काले धन पर चोट तो अच्छी बात है, लेकिन जब तक काले मन पर चोट नहीं होगी, तब तक इस देश का कुछ नहीं हो सकता। बात कहने-सुनने में ज़रा कड़वी है, लेकिन हिन्दुस्तान इसलिए आगे नहीं बढ़ता, क्योंकि हम आम हिन्दुस्तानियों के पास इसे आगे ले जाने की सोच है ही नहीं। हम सभी अपने-अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की जड़ें काटने में लगे रहते हैं। नतीजा यह होता है कि दूसरे हमारी जड़ काटते हैं और हम दूसरों की जड़ काटते हैं। इस प्रकार हम सभी मिलकर देश की ही जड़ खोद डालते हैं।
अपने लंबे जीवन-अनुभव के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस देश के लोग इतने स्वार्थी और संकीर्ण हैं कि
- अपने संपर्क के लोगों में वे सिर्फ़ अपने बाल-बच्चों को ही ख़ुद से आगे बढ़ते देख सकते हैं।
बाल-बच्चों की अच्छाइयों को वे ज़रूरत से ज़्यादा प्रचारित करते हैं, परंतु उनकी बुराइयों को बिल्कुल छिपा लेना चाहते हैं। इसका उदाहरण यह हो सकता है कि अगर दूसरे का बेटा किसी लड़की से बलात्कार कर ले, तो उसके लिए वे फांसी की मांग करेंगे, लेकिन अगर अपना बेटा ऐसा ही कुकृत्य कर डाले, तो उसे छिपाने या बचाने के लिए वे कोई भी दलील गढ़ सकते हैं, किसी भी हद तक जा सकते हैं। मसलन सच्चाई को मानेंगे ही नहीं या पीड़ित लड़की पर ही उसे फांसने का आरोप लगा देंगे या बालिग बेटे को नाबालिग साबित करने में जुट जाएंगे या इसमें साज़िश का कोई एंगल ढूंढ़ लेंगे या इसे जातीय अथवा सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करेंगे या पीड़ित को ख़रीद लेने की कोशिश करेंगे या उसे डराकर चुप करा देने की कोशिश करेंगे या किसी किस्म का कम्प्रोमाइज हो जाए, इसकी कोशिश करेंगे या महंगे वकीलों के सहारे उसका रक्षा-कवच तैयार करने में जुट जाएंगे। इसी तरह अगर दूसरे की बेटी घर से भाग जाए तो उसे तत्काल वेश्या घोषित कर देंगे, लेकिन अपनी बेटी के घर से भाग जाने पर उसके अपहरण की झूठी शिकायत थाने में दर्ज कराएंगे, अपनी नाक बचाने के लिए कुछ बेगुनाहों को फंसा देंगे और झूठ को सच साबित करने के लिए देश के कानून का अंतिम दम तक दुरुपयोग करेंगे।
अपने बाल-बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए वे कोई भी अनैतिक कार्य कर सकते हैं। इसका मतलब है कि दूसरों का हक मारने से उन्हें कोई गुरेज नहीं।
- भाई-भतीजों समेत अपने अन्य नाते-रिश्तेदारों, चमचे-चाटुकारों और दासों-रखैलों को वे तभी तक आगे बढ़ते देख सकते हैं, जब तक वे उनके नियंत्रण में रहें और उनके ख़ुद से आगे बढ़ जाने का ख़तरा न हो।
–अपनी छांव में अपने से नीचे रहने तक इन्हें आगे बढ़ाने के लिए वे बड़े उदार होते हैं और इसके लिए कोई भी अनैतिक कार्य कर सकते हैं
–परंतु जैसे ही ये उनसे आगे बढ़ने लगते हैं, उनकी अनुदारता सामने आने लगती है और वे छोटापन दिखाने पर उतर आते हैं। फिर उन्हें और बढ़ने से रोकने के लिए वे कोई भी अनैतिक कार्य कर सकते हैं।
अगर किसी भाई-भतीजे या नाते-रिश्तेदार को गोद ले लिया हो और उसे अपने बच्चे की तरह पाला और बड़ा किया हो, फिर उसके लिए पहली कंडीशन लागू होगी।
- ऐसे सक्षम, स्वाभिमानी, प्रतिभाशाली, ईमानदार, चरित्रवान लोग उन्हें तनिक भी नहीं सुहाते, जो खरी-खरी बातें करते हैं, चापलूसी नहीं करते, अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं और समझौते नहीं करते- इनका ज़रा भी आगे बढ़ना उन्हें शूल की तरह चुभता है।
