कितना व्यावहारिक और विश्वसनीय होगा एक चुनाव?
इन दिनों देश भर में एक साथ विधान सभाओं और लोकसभा चुनाव करने को लेकर बातचीत और बहस जारी है। इस बीच विधि आयोग ने देश के सभी दलों को आनेवाले दूसरे सप्ताह में आमंत्रित किया है, इस विषय पर विचार करने और अपनी राय देने के लिए। हलाकि इस विषय पर विचार-विमर्श काफी समय से जारी है। पूरे देश भर की जनता से भी इस मुद्दे पर विधि आयोग ने सुझाव मंगाए हैं। इसके अलावा दूसरे अन्य माध्यमों से भी लोगो के विचारों को जानने की कोशिश की गयी है।
इस मुद्दे पर भारत का नीति-आयोग पहले ही अपना मत दे चुका है और कहा है कि पूरे देश में एक साथ सारे चुनाव कराना देशहित में होगा। आयोग का मानना है कि 2024 से लोक-सभा और विधान-सभा चुनाव एक साथ हों। नीति-आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि लोक-सभा और विधान-सभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित की जाये जो इस सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें दे। इस फैसले के कारण कई विधान-सभाओं के कार्यकाल या तो घटाने पड़ेंगे और कई के कार्यकाल बढ़ाने होंगे,और इसके लिए संविधान विशेषज्ञों,थिंक टैंक,सरकारी अधिकारियों और विभिन्न राजनितिक दलों के प्रतिनिधियों का विशेष समूह गठित किया जाना चाहिए।
दूसरी तरफ सिविल सोसाइटी भी मानती है कि अगर स्थानीय निकायों के चुनाव भी शामिल कर लें तो कोई साल ऐसा नहीं जाता, जब भारत में कहीं न कहीं चुनाव न हो रहे हों। इसके चलते राजनीतिक दल एक से बढ़कर एक लोक-लुभावन और अक्सर असंभव से दिखने वाले वादे करते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं। देश का थिंक टैंक भी समझता है कि लगातार चुनावी मोड में रहने के चलते देश के अंदर और बाहर अस्थिरता बढ़ती है और आर्थिक-विकास रुक सा जाता है। अक्सर चुनावी अभियान के कारण चलते सामाजिक ,जातीय,सांप्रदायिक माहौल भी ख़राब होता है। एक साथ चुनाव कराए जाए तो देश का सबसे बड़ा फायदा खर्च में कटौती आएगी। एक अनुमान है कि केवल 2014 के एक चुनाव में लगभग तीस हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अलग अलग राज्यों के विधान सभाओं के चुनावों के खर्चे को जोड़ दिया जाये तो ये कई गुना बढ़ जायेगा। अलग-अलग समय पर चुनाव की वजह से हमारे सुरक्षा कर्मी सालो भर किसी न किसी चुनाव की प्रक्रिया में लगे रहते हैं,अगर एक बार इनकी सहायता ली जाये तो बाकि समय हमारे सुरक्षा बलों को अपनी मूल जिम्मेवारी निभाने में दिक्कते नहीं आएंगी।
लेकिन इस मुद्दे पर अभी सर्वमान्य राय नहीं बन पायी है,कई दलों को ये स्वीकार नहीं होगा,खासकर क्षेत्रीय दलों को हर समय शंका रहेगी कि चुनाव में एक केंद्रीय मुद्दा हावी रहेगा और वो रेस में पीछे रह जायेगे। दूसरी तरफ कई राज्य सरकारों के उस समय के वर्तमान काल को घटाने में आपत्ति होगी। एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें नहीं हैं,वहां के मुख्यमंत्री समय से पहले ही कुर्सी छोड़ने के लिए क्यों तैयार होंगे? लेकिन पीएम मोदी, उनकी पार्टी बीजेपी और राष्ट्रपति महोदय अगर ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार उत्तम मानते हैं तो इसमें कोई अच्छी बात तो होगी ही।.वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 2012 में ही कहा था कि पूरे देश में एक चुनाव पर काम करने की जरुरत है।
‘एक देश, एक चुनाव’- विचार सबको लुभाता है और सुनने में कानों को अच्छा भी लगता है। देश के पीएम मोदी जी के बाद देश के महामहिम राष्ट्रपति भी इसी विचार को दोहराएं तो यह विचार उपयोगी भी लगने लगता है। मोदी जी ने पिछ्ले साल कानून दिवस के अवसर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ सम्पन्न कराने की बात दोहराई थी। इसके बाद बजट-सत्र के दौरान दिए गए अपने अभिभाषण में जब महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि देश में बार-बार चुनाव होने से न केवल संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है बल्कि आचार-संहिता लागू होने की वजह से देश के विकास में भी बाधा पहुंचती है तो लगा निश्चित ही इस बारे में सरकार के अंदर काम जोर-शोर से चल रहा है।
लेकिन संकट भी कई सारे और हैं,मसलन संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ सम्पन्न कराने की वकालत करता हो। इससे राज्यों की स्वायत्तता भी प्रभावित होगी। चुनाव आयोग की राय है कि इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि संविधान विशेषज्ञ एक साथ चुनाव कराने को संघीय ढांचे पर प्रहार भी बताते हैं।
मोदी सरकार फ़िलहाल इस मुद्दे पर काफी आक्रामक दिख रही है। इसलिए वह ‘एक देश, एक चुनाव’ की वकालत कर रही है। लेकिन संविधान में संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए। ऐसा अभी कैसे संभव है? अगर हम भविष्य की बात करें तो यह एक अच्छा विचार है लेकिन सारे पक्षों के विश्लेषण और लाभ-हानि सुनिश्चित करने के बाद ही इस राह पर कदम रखना उचित होगा।इसके लिए भारत के संविधान, संघीय ढांचे, निष्पक्ष चुनाव और जनता-मतदाता की सहर्ष हिस्सेदारी भी जरूरी है। ऐसे में देखना ये है कि विधि आयोग द्वारा बुलाये गए दो दिवसीय बैठक का नतीजा क्या निकलता है?