नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी को क्योटो बनाने के प्रक्रिया में काशी विस्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण का काम शुरू किया जाना है। इस के लिए बनारस के ललिता घाट से विश्वनाथ मंदिर तक 200 से अधिक भवन चिन्हित किए गए हैं, जिन्हें तोड़ा जा रहा है। खास बात ये है कि इन भवनों में लगभग 50 की संख्या में प्राचीन मंदिर व मठ शामिल हैं। ये सभी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की ज़द में आने वाले मंदिर हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने काशी को क्योटो बनाने की बात कही थी, यही कारण है कि सरकार काशी की पौराणिक महत्व को न समझ कर इस धरोहर के साथ छेड़खानी कर रही है। काशी के मंदिर के कॉरिडोर का विस्तार करने के लिए ललिता घाट से बाबा मंदिर तक के दो सौ से अधिक भवन को हटाने का प्रयास किया जा रहा है । जिसके विरोध में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अनशन पर बैठ गए हैं। सरकार के इस कदम से प्राचीन धरोहर की क्षति हो रही है , इस धरोहर के रक्षा हेतु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 12 दिनों के अनशन पर बैठे हैं। उनका कहना है कि पक्का महाल काशी का ह्रदय स्थल है , और इसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। पक्का महाल को शिव जी ने स्वंय मूर्तरूप दिया था इसलिए अगर पक्का महाल नष्ट हो गया तो पूरी काशी नगरी के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यहां बात सिर्फ पक्का महाल का ही नहीं है बल्कि देशवासियों की आस्था और भावना का भी प्रश्न है ।
काशी के इस धरोहर को बचाने के लिए इन प्राचीन मंदिरों, देव विग्रहों की रक्षा के लिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 12 दिन के उपवास पर बैठे हैं। उन्होंने कहा है कि काशी का पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं भगवान शिव ने मूर्तरूप दिया था। अगर सरकार ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के कारण पक्का महाल के पौराणिक मंदिरों और देव विग्रहों को नष्ट करने से काशी ही नष्ट हो जाएगी। उन्होंने कहा कि पक्का महाल ही काशी का मन, मस्तिष्क और हृदय है। उन्होंने कहा कि अगर पक्का महाल को तोड़ा गया तो यह 125 करोड़ देशवासियों की आस्था पर प्रहार होगा। उन्होंने आगे कहा कि पुराणों-ग्रंथों में पढ़कर देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए आते हैं। काशी को बचाने के लिए अनशन पर बैठे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को अब लोगों और साधु-संतो का सात मिल रहा है। उनके अनशन के समर्थन में वाराणसी के केदारघाट के बगल में स्थित श्रीमद शंकराचार्य घाट पर गंगा सेवा अभियानम के तत्वावधान में दर्जनों लोगों ने गंगा में गले तक जल मे खड़े होकर उनका समर्थन किया।
क्या है पक्का महाल का इतिहास
पक्का महाल को लघु भारत भी कहा जाता है और ये ही काशी की असल धरोहर है। असल में पूरी काशी
नगरी पक्के महाल में है क्योंकि देश के सभी स्टेट का प्रतिनिधित्व इसी पक्के महाल में ही होता है। पूर्व में
राजा महाराजाओं ने घाट तथा उनसे सटी गलियों का निर्माण कराया ,जिसमें उन्होंने अपने अपने नागरिकों
को बसाया इसीलिए ये गलियां विवधता में एकता का सूचक हैं । इस पक्का महाल के अन्तर्गत सारे तीर्थ
स्थल हैं, पूरे विश्व में प्रसिद्ध बनारसी साडी की गद्दी इन्हीं गलियों में है । यहां के लोग विपरीत से विपरीत
परिस्थितियों में कैसे जीते है, ये देखने से पता चल जाएगा । पक्का महाल की जीवन शैली बडा ही अद्भुत
है। काशी की कल्पना पक्का महाल के बैगर करना उचित न होगा। यहां पर हर समुदाय के अलग अलग
मंदिर हैं। यहां की जीवन शैली को देखने के लिए सात समंदर पार से पर्यटक आते हैं। इतना ही नहीं पक्का महाल और उसकी गलियां राजस्व बढाने का एक सशक्त माध्यम भी है। यहां के लोंगो का आर्थिक विकास इसी महाल पर ही निर्भर है। बनारस का राजस्व में 20 से 25 फीसदी भागेदारी पक्का महाल की होती है। ये आप में कई संस्कृति को समेटे हुए है ।
पक्का महाल की प्रसिद्ध गलियां
काशी में पक्का महाल की गलियां अपने आप में बहुत खास है । इन गलियों की बनावट देखकर
विदेशों के इंजीनियर भी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। कहा जाता है अगर आप अकेले इन गलियों में
चले गये तो आप शायद ही अपने डेरे पर पहुंच पाएंगे, क्योंकि ये गलियां इतनी पतली और एक
दूसरी से जुडी हुई हैं कि कोई भी आसानी से गुम हो सकता है। यहां की हर गली एक जैसी ही लगती हैं और सभी एक दूसरे से जुड़ी है।
राजनीति पर इसका असर
अगदर काशी के धरोहर के साथ छेड़छाड़ की गई तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कदम से उनकी राजनीति पर भी असर पडेगा , क्योंकि काशी उनका संसदीय क्षेत्र है। वहीं स्वामी जी का कहना है कि यह विषय रामजन्म भूमि से भी बडा विषय है ,क्योंकि यहां सिर्फ एक मंदिर की बात नहीं हैं बल्कि हर समुदाय के लोगों से जुड़ा मुद्दा है। यहां हर समुदाय का मंदिर है। इन सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि जो सरकार मंदिर बनाने के लिए इतनी बड़ी लड़ाई लड़ रही है ,क्या वो मंदिर तोड़ने का समर्थन करेगी ।