अलवर में नृशंश हत्या पर भाजपा नेता की जहरीली जुबान
एक पहलु था। अब अकबर उर्फ़ रक़बर भी उसी फेहरिस्त में शामिल किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट के डंडे के बाद भी इस तरह की घटनाये रुक नहीं रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जब मोब-लिंचिंग के खिलाफ सरकारों को फटकारा था तो उस समय गौरक्षकों को इस दायरे से बाहर नहीं रखा था और मोब-लिंचिंग में शामिल आरोपी लोगो की संख्या भी तय नहीं की थी। घटना में चाहे दो हों या भीड़. उसे मोब-लिंचिंग ही माना जाना चाहिए।
अलवर घटना के बाद बहस होने लगी। किसी ने इसे गोरक्षा से जोड़ा तो किसी ने इसे मोब-लिंचिंग से बाहर माना। लेकिन सवाल ये है कि क्या इस तरह से होने वाली किसी भी हत्या या घटना को तर्क-कुतर्क से जस्टिफाई किया जा सकता है?रोजाना इस तरह की घटनाये बढ़ती ही जा रही है। जिसदिन इस फैसले को कोर्ट ने सुनाया उस दिन भी मोब-लिंचिंग की घटना घटी और वो ब-दस्तूर जारी है।
अब तो इस मामले में हद ही गई। अब एक भाजपा नेता जो केंद्रीय मंत्री भी हैं, ने जब अपना मुँह खोला तो मानो जहर उगल दी हो। केंद्रीय वित्त-राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने प्रेस से बयान देकर कहा कि प्रधान मंत्री मोदी जी जितने प्रसिद्ध होंगे ऐसी घटना बढ़ती रहेगी। उससे आगे उन्होंने इस घटना पर निंदा तो व्यक्त की साथ ही इसे छोटा बताने लिए कह डाला कि मोब-लिन्चिग की सबसे बड़ी घटना 1984 का सिख दंगा था। लानत है ऐसी सख्सियतो पर जो इतने जिम्मेवार पद पर भी रहते हुए जाहिलों की भाषा बोलकर इस तरह की घटनाओ को हलके में नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं।
अब मंत्री जी को कौन समझाये कि इतिहास से लोग सीखते हैं,इतिहास यह नहीं तय करता कि भूत अगर बदतर था तो वर्तमान बेहतर नहीं होगा। ये तो तय है कि कभी जयंत तो कभी गिरिराज अपने बड़बोलेपन में कुछ भी कर जाते हैं और माफ़ी शब्द का इस्तेमाल कर अपराध मुक्त हो जाते हैं। हो सकता है अगले ही पल मेघवाल भी जुबान फिसलने या मीडिया पर तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगा पल्ला झाड़ लें, लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसे लोगों पर देश का सबसे बड़ा नेता चुप क्यों रह जाता है। मोदी की तरफ से कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठता?