महबूबा की धमकी,कहा- पीडीपी को तोड़ा तो हालात और बदतर होंगे,कई सलाहुद्दीन पैदा होंगे
दिल्ली जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) में किसी भी संभावित टूट पर दिल्ली की सरकार को धमकी दी है। पी डी पी की नेता महबूबा ने कहा- “1987 की तरह अगर दिल्ली ने यहां (जम्मू-कश्मीर) की अवाम के वोट के अधिकार को छीनने की कोशिश की या किसी तरह की जोड़तोड़ की कोशिश की तो यहां सैयद सलाहुद्दीन और यासीन मलिक पैदा होंगे। मैं समझती हूं कि केंद्र की दखलंदाजी के बिना पार्टी में तोड़फोड़ नहीं की जा सकती।” ज्ञात हो कि 19 जून को भाजपा ने महबूबा सरकार से समर्थन वापस लिया था। भाजपा पर पीडीपी को तोड़ने का आरोप लग रहा है, पीडीपी के 5 विधायक बागी हो चुके हैं। ऐसे में महबूबा ने एकतरह से ये कह दिया है कि कश्मीर दुबारा 1990 के दौर में चला जायेगा जिस समय वहां आतंक चरम पर था। सैयद सलाहुद्दीन हिजबुल मुजाहिदीन का सरगना है। वह फिलहाल पाकिस्तान में रह रहा है। सलाहुद्दीन ने 1987 में विधानसभा चुनाव लड़ा,लेकिन हार गया। उसका दावा था कि उसे धोखा दिया गया। लोगों को वोट नहीं डालने दिया गया। उस वक्त सलाहुद्दीन ने कहा था, ”हम शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा में जाना चाहते थे,लेकिन हमें ऐसा नहीं करने दिया गया, हमें गिरफ्तार किया गया और आवाज को दबाने की कोशिश की गई। कश्मीर मुद्दे के लिए हथियार उठाने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।’अमेरिका ने भी सलाहुद्दीन को ग्लोबल आतंकी घोषित किया है। कुछ महीने पहले सलाहुद्दीन ने कहा था कि कश्मीर को भारतीय सेना का कब्रगाह बना देंगे। उसने अपना नाम नवंबर 1990 को यूसुफ शाह से बदलकर सैयद सलाहुद्दीन कर लिया। यासीन मलिक कश्मीर का अलगाववादी नेता है। यासीन भी भारत सरकार पर ज्यादती का आरोप लगाते हुए आजाद कश्मीर का पैरोकार है और अलगाववादियों के साथ है।
अब भाजपा -पी डी पी गतवबंधन की सरकार टूटते ही पीडीपी में बगावत शुरू हो गई है। हलाकि सत्ता में रहने के वक्त भी पार्टी में विरोध के सुर उठे थे लेकिन उस समय महबूबा के सामने विद्रोहियों की एक ना चली और शांत रह गए। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। महबूबा के हाथ कमजोर हो गए हैं। ऐसे में पांच विधायक पीडीपी नेतृत्व के खिलाफ बयान दे चुके हैं। इनमें बारामूला के विधायक जावेद हसन बेग, विधायक आबिद हुसैन अंसारी, उनके भतीजे इमरान हुसैन अंसारी, तंगमार्ग से विधायक मोहम्मद अब्बास वानी और पट्टन से विधायक इमरान अंसारी का नाम शामिल है। इंनसबकी संभावित टूट के लिए महबूबा दिल्ली और मोदी को जिम्मेवार मानती है और सीधा मोदी पर आरोप लगाती है कि दिल्ली के बिना कोई टूट नहीं हो सकती ऐसे में अगर पी डी पी टूटती है तो केंद्र की सरकार को खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू-कश्मीर के बीजेपी अध्यक्ष रवींद्र रैना ने कहा कि महबूबा मुफ्ती का बयान बहुत ही आपत्तिजनक और शर्मनाक है। बीजेपी पीडीपी को तोड़कर सरकार बनाने की कोशिश नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि हम राज्य को शांति, सुशासन और विकास की ओर ले जाना चाहते हैं।बता दें कि महबूबा मुफ्ती का बयान ऐसे समय में आया है जब बीजेपी के सहयोगी, पूर्व अलगाववादी सज्जाद लोन का पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पीडीपी में एक राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर इसके बागी विधायकों का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। 87 सदस्यीय जम्मू और कश्मीर विधानसभा में सत्ता हासिल करने के लिए जरूरी सदस्यों के जादुई आंकड़े किसी भी पार्टी के पास नहीं हैं। सदन में, पीडीपी के पास 28 विधायक, बीजेपी के पास 25 विधायक हैं और इसे पीपल्स कांफ्रेंस के दो विधायकों और लद्दाख के एक विधायक का समर्थन प्राप्त है। राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 44 विधायकों के समर्थन की जरूरत है।जम्मू कश्मीर में भाजपा के समर्थन वापसी के बाद से पीडीपी में कोहराम मचा है। पार्टी के विधायकों ने अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। सबसे पहले, इमरान रजा ने निशाना साधते हुए उन पर भाई-भतीजावाद फैलाने का गंभीर आरोप लगाया। इमरान ने अपने आरोप में कहा कि महबूबा ने अपने दिवंगत पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के उन सपनों को तोड़ दिया जो उन्होंने देखे थे।इमरान ने राजनीति में कदम रखने वाले तस्दुक मुफ्ती को इस साल कैबिनेट मंत्री बनाने और महबूबा के रिश्तेदार सरताज मदनी को पार्टी में अहम पद देने के मामले में कहा कि यह एक तरीके का परिवार का शो बन गया था जिसे भाइयों, चाचाओं और बाकी के रिश्तेदारों के जरिए चलाया जा रहा था। इसके चलते पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ‘फैमिली डेमोक्रेटिक पार्टी’ बन गई है।
अब अपने घर को एक जुट रखने में नाकाम महबूबा दूसरो पर आरोप लगा रही है। ये सच है कि सियासत में पद और सत्ता की पूछ होती है और महबूबा सियासी भाषा से ज्यादा उस जहर को उगल रही है जो देश विरोधी है,राजनीती के मोर्चे पर जिस तरह लड़ना हो लडे पर इसमें देश की सुरक्षा और एकता पर सवाल ना खड़ी करे।इस मुद्दे पर चाहिए कि अभी एक मत होकर सभी देश हित से जुडी पार्टिया महबूबा का विरोध करे,आतंक की भाषा बोलनेवालों को उसी भाषा में समझा दिया जाये। वरना अगर पुरजोर विरोध नहीं हुआ तो महबूबा और अलगाववादियों के मंसूबे और मजबूत होंगे।