जब से राहुल गांधी की यूपी की चुनावी किसान यात्रा शुरु होने की जानकारी सामने आई थी, उत्सुकता बनी हुई थी। देश के लगभग सभी अखबारों और टीवी चैनलों ने इस यात्रा को महायात्रा नाम दिया, उस महायात्रा की परिणति आज खाट पर सवार होकर हुई। केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने का श्रेय जहां तहां अपनी झोली में डालने वाले प्रशांत किशोर को बिहार में महागठबंधन की जीत दिलाने का श्रेय भी मीडिया ने दे डाला। अब प्रशांत किशोर की साख उत्तर प्रदेश में दांव पर लगी है। प्रशांत की टीम ने ही राहुल गांधी की इस चुनावी रैली को महायात्रा नाम दिया और भेड़चाल में बहने वाली मीडिया ने उसे जगह दी। मोदी की चाय पर चर्चा कराने के बाद प्रशांत अब राहुल की खाट पर चर्चा कराना चाहते थे। कुछ लोगों ने इस खाट पर चर्चा कहा तो कुछ ने खाट पंचायत। चूंकि खाट पंचायत सुनने में हरियाणा के विवादास्पद खाप पंचायत की स्वरध्वनि देता है इसलिए पीके और उनकी टीम ने इससे गुरेज करना बेहतर समझा होगा।
यहां हम कांग्रेस और कांग्रेस के कर्णधार राहुल गांधी के लिए रणनीति में इस्तेमाल दो शब्दों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहते हैं। हिंदू और हिंदुस्थानी संस्कार में महायात्रा, अंतिम यात्रा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। जहां तक हमें लगता है पीके की टीम ने महायात्रा शब्द महारैली की कॉापी करते हुए की होगी। उसके बाद यह खाट का इस्तेमाल तो गजब कर गया। महायात्रा तो खाट पर ही होती है। हमें आश्चर्य है कि पीके ने क्या सोचकर पहले महायात्रा का उल्लेख किया और अब कैसे कांग्रेस आलाकमान ने महायात्रा खाट पर करने की रजामंदी दे दी। शब्दों और क्रियाओँ पर ऐसे मामले में सतर्कता बरती जानी चाहिए । किसानों का दर्द सुनने के लिए खाट-पंचायत जैसी कल्पना तो ठीक थी लेकिन अव्वल इसे महायात्रा से जोड़ा जाना ठीक नहीं था और फिर खाट का जिस तरीके से इस्तेमाल हुआ उसे रणनीतिक तौर पर कतई ठीक नहीं ठहराया जा सकता।
महायात्रा की खाट का क्या हुआ आज पूरे देश ने देखा। यूपी के रुद्रपुर से शुरु हई राहुल गांधी की इस यात्रा की पहली ही सभा के बाद अजीब नजारा देखने को मिला। दरअसल राहुल की सभा के लिए अकेले रुद्रपुर के लिए दिल्ली से 2 हजार खाटें मंगवाई गई थीं। स्पीच खत्म करने के बाद राहुल के रवाना होते ही खाट लूटने के लिए अफरातफरी मच गई। कोई सिर पर खाट लेकर भागा तो कोई उसके पाए तोड़कर ले गया। इस खाट को उठाने के िलए चार लोगों की जरुरत भी नहीं पड़ी, जो जैसा लूट पाया , ले भागा, कई गांव वाले खाट को सिर पर उठाकर भागते नजर आए। खटिया के लिए छीना-झपटी भी हुई। कुछ बुजुर्ग जब खाट ले जाने लगे तो लड़कों ने उनसे खाट छीन ली। धक्कामुक्की के बीच कई लोग खाट को सीने से चिपकाए दौड़ रहे थे। यही नहीं, कुछ लोगों को जब खाट ले जाने में परेशानी हुई तो तो उन्होंने उसके पाए तोड़ दिए और रस्सी लपेटकर ले गए। कुछ लोग सिर पर तीन-तीन खाट लादे घूम रहे थे। खाट लूटने में महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। लोगों ने वहां रखे 50 किलो लड्डू भी लूट लिए। मीडिया और कांग्रेस के वर्कर्स के लिए मंगवाई गईं पानी की सैकड़ों बोतलें भी लूट ली गईं या तोड़ दी गईं।
नजारा ऐसा था कि मानो ये लोग यहां खाटपंचायत में हिस्सा लेने नहीं खाट खड़ी करने आए हों। राहुल गांधी पूरे उत्तर प्रदेश में २५०० किलोमीटर की यात्रा करेंगे। आगे न जाने क्या क्या होगा लेकिन जिस तरीके से यहां पब्लिक ने व्यवहार किया उससे ऐसे समाज से बेहतर लोकतंत्र के संकेत तो कतई नहीं मिलते। जहां मुफ्त में लोग कुछ भी मिले हजम कर जाना चाहते हों वहां जाहिर है चंद सिक्कों की खनक में ये लोकतंत्र को गिरवी रखने से गुरेज नहीं करते होंगे और नतीजे में उनके हिस्सा में बचता होगा सिर्फ खाट – उनकी अपनी महायात्रा के िलए।