कि ऑल इज वेल। इस कार्यक्रम के जरिये यह भी दिखाने की कोशिश की गयी कि पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ वो विपक्षियों की चाल और साजिश भर थी।
यूँ तो आयोजन के मंच पर दोनों भाई तेजप्रताप और तेजस्वी साथ-साथ बैठे थे पर इतने भर से दल की एकजुटता साबित हो जाये मुश्किल है। हर बार एक बड़े बवाल के बाद पैचअप की कोशिश की जाती है और फिर वही ढाक के तीन पात। ये क्या गारंटी है कि अब पिछले अध्याय की तरह फिर कोई नया चैप्टर नहीं जुड़ जायेगा?
पार्टी 2019 की तैयारी में लग गयी है परन्तु उसे कई मोर्चों पर एकजुटता पर काम करना पड़ेगा। सबसे पहले तो वर्षगांठ वाली मंच की तस्वीरों पर गौर किया जाये तो उनका विश्लेषण भी जरुरी बन जाता है।
सबसे पहले तो इस बात की चर्चा होनी चाहिए कि लालू के आभाव में पार्टी को कौन चलाएगा?कौन सर्वसम्मत फैसले को कार्यान्वित कराएगा?पार्टी की बागडोर पर क्या कोई विवाद नहीं होगा? परिवार के अलावा पार्टी के सभी लोग वर्तमान व्यवस्था से संतुष्ट रह पाएंगे?
अब इन सवालों के जबाब,ये तो तय है कि लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी की कमान छोटे बेटे तेजस्वी के पास ही रहेगी,सारे फैसले भी तेजस्वी ही लेंगे। ऐसे में सवाल ये उठता है अगर इसमें सबकी सहमति है तो फिर तेजप्रताप अपने तेवर से हेकड़ी बार-बार क्यों दिखाते हैं?तेजस्वी के सामने पार्टी में कई सारे वरिष्ठ अनुभवी नेता है। मसलन शिवानंद तिवारी,डॉ वशिष्ठ नारायण,अब्दुलबारी सिद्दीकी,रामचंद्र पूर्वे सहित बहुत सारे लोग हैं लेकिन परिवारवाद के इस शिकंजे को एक तोहफा मान सभी क्यों चुप रह जाते हैं?कहीं ये दिखावटी स्वीकृति तो नहीं?आन्तरिक असहयोग तो नहीं पार्टी को झेलना पड़ रहा है?इन सारे सवालों का जबाब ढूंढेंगे तो कहीं न कहीं ये देखने को मिल जायेगा कि इनदिनों राजद वनमेन पार्टी बनकर रहगयी है जहाँ सभी खुश नहीं हैं। वरना कई सारे वरिष्ठ नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी देखने को मिलती,ऐसे में दूसरे अन्य लोगों को उपेक्षा भाव भी नहीं झेलना पड़ता। ये एक उदहारण है कि तेजप्रताप को महसूस हुआ और उसने अपना दर्द भी कई बार साझा किया। ये अलग बात है कि हरबार मनाकर या दबाब बना कर झगडे पर पानी डाला गया।परिवार से बाहर के लोग विरोध की आवाज भी नहीं उठा सकते।
अब एक नयी तस्वीर की ब्याख्या जरूरी है,वो तस्वीर है घर की एक नयी सदस्या का। इस बार के कार्यक्रम के पोस्टरों में एक नया चेहरा शामिल हुआ है वो है घर की नयी नवेली बहु ऐश्वर्या यादव। यूँ तो ऐश्वर्या के भी खून में सियासी डी एन ए मौजूद है लेकिन अभी किसी ने कयास नहीं लगाया होगा कि राजद का एक चेहरा वो भी बनेगी। लेकिन अब जब ऐसा हो गया तो वजह भी कुछ है,मानना पड़ेगा। लालू परिवार की जो केमिस्ट्री है उसमे ऐश्वर्या नमक एलिमेंट को यूँ ही नहीं शामिल किया गया है। ये तो तय है कि तेजप्रताप सियासत में छोटे भाई तेजस्वी के कंधे को भी नहीं छू पाए और हर मोर्चे पर अपना अस्त्र फेंक कर फंस गए,ऐसे में यह माना जा रहा है कि आनेवाले समय में ऐश्वर्या तेजप्रताप की जगह लेकर वो सबकुछ करने की कोशिश करेगी जिसको उसके पति तेजप्रताप नहीं कर पाए। ऐश्वर्या की सोच निश्चित तौर पर एक मजबूत विचारोंवाली होगी क्योंकि पहले से सियासी मैदान के दांव-पेंच को देखती आई है और जिस तरह से उसकी पढ़ाई लिखाई पटना और दिल्ली से हुयी है वो अपने नए परिवार के बाकि सदस्यों से ज्यादा अव्वल करके दिखा सकती है।
अब देखना ये है कि पोस्टर में ऐश्वर्या का अवतार महज संजोग भर है या फिर ऐश्वर्या की सहमति और रूचि भी है। अगर ऐश्वर्या ने अपनी पहल पर पोस्टर में प्रवेश किया है तो आनेवाले दिनों में इसका असर भी राजद की सियासत पर पड़ेगा और तेजप्रताप की जगह ऐश्वर्या मैदान में दिखेगी।
अब इस प्रकरण के बाद पूरी पार्टी की शक्ति तीन जगह बंटती दिख रही है जहाँ खींवतान भी संभव है। दो ध्रुव एक तेजस्वी और दूसरी ऐश्वर्या तो घर में ही मौजूद हैं,तीसरा ध्रुव होगा दल के बाकि नेतागण।
अब ऐसे में देखना ये है कि आनेवाले दिनों में राजद की दीवार और ज्यादा मजबूत होकर विपक्ष को करारा जबाब होगा या फिर कमजोर दीवार प्रतिद्वंदियों के लिए सहूलियतों का दरवाजा खोल देगी?