इस साल का राजनीतिक ड्रामा निस्संदेह समाजवादी पार्टी के नाम ही रहा। साल के लगभग ६ महीने इस पार्टी ने अपने पारिवारिक विवाद को देश का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना कर रखा। इस छ महीने में किसका कितना नफा नुकसान हुआ यह तो साफ तौर पर २०१७ के विधानसभा चुनाव में ही स्पष्ट होगा लेकिन निश्चित रुप से अखिलेश यादव एक साफ और ईमानदारी छवि के मजबूत नेता के तौर पर अपनी साख बनाने में सफल हुए हैँ। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम और चाचा शिवपाल यादव ने जब अखिलेश यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया तो महज २४ घंटे में ही अपनी ताकत और मुखिया मुलायम को उनकी बुजुर्गियत के साथ शिवपाल यादव की पार्टी पर ढीली होती पकड़ का साबित करते हुए अखिलेश अपने सलाहकार चाचा रामगोपाल यादव के साथ पार्टी में वापस आ गए।
तेजी से बदलते घटनाक्रम में लंदन में बैठे अमर सिंह ने जब अखिलेश को कठघरे में खड़ा करते हुए तंज कसा तो उनको यह उम्मीद नहीं रही होगी कि अखिलेश इतने ताकतवर होकर उभरेंगे। जिस समाजवादी पार्टी को अमर सिंह मुलायम सिंह की जागीर समझते रहे वो अब उनके बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश की विरासत हो गई है। अखिलेश ने नेताजी पिताजी से शर्त रख दी है कि अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। इतना ही अमर सिंह के धुर विरोधी आजम खान अखिलेश और मुलायम सिंह को एक कराने में अहम किरदार बनकर उभरे।
रामगोपाल यादव द्वारा 1 जनवरी को बुलाया गया पार्टी का आपातकालीन राष्ट्रीय अधिवेशन अब चुनावी सभा में तब्दील हो जाएगा इसके कयास लगाए जा रहे हैं। इसमें खुद मुलायम सिंह यादव भी हिस्सा लेंगे। इस अधिवेशन को मुलायम के अलावा अखिलेश और आजम खान के भी संबोधित करने की संभावना है और निश्चित तौर इस अधिवेशन में शिवपाल यादव के पर कतरे जाएंगे और अमर सिंह को पार्टी से एक बार फिर बेदखल किया जा सकता है।