जिनका ईमान मुसल्लम है ही नहीं, क्या वे पांच बार नमाज पढ़कर या कुरान की आयतें रटकर मुसलमान हो सकते हैं? यह सवाल मैं अपने उन मुसलमान भाइयों-बहनों के लिए छोड़ रहा हूं, जो बेवजह मेरे प्रति हमलावर रहते हैं। एक ग़ैर-मुस्लिम परिवार में पैदा होते हुए भी उन लोगों से ज़्यादा मुसलमान तो मैं ख़ुद हूं।
आप जानते हैं कि मेरे पढ़े लिखे मुस्लिम भाई-बहन क्यों मेरे आलोचक बने हुए हैं? क्या इसलिए कि मैंने
1. कहा कि दादरी में अखलाक की हत्या एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है, इसलिए इस मामले को सांप्रदायिक रंग मत दो? ऐसा करके आप राजनीतिक दलों, जिनमें भाजपा, कांग्रेस, राजद, जेडीयू, सपा, बसपा, एएपी सभी शामिल हैं, उनके हाथों इस्तेमाल हो जाओगे।
2. लेखक कलबुर्गी की हत्या के मुद्दे पर लेखक उदय-प्रकाश के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का तो समर्थन किया, लेकिन दादरी कांड के बाद बिहार चुनाव को प्रभावित करने के मकसद से छेड़े गए पुरस्कार लौटाओ अभियान की निंदा की?
3. कहा कि हैदराबाद के कथित दलित स्टूडेंट रोहित वेमुला का सुसाइ़ड करना दुखद था, लेकिन उसका दलित संघर्ष से तो कोई लेना-देना ही नहीं था? वह तो आतंकवादी याकूब मेमन के सपोर्ट में आंदोलन कर रहा था और विश्वविद्यालय का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहा था, जिसकी वजह से उसे विश्वविद्यालय प्रशासन से कार्रवाई झेलनी पड़ी।
4. जेएनयू में बंदूक के दम पर आज़ादी लेने और भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाने वालों का विरोध किया?
5. ढाका सहित दुनिया भर में लगातार हुए और हो रहे आतंकवादी हमलों के ख़िलाफ़ बोलने का दुस्साहस किया? ख़ासकर रमज़ान महीने में भी कुछ लोग मासूमों की हत्या का अमानवीय कृत्य कैसे कर सकते हैं, इसपर हैरानी जताई।
6. मरने के बाद 72 हूरों को हासिल करने की हसरत को दकियानूसी, स्त्री-विरोधी, काम-लोलुपता और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली सोच बताया?
7. तीन तलाक की परंपरा को अपनी 10 करोड़ मुस्लिम बहनों के हक और हितों के ख़िलाफ़ बताया?
8. ढाका की सड़कों पर ख़ून की नदियां दिखाई देने के प्रसंग में बकरीद पर मासूम पशुओं की बेतहाशा हत्या को मानवतावादी सोच के ख़िलाफ़ बताया?
9. हजरत इब्राहिम द्वारा बच्चे की बलि देने के प्रयास का विरोध करने वाले व्यक्ति को शैतान मानने से इनकार किया और उसे मानवता का मसीहा, बलि-प्रथा का विरोधी, अंधविश्वास पर चोट करने वाला और लोगों के जीने के अधिकार के लिए लड़ने वाला योद्धा बताया?
10. निचली अदालत से सज़ा पाए बाहुबली शहाबुद्दीन को हाई कोर्ट द्वारा ज़मानत दिये जाने के बाद देश की न्याय-व्यवस्था की विसंगतियों को रेखांकित किया?
11. ज़ाकिर नाइक को कट्टरपंथी सोच को बढ़ावा देने वाला एवं तारिक फतेह और तस्लीमा नसरीन को कट्टरता से लड़ने वाला कहा?
12. पाकिस्तान और आतंकवादियों से शह पाए कश्मीर के पत्थरबाज़ों के ख़िलाफ़ सख्ती बरते जाने का समर्थन किया? और मोदी द्वारा बलूचिस्तान मुद्दा उठाए जाने और पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की प्रशंसा की?
हैरानी की बात यह है कि इसी दौरान, मेरे अन्य तमाम लेखों, बयानों और कार्यों की अनदेखी कर दी गई। जैसे,
1. बिहार में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने लगातार सीमांचल के मुसलमानों की बदहाली का मुद्दा उठाया और कहा कि वे देश के सबसे पिछड़े मुसलमान हैं, उनके लिए धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की सरकारें कुछ क्यों नहीं करतीं?
