नई दिल्ली। दिल्ली के पेड़ों की कटाई के मामले से लोगों में प्रकृति के प्रति संवेदनाओं को कुरेद दिया। दिल्ली जैसे तेज रफ्तार वाले मेट्रो सिटी में अपनी वाई-फाई वाली जिंदगी से कुछ पल निकाला और पेड़ों के लिए संघर्ष किया। पेड़ों से साथ लोगों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाने लगी। क रीब 3000 पेड़ों की बलि दिए जाने के बाद लोगों के विरोध ने असर दिखाया और अब लगने लगा है कि दिल्ली के हजारों पेड़ों की जिंदगी बच सकती है। फैसला किया गया कि 17000 पेड़ों में से जो पेड़ कट गए सो कट गए, लेकिन अब किसी पेड़ को हाथ नहीं लगाया जाएगा। 17000 पेड़ों को सजा-ए-मौत सुनाई दी गई, लेकिन अब थोड़ी राहत की सांस हम इंसानों ने ली है कि अपनी सांस बचाने के लिए की गई हमारी कोशिशों का रंग दिखने लगा है। अब जरा आंकड़ों पर नजर जालिए कि कैसे सरकार आपकी जिंदगी को खतरे में डाल रही है।
52000 पेड़ों की कटाई को मंजूरी, फिर प्रदूषण का रोना क्यों?
एक तरफ दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर को पार करता जा रहा है और सरकार खुद को बेबस दिखाने और केंद्र से टकराने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। साल 2011 से लेकर 2017 के बीच दिल्ली में 52000 से ज्यादा पेड़ों को काटने की मंजूरी दी गई । सरकार ने फाइलों पर दस्तखत कर फरमान जारी कर दिया, बिना ये सोचे कि दिल्ली की हवा तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जिसमें सांस लेना अपनी जिदंगी के साथ खिलवाड़ करने जैसे है उसके प्रभाव क्या होंगे। इन 6 सालों में दिल्ली का प्रदूषण खतरनाक स्तर को पार कर चुका है। वर्ल्ड एयर क्वालिटी इंडेक्स के मामले में दिल्ली की हवा ‘हेजर्ड्स’ कटेगरी में पहुंच चुकी है। इस महीने दिल्ली और एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स वैल्यू 999 दर्ज किया गया है, जो कि सामान्य 400 से कहीं ऊपर है। आपको बता दें कि एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से ऊपर होते ही इसे ‘खतरनाक’ की श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन इससे सबक लेने के बजाए सरकार ने कुल्हाड़ी थमाकर पेड़ों को खत्म कर अपनी जिंदगी छीनने को मंजूरी दे दी। जिन पेड़ों को उगने में सालों लग जाते हैं और जो दिल्ली के प्रदूषण के कम करने के सबसे बड़े हथियार है। इस प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के सबसे बड़ी उम्मीद हैं, उसे एक झटके में काट देने का फैसला कर दिया गया।
सरकारी दावों की खुली पोल
दक्षिणी दिल्ली में 17000 पेड़ों को काटकर वहां रिहाय़शी इलाके बनाने का प्लान था। पार्किंग बनाई जाती। सरकार ने दावा जरूर किया गया कि एक के बदले 10 पेड़ लगाए जाएंगे, लेकिन सरकार ये बताने में असफल रही कि ये पेड़ लगाए कहां जाएंगे और कैसे । कौन ही जगह बची हैं, जहां वो काटे गए 3000 पेड़ों की जगह 30000 पेड़ लगा देंगे। जिन पेड़ों को बनने में 25 से 40 साल लगते हैं, उन्हें काटने के बाद फाइलों में दबी पेड़ लगाने की योजना को ग्राउंड लेवल तक पहुंचने तक पर्यावरण के नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा। जिसकी भरपाई में कम-से-कम 30 साल लग जाएंगे। बदले में पौधे लगाने का वादा वैसा ही लगता है, जैसे कि किसी के खिलाफ अपराध करो और फिर पीड़ित को लालच या धमकी देकर चुप करा दो।
पेड़ों और पर्यावरण को हम हैं गैरजिम्मेदार
सरकार को सरकार हैं, लेकिन हम खुद भी अपने पेड़ों और पर्यावरण को लेकर गैरजिम्मेदार हैं। हम में से कितने ऐसे लोग हैं जो महीने छोड़िए, साल में एक पेड़ लगाते हैं। या लगाना छोड़िए सूखते पेड़ को पानी डालते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की माने तो 1990 से 2005 के बीच इंसानों ने हर मिनट में 9 हेक्टेयर जंगलों का सफाया कर दिया। दुनिया भर में हर साल लगभग 15 अरब पेड़ काट दिए जाते हैं। ऐसे में जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण पेड़ों की कटाई है। जयवायु में बदलाव होगा तो किसान प्रभावित होंगे। कर्ज का बोझ बढ़ेगा और फिर अन्नादाता विवश होकर खुशकुशी का रास्ता चुन लेते हैं। वहीं पेड़ों की कटाई की वजह से प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता 6,000 घनमीटर से घटकर 1,600 घन मीटर प्रति व्यक्ति रह जाएगी। दिल्ली में बाहर से लोग आकर बसे हैं, जो खुद अपने जड़ों से कटे हैं, इसलिए यहां के लोगों को पेड़ों से ममता नहीं है, क्योंकि उन्होंने उन पेड़ों को जड़ से उगते नहीं देखा। उन पेड़ों के लिए प्रेम नहीं पैदा हो पाता, वरना कथित विकास के नाम पर पेड़ों को काटा नहीं जाता। पर्यावरण से हमारा प्यार सिर्फ वीकेंड पर पेड़ों के लिए प्रोटेस्ट कर लेना या पेड़ों के साथ सेल्फी ले लेने से नहीं पैदा होगा। हमें अपने बच्चों को पर्यावरण और पेड़ों से प्यार सिखाना होगा। हम अपने बच्चों को वैसे ही प्यार करना सिखाएं जैसे कि वो मां-बाप और भाई-बहनों से करते हैं। आप देखिएगा 20-25 साल में बड़ा फर्क दिखने लगेगा। जिस पेड़ को अपने साथ बढ़ते हुए ये बच्चे देखेंगे उसे न कभी सूखने देंगे और न कभी कटने लगेंगे । आज आम का पेड़ लगाइए आने वाले सालों में वो आपको फल-ऑक्सीजन-छाया-बारिश, सबकुछ देने लगते हैं। इसलिए पेड़ों की कटाई पर राजनीति करने से बेहतर हैं कि हम प्रयास करें। प्रयास अपने कल को सुरक्षित रखने के लिए। अपने कल को बेहतर और भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए। जहां दिल्ली की हवा में सांस लेना मौत को दावत देना न हो। जिन बच्चों के लिए दिन रात मेहनत कर पैसा जोड़ रहे हैं पहले उनके भविष्य के लिए पानी, पर्यावरण, शुद्ध हवा की जुगाड़ तो कर लीजिए।