अपने विरोधियों के चैलेंज को स्वीकारा,खूब गरजे पर कनखी मार बुरे फंसे राहुल
संसद के लोकसभा में टी डी पी के नेतृत्व में लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर जमकर भाषणबाजी हुयी। शुरुआत टी डी पी के सांसद से हुयी और फिर सत्ता पक्ष के बी जे पी के सांसद ने अपना पक्ष रखा। अब इंतज़ार था उस सख्शियत का जिसके इंतज़ार में पूरा देश टकटकी लगाए बैठा था। बारी आयी तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने बोलना शुरू किया। अपने भाषण में राहुल ने सभी मुद्दों को छुआ। काफी हमलावर भी दिखे। खासकर प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत होते हुए कुछ वार किये कहा “प्रधानमंत्री हमसे आँख नहीं मिला सकते।” “प्रधानमंत्री चौकीदार नहीं,भागीदार हैं।” बीच में कुछ शोरगुल की वजह से उनके भाषण को रोकना भी पड़ा। हलाकि राहुल ने कई मुद्दों खासकर किसान,जी एस टी ,विदेश नीति,रक्षा सौदे पर जमकर बोला। रक्षा सौदे की चर्चा के दौरान राफेल सौदे पर रक्षा मंत्री पर वार किया,जिसका जबाब निर्मला सीता रमन ने बखूबी दिया।
अपने भाषण के दौरान राहुल ने कई बार अमित शाह का नाम भी लिया। इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाया और एक मैगजीन में छपी खबर का हवाला भी दिया। हालांकि पहली बार राहुल गाँधी ने सदन में कुछ गंभीर बाते भी की लेकिन जब राहुल देश की अराजकता -हिंसा पर बात कर रहे थे तो पीछे से उनके बयानों पर दूसरे सदस्य सवाल भी उठाते हुए पूछ रहे थे 1977 में उनकी दादी ने क्या किया था ? बीच बीच में टोका-टोकी और शोर के बीच राहुल बोलते रहे।लेकिन अचानक ही भाषण ख़त्म कर राहुल गाँधी मोदी से गले मिलने चले गए,मोदी ने राहुल की पीठ ठोककर आशीष भी दिया। लेकिन इस गले मिलने को लेकर कई सदस्यों ने ये कहकर सवाल उठाया कि सदन में जादू की झप्पी या मुन्ना भाई की करतूत नहीं चलेगी और सदन की गरिमा के खिलाफ है। वहीँ राहुल के पक्षधर यहाँ राहुल की जीत बता रहे हैं। अंत में राहुल गाँधी ने तंज कसते हुए कहा कि आरएस एस और भाजपा का धन्यवाद करते हैं जिसने उन्हें हिंदुत्व सिखाया,शिव के बारे में समझाया,सहिष्णुता सिखाया।
हालांकि कुल मिलकर राहुल ने विपक्ष के नेता की भूमिका तो निभाई पर कुछ जगहों पर उनकी अपरिपक़्वता अभी भी दिख रही थी,जैसे कि मोदी से गले मिलने के बाद आँख मारते कैमरे में कैद हो गए।
बहरहाल सदन की इस कारवाई से किसे क्या मिलेगा तय नहीं पर ये तो तय है कि राहुल गाँधी में कुछ अपरिपक़्वता अभी भी है जिसे दूर करने की जरूरत है,और अगर खुद में कुछ बदलाव लाने में सफल हो जाते हैं तो 2019 के संग्राम में शायद इनके साथ के दल और साथी नेता कुछ विचार कर सकते हैं। जिससे राहुल की स्वीकारिता सम्भावी गठवन्धन में बढ़ सके।