ज्युडिशियरी और सरकार आमने सामने दिख रहे हैं। जजों की बहाली के मुद्दे पर शनिवार को एक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश और कानून मंत्री के बीच तीखी बयानबाजी हुई। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस. ठाकुर ने कहा कि हाईकोर्ट्स में जजों की करीब 500 सीटें खाली हैं। कोर्ट रूम खाली पड़े हैं।
इसके बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इमरजेंसी का वक्त याद करिए। तब हाईकोर्ट ने हिम्मत दिखाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने देश को मायूस किया था। वहीं, शाम को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा- ज्युडिशियरी समेत हर किसी को लक्ष्मण रेखा में रहना चाहिए। इस पर जस्टिस जेएस. खेहर ने कहा- संविधान के दायरे में रहकर ज्युडिशियरी ने हमेशा लक्ष्मण रेखा का पालन किया है।
संसद का कानून खारिज करने का अधिकार
चीफ जस्टिस ठाकुर ने कहा कि ज्युडिशियरी को ये भी अधिकार है कि वो संसद के ऐसे किसी भी कानून को खारिज कर दे जो संविधान के खिलाफ हो। उसका काम ये भी देखना है कि सरकार का कोई भी हिस्सा लक्ष्मण रेखा पार ना करे। ज्युडिशियरी को अपनी हद में रहकर बाकी चीजों पर नजर रखने का हक है। जस्टिस ठाकुर यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि ज्यूडिशियरी ट्रिब्यूनल बनाने के खिलाफ नहीं है क्योंकि इससे उसका बोझ कुछ हद तक कम होगा। लेकिन दिक्कत ये है कि वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है। हालात ये हैं कि सुप्रीम कोर्ट का कोई रिटायर्ड जज ट्रिब्यूनल में जाना नहीं चाहता। मैं भी अपने रिटायर्ड साथियों को वहां भेजने में दुख महसूस करता हूं। सरकार सुविधाएं देने को तैयार नहीं है।
कानून मंत्री ने इमरजेंसी की याद दिलाई
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कोर्ट डायरेक्टिव्स दे सकते हैं लेकिन देश चलाने का जिम्मा उन्हीं को मिलना चाहिए जिन्हें इसके लिए चुना गया है। प्रसाद ने यहां तक कह डाला कि परेशानियां दूर हो सकती हैं अगर हर किसी को अपना काम सही तरीके से मालूम हो। सुप्रीम कोर्ट पर प्रहार करते हुए प्रसाद ने कहा कि इमरजेंसी का वक्त याद कीजिए। उस दौरान हाईकोर्ट ने हिम्मत दिखाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने देश को मायूस किया। प्रसाद ने कहा- दुनियाभर में भारतीय संविधान के प्रति सम्मान है। ये इसलिए है क्योंकि हमारा संविधान गरीब, अमीर या बड़ों में फर्क नहीं करता। अगर लोगों को लगता है तो वो पावर में रहने वाले किसी भी नेता या पार्टी को हटा सकते हैं।
कोर्ट और सरकार में टकराव बढ़ने की मुख्य वजह
जजों के अप्वॉइंटमेंट के लिए कॉलेजियम से भेजे गए 43 नाम लौटाने के केन्द्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने 18 नवंबर को नामंजूर कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार इन नामों पर 3 हफ्ते के अंदर दोबारा विचार करे। कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में जजों की भर्ती के लिए 77 नामों की लिस्ट केंद्र के पास भेजी थी। केन्द्र ने इनमें से 34 नाम मंजूर करके 43 नाम लौटा दिए थे। सरकार ने कहा था कि जिन जजों के नामों को लौटाया गया है उनके खिलाफ गंभीर किस्म की शिकायतें थीं।
28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि कॉलेजियम द्वारा 9 महीने पहले ही जजों के नामों को मंजूर किए जाने के बाद भी इनका अप्वॉइंटमेंट नहीं हो सका है। उस दौरान कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा था- क्या आप कोर्ट और जजों को बंद कर देना चाहते हैं?
जजों की कमी को आधार बनाते हुए सरकार और न्यायपालिका की कड़वाहट के बीच चीफ जस्टिस एक बार पीएम मोदी की मौजूदगी में इसी मुद्दे पर काफी भावुक हो गए थे।