सुविधानुसार एस पी ( सुरेंद्र प्रताप सिंह) को उद्धृत करना इन दिनों एक फैशन सा बन गया है।कथित बलात्कारी, दिल्ली के बर्खास्त मंत्री संदीप कुमार के बचाव में आये आशुतोष ने भी एस पी को उद्धृत किया। उनके कथित शिष्यों की चर्चा की, हो-हल्ला शुरु होगया,एस पी के नाम के साथ उनके कथित शिष्यों को ले कर भी। अनायास मुझे भी एसपी और उनके “शिष्य” याद आ गये। वे दिन आँखों के सामने प्रकट हो गये जब एस पी नभाटा से पृथक हो दिल्ली स्थित INS भवन में “टेलीग्राफ” के ब्यूरो से जुड़े थे। वे दिन थे जब एस पी INS भवन के ‘गेट’ पर खड़े रहते थे और उनके द्वारा तैयार अनेक पत्रकार/शिष्य कतरा कर निकल जाया करते थे।एक दिन जब मैं उनके साथ चाय के लिए ‘कॉन्स्टिट्यूशन क्लब’जा रहा था, तब INS के गेट पर खड़े हो एस पी ने दुःखी मन से कुछ”शिष्यों” को इंगित कर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। और, जब एसपी इंडिया टु डे/आजतक से जुड़ गए तब पुनः वे “शिष्य” उनके इर्द-गिर्द मधुमक्खियों की तरह मंडराने लगे।सरल/उदार हृदय एस पी भी सबभूल “शिष्यों” को गले लगाते रहे।
आज जब उनके “शिष्यों” की चर्चा हो रही है तो कथित शिष्यों की याद आना अस्वाभाविक तो नहीं ही है न!