साल 2012 का निर्भया कांड ,जिसने न केवल दिल्ली को बल्कि पूरे देश और दुनिया को झगझोर दिया। बलात्कार की ऐसी घटना के बारे में पहले कभी किसी ने न सुना न देखा। स्त्री जो इस संसार की जननी हैं, उसके साथ ऐसी दरिंदगी की गई, जिसे याद कर रूह कांप जाती है। पूरा देश आक्रोश से भर गया। लोगों ने कैंडल मार्च निकाला। दिल्ली का राजपथ युवाओं के आक्रोश से उबल पड़ा। लोगों ने आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग की। विरोध और प्रदर्शन का दौर चला और धीरे-धीरे सब शांत हो गया। फिर कठुआ गैंगरेप ने ‘हिन्दुस्तान को शर्मसार’ कर दिया। आम से लेकर खास लोगों ने कठुआ गैंगरेप में बच्ची के साथ की गई हैवानियत के खिलाफ आवाज उठाई । आवाज अभी शांत भी नहीं हुई थी कि मंदसौर रेप ने देश में फिर से रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। मंदसौर में 8 साल की बच्ची के साथ घिनौने अपराध को अंजाम दिया गया। आरोपी मुसलमान है इसलिए मामला और गंभीर हो गया। हालांकि इस बार पुलिस ने देरी नहीं की और फौरन दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सवाल ये है कि आखिर कब तक हम इन वारदातों की गिनती करते रहेंगे? कब तक लोग कैंडल मार्च निकालकर रेप के आरोपियों के लिए मौत की सजा की मांग करते रहेंगे? सवाल कई है, लेकिन दोषी सिर्फ हम, हमारा समाज और हमारा थका हारा कानून हैं, जो हमारे देश की महिलाओं को सुरक्षित रखने में असमर्थ हैं।
इज्जत लड़की की नहीं बल्कि बलात्कारी की गई
बलात्कार के बाद लोग लड़की को दोषी मानने लगते हैं। समाज कहता है कि लड़की की इज्जत चली गई, अखबार और टीवी की सूर्खियां बनाई जाती है कि लड़की की इज्जत लूट ली गई, लेकिन सच तो ये हैं कि इज्जत उस लड़की की नहीं बल्कि बलात्कारी की लूटी है। उस दरिंदे की लूटी है, जिसने अपनी इंसानियत, अपने धर्म को किनारे कर अपने ऊपर हैवान को हावी होने दिया। दोष उस आरोपी का नहीं दोष हमारा है, हमारे समाज का है जो ऐसी घटनाओं को पीड़िता पर केंद्रित कर देते हैं। मीडिया सवाल उठाता है कि बलात्कार कैसे हुआ, कब हुआ, जबकि सवाल और सवाल के घेरे में सिर्फ और सिर्फ बलात्कारी आने चाहिए। हम कैंडल मार्च निकालकर कानून बदलने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन सबसे जरूरी हैं हमे अपने सोच को बदलने की।
समाज की सोच बदलने की जरूरत
समाज का एक वर्ग हैं जो बलात्कार और रेप जैसी घटनाओं पर कैंडल मार्च निकालकर खुद का जागरूक दिखाने की कोशिश करता है। वो दिखाता हैं कि रेप जैसी वारदात समाज के लिए निंदनीय है। ये वर्ग हफ्ते-दस दिन तो रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर खड़ा रहता है, लेकिन फिर ग्यारवें दिन बैग उठाकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो जाता है। वहीं एक तबका और हैं जो बलात्कार जैसी घटनाओं में भले ही विरोध के लिए मार्च और प्रोटेस्ट में शामिल नहीं होता, लेकिन उनकी जुबान चलती रहती हैं। समाज का ये तबका रेप जैसी वारदातों के लिए आधुनिक समाज, लड़कियों की चाल-ढ़ाल, उनके पहनावे उनके रहन सहन को दोषी मानता हैं। समाज के इस वर्ग की दलील हैं कि जब लड़कियां चार दिवारी में रहती थी तो ऐसी वारदातें कहां होती थी, अब वक्त से साथ लड़कियों ने खुद को बदल लिया हैं तो उनके खिलाफ अपराध भी बढ़ रहे हैं।
मर चुकी हैं संवेदनाएं
समाज में इन दोनों के अलावा एक और तबका है जो अति आधुनिक और खास हैं। रेप जैसी वारदातों पर ये तबका ज्यादा कुछ नहीं गले में तख्ती या हाथ में हिन्दुस्तानी होने पर शर्म का पोस्टर लेकर अपना विरोध करता हैं। लेकिन इस शर्म के तख्ते, इन कैंडल मार्च और लड़कियों के कपड़े पर टिप्पणी करने वाले इन तबके के लोगों में एक सामानता है। समानता हैं कि इन सबकी संवेदनाएं मर चुकी हैं। समाज में इंसानियत खत्म हो चुकी हैं। बच्चियों और महिलाओं के साथ होने वाली घिनौनी वारदात के लिए वो बलात्कारी नहीं जो उनके शरीर को नोंच खाता हैं बल्कि समाज की मूक हो चुकी मानवीय संवेदना और मर चुकी इंसानियत जिम्मेदारी है। बलात्कारी तो एक बार , दो बार या दस बार उसके शरीर को नोंचता हैं, लेकिन खोखले समाज की मृत संवेदनाएं उसे बार-बार बलात्कार पीड़िता होने के अहसास करता हैं।
हमारा कानून जिम्मेदार
समाज के साथ-साथ कानून की कमजोरी बलात्कारियों को बल देती हैं। स्त्री के शरीर को नोंच कर अपनी यौन इच्छा की भूख मिटाने वाले बलात्कारियों के खिलाफ सख्त कानून की मांग साल 2012 की निर्भया कांड के बाद से ही उठ रही हैं, लेकिन सरकार ने अब तक कानून में बदलाव का प्रस्ताव नहीं पेश किया है। हालांकि केंद्र सरकार ने 12 साल तक की बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया है। इसके लिए पॉक्सो ऐक्ट में बदलाव के लिए ऑर्डिनेंस जारी कर दिया है। सरकार ने इसके पहले ऐंटी-रेप लॉ में कानून का प्रस्ताव दिया था। आपको बता दें कि 2013 से पहले बलात्कार को एक बड़ा अपराध नहीं माना जाता था। उससे पहले बलात्कार के अपराधी को अधिक से अधिक सात साल के कारावास की सजा दी जा सकता थी। लेकिन निर्भया की घटना के बाद, संसद ने बलात्कार विरोधी विधेयक पारित किया है, जिसमें अब बलात्कार की सजा आजीवन कारावास और एक से अधिक मामलों की सजा मौत को जोड़ दिया गया है। इतना ही नहीं नए कानून में बलात्कार के अलावा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, एसिड हमलों, पीछा करने और बुरी नजर से देखना को जोड़ दिया गया है। नए कानून में बलात्कार के मामले में कम से कम 20 साल सश्रम कारावास का प्रावधान है और सामूहिक बलात्कार के दोषी पाए गए लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। हालांकि लोगों की मांग है कि बलात्कार के आरोपियों को फांसी की सजा दी जाए।