ये जो परिस्थिति है न भाई साहब। कसम से बहुत रुलाती है। नानी याद करा देती है, नानी। परिस्थिति ने ही लालू को शहाबुद्दीन के करीब लाया था, परिस्थिति ने ही शहाबुद्दीन को जेल पहुंचाया था। ये अलग बता है कि एक परिस्थिति राजनीतिक थी और दूसरी परिस्थिति आपराधिक। अपराध, अकड़ से लेकर अमले तक शहाबुद्दीन का कोई जवाब नहीं, लेकिन परिस्थितियों का गुलाम उन्हें भी होना पड़ा। एक परिस्थिति वो भी थी, जिसकी वजह से नीतीश को शहाबुद्दीन के राजनीतिक रहनुमा लालू यादव के दोबारा करीब आना पड़ा, जिस बात का जिक्र जेल से निकलने के बाद शहाबुद्दीन ने किया था। शहाबुद्दीन ये कह कर किया है कि लालू हमारे नेता हैं और नीतीश परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं। बस फिर क्या था, परिस्थितियों वाली बात सीएम नीतीश कुमार के सीने पर नश्तर की तरह चुभ गई, और उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी, शहाबुद्दीन को फिर से जेल की सलाखों में जाना पड़ा। इन्हीं परिस्थितियों ने नीतीश की सरकार में शामिल आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव को भी अचंभित और दुखी किया, क्योंकि लालू यादव अपने प्रिय शहाबुद्दीन को कई सालों बाद जेल के बाहर देखकर प्रसन्नचित्त से नजर आ रहे थे, लेकिन उनकी सारी प्रसन्नता चित्त हो गई। फिर से जेल पहुंच चुके शहाबुद्दीन को ये उम्मीद है कि उनके समर्थक ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देंगे कि उनके विरोधियों को जवाब मिल जाएगा। पूर्व सांसद शहाबुद्दीन बाहुबल से समर्थ हैं,सत्ताधारी आरजेडी उनके साथ खड़ी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी खुशियों को काफूर कर दिया और ये कहते हुए उन्हें वापस जेल जाना पड़ा कि वो अदालत का सम्मान करते हैं। दबंग, दमदार और नकारात्मक रूप से चर्चित शहाबुद्दीन को फिर से मुताबिक परिस्थितियों का ‘इंतजार करना होगा, तब तक जब तक अदालत का फैसला उनके हक में न आ जाए।
वरिष्ठ पत्रकार अमर आनंद की तफरीह