एक नयी डगर पर जायेगा बिहार,तेजस्वी का बढ़ेगा तेज़?
आरक्षण-आंदोलन की कोख से जन्मे हार्दिक पिछली बार पटना आये थे तो हवाई अड्डे से सीधे बिहार के सी एम हाउस में पहुंचे थे। पूरा सरकारी अमला हार्दिक के लिए रेड-कार्पेट बिछाए तैयार था और हार्दिक पटेल को वी आई पी ट्रीटमेंट दिया गया था। पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। वजह साफ़ है नितीश कुमार नरेंद्र मोदी और एन डी ए के साथ हैं। ऐसे में इस बार जब पटेल पटना पहुंचे तो नितीश कुमार के द्वारा डसे तेजस्वी यादव ने हार्दिक को विशेष तरजीह और सम्मान दिया और इस तरह का एक सन्देश देना चाहा कि हार्दिक को अपना साथ देकर तेजस्वी ने बिहार में अपनी स्थिति और ज्यादा मजबूत कर ली है। दर-असल हार्दिक पटेल इस बार बिहार आये तो पटना में आयोजित एक खास वर्ग के लिए आयोजित रैली के खास मेहमान थे और यहाँ के भी कुशवाहा-कुर्मी,पटेल समाज के बीच ये बात रखना चाहा कि अगर उनका समाज एक संगठित रूप ले तो सत्ता हासिल करने में कोई शक नहीं,और ये वर्ग बिहार में हार्दिक के आह्वान पर एकत्रित होकर हार्दिक के समर्थन वाले दल को सिंहासन तक ले जाने में कामयाब हो जायेगा। निश्चित ही दो धूर पर बैठे तेजस्वी और नितीश में से हार्दिक ने तेजस्वी को चुना है। जबतक नितीश कुमार भाजपा से दूर थे तबतक हार्दिक का रिश्ता नितीश कुमार के साथ अच्छा था और अब समीकरण अलग है और हार्दिक एक बार फिर मोदी का खेल बिगाड़ना चाहते हैं और इसके लिए 2019 के संग्राम की रणनीति तैयार करने में लग गए हैं।
हलाकि बिहार में अभी भी हार्दिक के टारगेट वाले वर्ग पर नितीश कुमार की अच्छी पकड़ है ऐसे में हार्दिक का ये कहना कि नितीश कुमार ने पटेल,कुशवाहा और कुर्मी समाज के लिए कुछ नहीं किया है,उल्टा ही पड़ सकता है। कहीं इस सन्देश की विपरीत प्रतिक्रिया भी देखने को मिल सकती है क्योंकि जातिगत राजनीती के मामले में बिहार अव्वल है और नितीश की अपेक्षा हार्दिक इस क्षेत्र में बच्चा है। इसके बावजूद यदि नितीश कुमार के खिलाफ किसी तरह की लामबंदी होती है तो नितीश कुमार ने भी कोई न कोई रास्ता जरूर तलाश लिया होगा। वैसे भी पटना में आयोजित कार्यक्रम को अपेक्षित नहीं माना जा रहा है।
अब अगर यहाँ बात हार्दिक द्वारा तेजस्वी को समर्थन की करे तो जाहिर है एक व्यक्ति के दो दुश्मनो की अच्छी सांठगांठ बन जाती है लेकिन मौका मिलने पर यही दो दोस्त बने दुश्मन फिर दो दुश्मन बन जाते हैं,जिसकी संभावना बिहार में ज्यादा दिखती है। राजद द्वारा बिहार में तेजस्वी को गठवन्धन का नेता एलान करने और तेजस्वी के फैसले के अनुसार चलने का फरमान जारी करने के बाद से संभावित विपक्षी एकजुटता के मिशन को अभी से ग्रहण लगता दिख रहा है। दूसरी बात ये कि बिहार में तेजस्वी को अभी से अगले सी एम उम्मीदवार बताये जाने को लेकर कई लोगों में असंतोष शुरू हो चुका है। हम पार्टी के मांझी की मजबूरी है जो वो खुलेआम तेजस्वी को अभी से ही राज-मुकुट पहनाकर वेटिंग सी एम बना रहे है,वैसे मांझी भी पलटी मारने में माहिर नेता हैं और खुलकर फ़ायदेवाली डील को अपना साथ देते हैं। रही बात उपेंद्र कुशवाहा की,तो कुशवाहा ने खुलेआम तेजस्वी के