योगी सरकार की पुलिस द्वारा किये गए एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट को जबाब क्या होगा ?
उत्तर प्रदेश में जिस समय योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री का पद संभाला उस समय प्रदेश में अपराध चरम पर था और चारो तरफ गुंडागर्दी और हत्यायों का दौर जारी था। ऐसे माहौल में सुधार को लेकर जब सूबे की पुलिस सख्त हुयी तो बदमाशों पर नकेल कसने के लिए एनकाउंटर का दौर शुरू हो गया। प्रदेश में लगातार मुठभेड़ के कारण अपराधियों में भी हड़कंप मच गया। कहा तो ये भी गया कि अब प्रदेश के गुंडे बदमाश जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर जेल जाने लगे। खुद सूबे के सी एम ने इस बात को कई बार अपने मंच से लोगों के बीच साझा किया है।
लेकिन जहाँ एक तरफ योगी आदित्यनाथ इस मिशन से काफी खुश दिख रहे थे वहीँ विपक्ष इस पर सवाल भी उठाता रहता है। इसके साथ ही अब कई लोग मानवाधिकार की दुहाई देकर मुहीम की हवा निकालने में लग गए हैं। एक गैर सरकारी संगठन पी यु सी एल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर ये मनाग की है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में जितने भी मुठभेड़ हुए उनकी एक स्वतंत्र एजेंसी या सी बी आई से जाँच कराई जाये और इस जाँच की निगरानी भी सुप्रीम कोर्ट ही करे। इसके अलावा मुठभेड़ में मारे गए मृतकों के पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की मांग भी रखी गयी है। याचिका के अनुसार साल भर में सूबे में इग्यारह सौ मुठभेड़ हुए जिसमे उनन्चास लोग मारे गए हैं।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या वजह है जो उत्तरप्रदेश सरकार की पुलिस द्वारा किये गए मुठभेड़ों पर आरोप लगाया जा रहा है? क्या ये सूबे की पुलिसिया करवाई पर सवाल है या योगी की कार्य शैली पर सवाल उठाकर उनकी परेशानी बढ़ाने की सोची समझी साजिश है? अपराध मुक्त प्रदेश बनाने के लिए अपराधियों को ख़त्म करने के मिशन को ध्वस्त करने की योजना तो नहीं ? राज्य में अपराध का ग्राफ बढ़ता है तो उसपर भी सवाल उठाये जाते हैं। ये मानवाधिकार की आड़ में कहाँ-कहाँ अपना खेल खेलेंगे ? इन्ही मानवाधिकारों के लड़ाकों की वजह से कई बार जम्मू-कश्मीर जैसे सूबे में होनेवाली कई कार्रवाईयों पर हंगामा और सवालों ने सेना और सुरक्षा एजेंसियों के मनोबल को गिराने का काम किया है।एक पत्थरबाज को जीप के आगे बांधकर गोगोई ने कइयों की जान बचायी पर मानवाधिकारों के डंडे ने खूब रुलाया। इन कथित मानवाधिकारियों ने आतंकी,उग्रवादी और अपराधी तत्व द्वारा लगातार हो रही हत्या पर कभी आवाज नहीं उठायी। क्या कभी एक सामान्य जन की हत्या के सवाल पर ये मानवाधिकार के ठेकेदार ने न्यायालय जाकर कार्रवाई की मांग की? कभी सरहद पर सैनिकों पर हो रहे हमलो पर कोर्ट में ये अर्जी दाखिल किया कि हमलावर पर सरकार क्या कारवाई कर रही है ? जब दो गैंगवार में लोग मारे जाते हैं,उस समय मानवाधिकार किससे सवाल पूछता है ?
निश्चित तौर पर हमारी ये मानसिकता कदापि नहीं है कि निरीह और निर्दोष का एनकाउंटर कर दिया जाये या उसके साथ अमानवीय व्यव्हार किया जाये। हमारी मानसिकता ऐसी भी नहीं है कि मुख्यधारा में अगर किसी अपराधी को लौटने का मौका दिया गया हो और उसका वो बेजा फायदा उठा रहा हो तो उसे हम मेहमान बना कर रखें। अगर अपराधी अपराध करता है तो कानून अपना काम करेगा और अगर कानूनी रस्ते से अपराधी भागता है तो फिर उसके लिए इस समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ऐसे में अगर योगी सरकार ये नारा देती है कि अपराधी को या तो जेल की हवा खानी होगी या फिर गोली खानी होगी,तो इसमें बुरा क्या है ? हर सरकार और पुलिस का दायित्व है कि आरोपी को मौका दे कि वो खुद को सही साबित कर सके पर इसपर भी अपराधी अपराध से बाज नहीं आये तो पुलिस को कार्रवाई का अधिकार होना चाहिए।
अब अहम् सवाल ये है कि मुठभेड़ की सत्यता क्या है ? पुलिस कहीं फर्जी मुठभेड़ तो नहीं कर रही आरोपियों को मौत की नींद सुलाने के लिए? ये भी वाजिब सवाल हैं योगी और उनकी पुलिस के सामने,जिसका जबाब देना जरूरी भी है,जाँच चाहे किसी स्वतंत्र एजेंसी से हो या सी बी आई से अगर मुठभेड़ सच्चाऔर वाजिब है तो जाँच से इंकार भी नहीं होनी चाहिए। वैसे तो सत्य ये भी है कि उत्तरप्रदेश के सी एम सुप्रीम कोर्ट को सरकार की तरफ से संतोषजनक जबाब देकर सारे सवालों को यहीं ख़त्म कर देंगे। लेकिन अब बात-बात में मानवाधिकार की बात करनेबाले भी पहले मामले को समझ-बूझ ले और खामखाह इस तरह के सवालों के जरिये सुरक्षा बलों और पुलिस के मजबूत इरादों को भी कमजोर न करे तो देशहित और समाज के लिए अच्छी बात होगी। अगर ऐसे ही सवाल उठाये जाते रहे तो ना तो सरकार और ना ही सुरक्षा एजेंसी अपने लिए ही संकट खड़ा करने का कोई शौक पालेगी।