भोपाल। हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है इसे लेकर लोग अक्सर चर्चा करते हैं। आज के दौर में हर कोई भाग रहा है। किसी के पास वक्त नहीं है। हर कोई अर्थ के पीछे पड़कर इंसानियत को, मानवता को और अपनों को भूलता जा रहा है। जन्म देने वाली कामकाजी मां के पास अपने दुधमुंहे बच्चे के लिए वक्त नहीं है। मां के गर्भ से निकलकर बच्चा या तो आया की गोद में पहुंच जाता है या डे केयर में हर घंटे की कीमत चुका कर हम अपने मन को सांत्वना दे देते हैं कि हमारा बच्चा सुरक्षित हैं। मां और बच्चे के बीच का रिश्ता सबसे मजबूत, अटूट और पवित्र होते हैं, लेकिन इस खोखले समाज में इस रिश्ते की डोर तो भी जंग खाती जा रही है। मां के पास बच्चे के लिए वक्त नहीं है तो बड़े हो चुके बेटे के पास बूढ़ी मां के लिए सहारा नहीं है।
जिस मां ने उसे पाल पोष कर बड़ा कर दिया वो उसे ही उसके जीवन ने अंतिम समय में घर से निकालकर फेंक देता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जनसुनवाई के दौरान कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जिसे जानकर आपका कलेजा पसीज जाएगा। जिसने भी उस दृश्य को देखा उसकी आंखें भर आई। जिस मां ने अपने खून से सींच कर बेटे को जन्म दिया। उनके पाल-पोषकर इस लायक बनाया कि बूढ़ापे में वो उसका सहारा बन सके वो मां अब अपने बेटों को जेल भेजने के लिए पुलिस के चक्कर काट रही है। 120 साल की एक बुजुर्ग महिला अपनी पीड़ा लेकर आईडी साहब के सामनवे पहुंची। लड़खड़ाती हुई वो अपनी शिकायत अधिकारियों के सामने कहने लगी। कई बार उसका गला सूख गया। अपनी व्यथा बताने के दौरान उसकी आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। सामने बैठे आईजी साहब को जब उस मां ने अपनी पीड़ा सुनाई को सबकी आंखे भर आई। बुजुर्ग महिला जो लाठी के सहारे भी ठीक से चल नहीं पा रही थी वो अपने बेटे की शिकायत लेकर अधिकारियों के सामने खड़ी थी। जो मां अपने बच्चों की सुरक्षा कवच कहलाती है वहीं मां अपने बेटों की गिरफ्तारी की मांग कर रही थी।
120 साल की महिला का नाम फूल बाई है, जो अधिकारियों से गुजारिश करती है कि वो उसके बड़े बेटे को जेल भेज दें। मां कहती है कि उसने मेरा घर छीन लिया है। पेंशन ले लिया। मुझे मारापीटा और घर से निकाल दिया। कहने को तो मेरे पांच बेटे हैं, लेकिन कोई भी उसे रखने को तैयार नहीं है। उसे बोझ समझते हैं और इसी बोझ को हल्का करने के लिए उनके बड़े बेटे ने उन्हें सीढ़ियों से धक्का दे दिया। अब वो ठीक से चल तक नहीं पाती। कमर की हड्डी टूट गई। फूल बाई की बातें सुनकर अधिकारियों के आंखों से आंसू निकलने लगे।
बासौदा निवासी फूल बाई वन-ट्री हिल्स बैरागढ़ में सबसे छोटे बेटे लल्लू जोगी के साथ रहती हैं। उनके उनके पति नगर पालिका से रिटायर थे। उनकी मौत के बाद पेंशन ही उनके जीवन का सहारा है। लेकिन बेटों ने उसे रखने से इंकार कर दिया। बड़ा बेटा पेंशन लेता है, लेकिन उसे घर में नहीं रखता। फूल बाई ने आईजी से कहा कि मेरे पांच बेटे और दो बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी 80 साल और सबसे बड़ा बेटा 65 साल का है। मेरे चारों बड़े बेटों ने मेरा मकान छीनकर कब्जा कर लिया है। बड़े बेटे और बहू ने उसके साथ मारपीट की और सीढ़ियों से धकेल दिया। अकाउंट से सारे पैसे भी निकलवा लिए। फूल बाई बताती हैं कि उनका छोटा बेटा हाथों से दिव्यांग है। उस पर पांच बच्चों के अलावा अब उनकी जिम्मेदारी भी आ गई है। फूलबाई की उम्र को लेकर थोड़ा विवाद है। फूलबाई खुद को 120 साल की बताती है, लेकिन आधार कार्ड में उनकी उम्र 80 साल है। आधार अधिकारियों का कहना है कि दरअसल आधार में 99साल से ऊपर के उम्र का विकल्प नहीं है। इस लिए ऐसा हो सकता है। वहीं फूल बाई की शिकायत पर अब अधिकारियों ने उन्हें न्याय दिलाने की बात कही है।
इस मामले ने अधिकारियों की आंखे खोलकर रखे दी। एक बूढ़ी मां के लिए उनके 4 बेटों में से किसी के पास जगह नहीं थी। जब मां उन्हें सहारा देने लायक नहीं रही तो बेटों ने उसे बेसहारा छोड़ दिया। ये घटना केवल फूील बाई की नहीं बल्कि हमारे समाज की समस्या बन चुकी है। समाज पर पाश्चात सभ्यता के बढ़ते प्रभाव ने हमारी सोच को बदल दी है। न्यूक्लियर फैमिली फैशन बन गई है। पति-पत्नी और बच्चा यहीं संसार रह गया है। बुजुर्ग अकेलापन और एकांत जीवन जीने को विवश हो गए हैं। समस्या हमारी बदलती जीवनशैली की है, जिसमें घर के बुजुर्गों के लिए जगह ही नहीं है। जरूरत है अपने साथ-साथ समाज के सोच को बदलने की। मां-बाप बेटों की चाहत इसलिए रखते हैं कि बूढ़ापे में वो उनका सहारा बनेगा, लेकिन वहीं सहारा आज उनकी लाठी छीनने पर उतारू है। उम्मीद करते हैं कि फूल बाई जैसे लोगों की स्थिति सुधरे और बदलाव की रेस में भाग रहे युवा दो पल ठहरकर जरा अपने बुजुर्ग माता-पिता को भी सहारा दे सके।