आमंत्रण पर दो टूक में जबाब देकर जाहिर कर दिया है। वैसे भी कुशवाहा और कुर्मी समाज के लोग कभी ये नहीं चाहेंगे कि कोई बाहर का आदमी आकर उनसे टोपी पहन कर इतराये। गुजरात में हार्दिक ने मोदी की खिलाफत करते हुए राहुल बाबा के रथ पर सवार हो कृष्ण बनने की कोशिश की थी लेकिन शाह और मोदी के आगे पस्त ही नजर आए। अब अगर बिहार में कांग्रेस और आर जे डी के बीच रिश्ता नहीं बना तो हार्दिक किस पाले जायेंगे? किसे जिताने को कहेंगे,तेजस्वी को या कांग्रेस को? कांग्रेस और आर जे डी में अभी से तनातनी दिख रही है। वैसे भी बिहार की सत्ता की लड़ाई से पूर्व दिल्ली की गद्दी की लड़ाई है ऐसे में कांग्रेस की अपेक्षा होगी कि दूसरे सभी मोदी विरोधी दल राहुल के नेतृत्व को स्वीकार ले। ऐसा कुछ समीकरण बनता अभी तो नहीं दिख रहा,खुद कांग्रेस भी अभी इस मामले पर सर्वमान्य फैसले पर नहीं पहुँच पायी है,ये अलग बात है कि कुछ लोग राहुल को पी एम उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं।इन हालातों में बिहार में अपनी जमीन मजबूत कर हार्दिक पटेल किंग मेकर की भूमिका निभाना चाहते हैं,लेकिन हार्दिक को समझना चाहिए कि ये मुहीम इतना आसान नहीं और बिहार में एन वक्त पर कभी भी कुछ भी हो सकता है।
हलाकि जिस तेवर में हार्दिक ने बिहार में आकर इस बार अपना अभियान शुरू किया है उससे तो यही लगता है कि अपने लक्ष के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। जहाँ तक मर्यादा और सीमा को लांघने की बात है उस मामले में ये यहाँ तेजस्वी से एक कदम आगे दिखे। यूँ तो तेजस्वी को ट्वीट का ऐसा कीड़ा लगा बताया जाता है कि कहते हैं सुबह आँखे खुलने से लेकर रात में सोते वक्त तक उनको नितीश कुमार और दोनों मोदियों (नरेंद्र मोदी और सुशील मोदी) के चेहरे ही याद रहते हैं। एक तरफ जहाँ बिहार में सुशील मोदी और तेजस्वी के बीच युद्ध में दोनों एक दूसरे की बहनो को घसीट चुके हैं तो दूसरी तरफ लालू के खिलाफ एक से बढ़कर एक नया संकट पैदा करने में नितीश और नरेंद्र मोदी का हाथ होने की बात हर पल करते हैं। हार्दिक जब बिहार पहुंचे तो यहाँ भी उनकी धार वैसी ही बनी रही और एक बार फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह को गुंडा कहने से गुरेज नहीं किया। ऐसे में इस बात की भी प्रतिक्रिया बिहार में हो सकती है और हार्दिक और तेजस्वी के खिलाफ का ध्रुवीकरण और मजबूत हो सकता है।
निश्चित तौर पर हार्दिक जहाँ पहले से ही मोदी से खार खाये बैठे हैं वहीँ इस बार नितीश कुमार से कोई भाव नहीं मिलने और तेजस्वी के द्वारा हाथो-हाथ लिए जाने की वजह से अपनी खास भूमिका बिहार की सियासत में दर्ज़ करना चाहते हैं। लेकिन बिहार की डगर बहुत कठिन है और बिहार में बाहर से आकर अभी तक पिछले दरवाजे से कोई ख़ास सियासत नहीं कर पाया है। शरद यादव भी नेता तभी बन पाए जब यहाँ की जमीन और जनता से सीधे तौर पर जुड़े और जहाँ तक जार्ज फर्नांडिस की बात है तो उन्होंने बड़ी लम्बी लड़ाई लड़ी और राष्ट्रिय स्तर पर खास छवि बनायीं साथ ही इन दोनों ने जे पी आंदोलन से खुद को स्थापित कर लिया था। हार्दिक में ऐसा कुछ भी नहीं जो यहाँ के लोग उनको खास तवज्जो दें।