–वे इनके बारे में पल-पल की ख़बर रखने की कोशिशें करते हैं, लेकिन चर्चा चलने पर अनभिज्ञ-अनजान बनने का नाटक करते हैं।
–वे इनसे भीतर-भीतर जलते हैं, उन्हें ख़तरे के तौर पर देखते हैं, लेकिन बाहर-बाहर वे इन्हें कोई भी चुनौती मानने से इनकार करते हैं।
–कूटनीतिज्ञ/शातिर लोग इनकी तारीफ़ करने से बचना चाहते हैं और साधारण बुद्धि वाले अथवा हल्के लोग बात-बात पर इनकी आलोचना करते हैं।
इन्हें भी आगे बढ़ने से रोकने के लिए वे हर अनैतिक काम कर सकते हैं।
- ऐसे सक्षम, स्वाभिमानी, प्रतिाभाशाली, ईमानदार, चरित्रवान लोग जब उनकी तमाम अनिच्छाओं, दवेष-ईर्ष्या और साज़िशों के बावजूद आगे बढ़ जाते हैं तो
–कुछ लोग मन मारकर उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और दूर खड़े रहते हैं,
–कुछ लोग लोभ-लालच में आधे-अधूरे मन से उनके साथ हो लेते हैं,
–कुछ लोग कुंठा के शिकार हो जाते हैं और डिप्रेशन में जीने लगते हैं,
–कुछ लोग ख़ामोश हो जाते हैं और उनकी चर्चा से कतराकर निकल लेने की कोशिशें करते हैं
–वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो उन्हें नीचा दिखाने अथवा नीचे गिराने के मौके ढ़ूंढ़ने में लगातार जुटे रहते हैं।
- अगर किसी व्यक्ति से उनकी उम्मीदें जुड़ी हों या किसी किस्म का स्वार्थ सिद्ध हो रहा हो या होने की संभावना हो, तो उसका आगे बढ़ना नहीं अखरता है, वे उसके हर ग़लत-सही में साथ देते रहते हैं, लेकिन जैसे ही उम्मीदें टूटती हैं या स्वार्थ-सिद्धि में कमी रह जाती है या अपेक्षित भाव/अटेंशन मिलना बंद/कम हो जाता है, वैसे ही टेंशन शुरू हो जाती है, उसका सही दिखना बंद हो जाता है, उसका ग़लत दिखना शुरू हो जाता है, दुआओं का कोष ख़त्म हो जाता है, ईर्ष्या के भंडार में दिन दूनी रात चौगूनी वृद्धि होने लगती है, साज़िशें रचने में मन तत्पर होने लगता है।
पहले उसका साथ देने के लिए वे कोई भी अनैतिक कार्य कर सकते थे। अब उसके विरोध में कोई भी अनैतिक कार्य कर सकते हैं।
- अगर किसी व्यक्ति को पहले ही उन्होंने ख़ुद से श्रेष्ठ मान रखा है, तो उसके आगे बढ़ने से उन्हें ईर्ष्या नहीं होती। ईर्ष्या उनके आगे बढ़ने से होती है जो उनकी नज़र में बराबर होते हैं या कम होते हैं। जैसे अगर किसी की ज़मींदारी में काम कर रहे हैं, तो ज़मींदार के बेटे के आगे बढ़ने से परेशानी नहीं होगी, परेशानी होगी अपने साथ के मज़दूर के बेटे के आगे बढ़ने से।
- जब कोई उन्हें प्यार से अपना बनाना चाहता है, तो वे अकड़ में रहते हैं और जब कोई उन्हें डराता-धमकाता अथवा उनपर बल-प्रयोग करता है, तब वे आत्मसमर्पण कर देते हैं। जो प्यार से उन्हें अपना बनाना चाहता है, उसके आगे बढ़ने से उन्हें समस्या बनी रहती है, लेकिन जो उन्हें डरा-धमकाकर रखता है, उसके आगे बढ़ने से उन्हें कोई समस्या नहीं होती।
निष्कर्ष-
इस देश में नैतिकता का इतना ढोल पीटे जाने के बावजूद कदम-कदम पर अनैतिकता इसीलिए हावी है कि यहां के लोग कुछ लोगों को आगे बढ़ाने के लिए और कुछ लोगों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए तमाम तरह के अनैतिक प्रयोगों में लिप्त हैं।
डिस्क्लेमर-
–इस परिणाम के इक्का-दुक्का अपवाद हो सकते हैं, लेकिन आम तौर पर ये अकाट्य हैं।
–यह परिणाम गांव के अति-ग़रीब से लेकर देश के शीर्षस्थ लोगों तक- सबपर लागू होता है।