2. बिहार में फारबिसगंज हत्याकांड में एक गर्भवती महिला समेत तीन लोगों की सरकारी हत्या के मामले का विरोध किया और लोगों को त्वरित न्याय नहीं मिलने पर कई बार अपना रोष प्रकट किया।
3. मुस्लिम भाइयों-बहनों की गरीबी और अशिक्षा के ख़िलाफ़ युद्ध स्तर पर प्रयास किए जाने की ज़रूरत बताई और सच्चर कमीशन की रिपोर्ट को गंभीरता से लेने की अपील की।
4. स्मृति इरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिए जाने का जैसे ही एलान हुआ, वैसे ही हमने इस महत्वपूर्ण पद के लिए उनकी उपयुक्तता पर सवाल उठाया।
5. बिहार चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पिछड़ों का आरक्षण दूसरे संप्रदाय को देने की कथित साज़िश का उल्लेख किये जाने पर सबसे पहले सवाल उठाया कि देश के प्रधानमंत्री के लिए पहला संप्रदाय कौन है और दूसरा संप्रदाय कौन है?
6. लव जेहाद के मुद्दे को बकवास और लोगों को गुमराह करने वाला बताया और कहा कि अगर किसी भी धर्म को मानने वाली किसी लड़की से धोखा होता है, तो कानून उससे ईमानदारी से निपटे।
7. धर्मांतरण के शोर के बीच कहा कि धर्म-परिवर्तन छोड़ो, जाति-परिवर्तन शुरू करो और सभी लोगों को एक ही जाति के भीतर लाओ। हज़ार जातियां बेमानी हैं। एक ही जाति इंसानी है।
8. समाज में सांप्रदायिक भेद पैदा करने वाले नेताओं मसलन, साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, संगीत सोम, आज़म ख़ान, अबू आज़मी, औवैसी बंधुओं इत्यादि का बायकॉट करने की मीडिया से बार-बार अपील की।
9. शिव सेना, राम सेना और हिन्दू सेना टाइप संगठनों की निंदा करते हुए इनके ख़िलाफ़ कठोरतम कार्रवाई किए जाने की मांग की।
10. हिन्दुओं और मुसलमानों को भारत माता की दो आंखें बताते हुए इनके बीच भेद पैदा करने वाली राजनीति पर लगातार हमलावर रहा।
11. समाज को हिन्दू-मुस्लिम, दलित-ग़ैरदलित में बांटने की राजनीतिक दलों की साज़िशों के प्रति लोगों को लगातार आगाह करने की कोशिश की।
12. अपराध की हर घटना, जिसमें एक पक्ष हिन्दू समुदाय से और दूसरा पक्ष मुस्लिम समुदाय से हो, उसे ज़बरन सांप्रदायिक रंग देने की साज़िशों के प्रति लोगों को आगाह किया और कहा कि कानून को अपना काम करने देना चाहिए।
समस्या यह है कि ‘धर्म’ के नाम से पुकारे जाने वाले ‘अधर्म’ और ‘जनसेवा’ के नाम से पुकारी जाने वाली ‘सियासत’ ने लोगों के लहू में एक-दूसरे के प्रति नफ़रत और कट्टरता इस हद तक कूट-कूटकर भर दी है कि उन्हें अब मानवतावादी और जोड़ने वाली सोच भी अपच होने लगी है। सच्चाई से उन्हें डर लगने लगा है। झूठ पर आधारित व्यवस्था को चुनौती मिलने पर वे जड़ से हिल उठते हैं।
अगर मेरे किसी भी लेख या बयान को वे किसी भी जाति या धर्म के ख़िलाफ़ साबित कर दें, तो मैं लिखना-बोलना छोड़ दूंगा। पर जब तक वे ऐसा नहीं कर पाते, तब तक मेरा भी संकल्प है कि नफ़रत, अंधविश्वास, कट्टरता, जातिवाद, संप्रदायवाद, आतंकवाद और अमानवीय परंपराओं के ख़िलाफ़ लगातार लिखता और बोलता रहूंगा।
सैकड़ों वादों और सिद्धांतों से मेरा कोई नाता नहीं। मेरा एक ही वाद है- मानवतावाद। और एक ही सिद्धांत है कि हर मनुष्य अपना व्यवहार सिर्फ़ इस बुनियाद पर तय करे कि एक मनुष्य को दूसरे मनुष्यों अथवा जीव-जंतुओं के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए। मनुष्य इस दुनिया का अधिकारी नहीं, एक निवासी मात्र है। उससे अपेक्षित है कि वह आपस में तो मिल-जुलकर रहे ही, अपने स्वार्थ के लिए दूसरे जीव-जंतुओं के अधिकारों का भी हनन न करे।