दीदी ममता देख रही मुंगेरी लाल के हसीन सपने,कांग्रेस उहापोह में
ममता बनर्जी पर लगता है अब नशा सा चढ़ गया है दिल्ली की गद्दी को हासिल करने का। तभी तो ममता एक संवैधानिक पद पर रहते हुए भी ऐसे बयानों से अपना वजूद बनाना चाहती है जो कहीं से देशहित में नहीं है। ममता शुरू से ही धमकियों की राजनीती करती आयी है। बात चाहे कांग्रेस के जमाने की हो या एन डी ए के काल की सबमे ममता ने दबाब की राजनीती करने का काम किया। कांग्रेस से अलग होकर नया दल भी ममता ने कुछ ऐसे ही तेवर अपनाकर बनाया था। अपने विरोधियों या प्रतिद्वंदियों से ममता लड़ती है और खूब लड़ती है।
पर अब वर्तमान में जो लड़ाई ममता ने शुरू की है उसपर अभी से आम लोग भी सवाल उठाने लगे हैं,खुद इनकी पार्टी और समर्थक इनका साथ छोड़ते जा रहे हैं। एन आर सी के मुद्दे पर आसाम के कई नेता टी एम सी प्रमुख से एकमत नहीं हैं और उन्होंने तुरंत साथ छोड़ने का एलान कर दिया।अभी कई और साथ छोड़ेंगे ऐसी संभावना इनके अपने साथी ही बता रहे हैं।
एक छोटे वोट बैंक से मोह बड़ा नुक्सान दे सकता है ममता को
आज ममता बनर्जी जिस फार्मूले से देश की नेता बनने की कोशिश में है उसमे उनका पुराना रवैया ही उन्हें बैक फुट पर लेकर खड़ा कर रहा है। ममता जब लोकसभा की सदस्य थी तब इस मुद्दे पर ममता खुद काफी हमलावर थी और घुसपैठियों के खिलाफ कागजात का पुलिंदा लोकसभा में स्पीकर के मुँह पर फेंक कर सुर्ख़ियों में आ गयी थी। आज वही ममता जब पश्चिम बंगाल की सी एम है तो यू टर्न लेते हुए अब घुसपैठियों की वकालत कर रही है। निश्चित तौर पर ममता को वोट का डर सता रहा है। इस मामले को ममता अब मानवाधिकार और अल्पसंख्यक से जोड़कर सियासी रूप देना चाह रही है। लेकिन ममता इस बात को भूल रही है कि यही एक गलती उसे बंगाल से भी बेदखल कर सकती है। ममता जिस घुसपैठिये की वकालत आसाम में कर रही है वो घुसपैठिये आसाम के मूल वासियों की परेशानियों के मुख्य वजह हैं। ऐसे में असम के नागरिकों का समर्थन एन आर सी के हक़ में जाता दिख रहा है। दूसरी तरफ असम में बांग्ला भाषियों या बंगाली मूल निवासियों की तादाद भी काफी है और इन लोगों का रिश्ता बंगाल के बंगालियों के साथ खून के रिश्ते सामान है। अगर इन असामी बंगालियों की समझ में ममता की चाल समझ में आ गयी तो फिर बंगाल के काफी बंगाली ममता से अलग अपना राह भी चुन लेंगे। ममता विरोधी ये लोग निश्चित तौर पर एन आर सी के समर्थकों के पाले खड़ा होंगे ऐसे में ममता का पश्चिम बंगाल में क्या होगा?
40 लाख वोटों को ममता,कांग्रेस और दूसरे एन आर सी विरोधी कैसे आपस में बाँटेंगे ?
फिलहाल आसाम में एन आर सी के तहत 40 लाख लोगों की सूचि तैयार की गयी है,जिसमे अभी सुधार की काफी गुंजाइश है। ऐसे में ज्यादा संभावना है कि घुसपैठियों की तादाद घट सकती है। इसका मतलब यह कि वोटरों की तादाद अभी और घटेगी। आखिर ये ममता को समझ क्यों नहीं आता कि महज कुछ फर्जी वोटरों को वैध बनवाकर उसे कितना वोट मिल जायेगा। क्या मुसलमान वोटरों की वो अकेली मसीहा है ?आखिर कांग्रेस कहाँ जाएगी,क्या उन्हें वो मुस्लिम वोट नहीं करेंगे ? कुछ वोट तो इस्लामो के अघोषित आका ओवैसी जी को भी मिलना चाहिए। इसके अलावा भी तो इन घुसपैठिये लोगों के कोई न कोई आका तो होंगे ही। तो फिर ममता ने कभी हिसाब लगाया है कि कितने वोटों की बढ़ोतरी हो जाएगी उनके लिए ?
एन आर सी से ध्रुवीकरण का नुक्सान भी ममता को ही होगा।
अभी तो महज आसाम की बात हुयी है। जिस भाषा में सदन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एन आर सी की वकालत की है उससे तो यही लगता है की असाम के बाद दूसरे राज्यों में भी इसकी आग पहुँच सकती है। ममता को डर है कि आसाम के बाद पश्चिम बंगाल ही ऐसा सूबा है जहाँ इस तरह के घुसपैठियों की तादाद काफी है और वो ममता के वोटर हैं। ऐसे में अगर उनके सूबे में एन आर सी की हवा आयी तो क्या होगा?निश्चित तौर पर एक ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा होगी जो भारतीय-गैरभारतीय के नाम से होगा। और ये ध्रुवीकरण पूरे देश में फ़ैल सकता है।
अभी से ही देश की सात बहनों में से एक बहन अरुणांचल में घुसपैठियों और अवैध लोगों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया गया है। वहां के छात्र संगठन ने पंद्रह दिनों के अंदर अवैध रूप से रह रहे लोगों को अरुणांचल छोड़ने का फरमान सुना दिया है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है। बिहार का सीमावर्ती इलाके खासकर किशनगंज,अररिया,कटिहार समेत कई जिले अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के बोझ से परेशान हैं। ऐसे में इनजगहों के मूल निवासी भी एन आर सी के समर्थन में निश्चित आएंगे।
कांग्रेस का रवैया साफ़ नहीं,खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
हलाकि एन आर सी आज का मुद्दा नहीं है,राजीव गाँधी जब प्रधानमंत्री थे तभी का मामला है ये। आज कांग्रेस इस पर मुँह नहीं खोल रही। 1971 की लड़ाई के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी ने खुद कहा था,ये बांग्लादेशी शरणार्थी देश की जनता का बोझ है,जिसे देश बर्दास्त नहीं कर सकता और इन्हे वापस जाना ही होगा। पर आज कांग्रेस मूक है।चंद वोटों की लालच में ये एक बड़ा वोटवर्ग खो सकती है। जिसतरह से ममता के गृहयुद्ध वाले बयान को देश के खिलाफ कहा गया वैसे ही अगर कांग्रेस इस मुद्दे पर दोहरी राजनीती करती है तो निश्चित तौर पर इसका खामियाजा कांग्रेस को भी भुगतना पड़ेगा।
कुल मिलकर ये कहा जा सकता है की एन आर सी का मुद्दा आनेवाले दिनों में काफी अहम् मुद्दा होगा जिसका फायदा उन दलों को मिलनेवाला है जो इनके समर्थन में होंगे। विरोध करनेवालों को देश की जनता नहीं छोड़ेगी और अगर ऐसा हुआ तो सबसे बड़ा फायदा भाजपा और उनके समर्थक दलों को मिलता दिख रहा है।