सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को केंद्र और राज्य-सरकारों दोनों को सख्ती से पालन करना होगा,
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश भर में हो रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं की निंदा की। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “कानून-व्यवस्था, समाज की बहुलवादी सामाजिक संरचना और कानून के शासन को बनाए रखना राज्य का कर्तव्य है।”कोर्ट ने संसद से इस अपराध से निपटने के लिए कानून बनाने का सिफारिश की है। मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि कोई भी कानून अपने हाथों में नहीं ले सकता है। नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते हैं, वे अपने-आप में कानून नहीं बना सकते।राज्य सरकारों से कहा कि वे कोर्ट के निर्देशानुसार ऐसे अपराधों से निपटने के उपाय करे। अपराध से निपटने के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडनीय कदमों सहित कई दिशानिर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा कि भीड़तंत्र की अनुमति नहीं दी जाएगी।भय और अराजकता की स्थिति में सरकार को सकारात्मक कदम उठाना होता है। हिंसा की अनुमति किसी को भी नहीं दी जा सकती।भीड़तंत्र की भयावह गतिविधियों को नया चलन नहीं बनने दिया जा सकता, इनसे सख्ती से निपटने की जरूरत है। देशभर में सतर्क समूहों द्वारा हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग के बाद याचिका पर यह फैसला आया है।कोर्ट ने तुषार गांधी और तहसीन पूनावाला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख 28 अगस्त तय की है। पीठ ने केन्द्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे न्यायालय के निर्देशानुसार ऐसे अपराधों से निपटने के लिए कदम उठाएं।