कैसे बदलेगी कुत्सित मानसिकता ,कौन रोकेगा मासूमो पर अत्याचार ?
मध्यप्रदेश के मंदसौर में एक सात-आठ साल की स्कूली बच्ची के साथ निर्मम वारदात पर आज एक बार फिर इंसानियत शर्मशार होकर जड़वत उस ओर देख रही है जहाँ से कुछ उम्मीद भरा रास्ता होना चाहिए। पर हरबार यही होकर रह जाता है,एक निर्भया का दर्द कम नहीं होता हमारे सामने एक और निर्भया कराहती दिख जाती है। फिर हम एक नयी निर्भया के दर्द को अपना दर्द कह सहानुभूति के विचारो के तले दबाकर चैन ले लेते हैं।पर रुकिए अभी आपको और भी दर्द झेलने है,अभी और निर्भया का सामना करना है आपको।अभीतक आपने अपने नजदीक की निर्भया का दर्द झेला है,कल ईश्वर न चाहे आपको अपने घर की निर्भया का भी दर्द झेलना पड़ जाय।आखिर क्या करेंगे तब आप?आपरोएंगे,आपकी निर्भया रोएगी,आपके चाहनेवाले रोएंगे और साथ ही सारी दुनिया रोएगी।उसके बाद क्या होगा?यकीन मानिये इससे न तो आपका दर्द कम होगा ना ही आपकी निर्भया का। फिर क्या करेंगे आप ?
जब दिल्ली में निर्भया सतायी गयी थी तो वो पहली निर्भया नहीं थी,पहले भी अनगिनत निर्भया ऐसे ही दर्द और सदमे के दौर से गुजर चुकी होंगी।वो किसी माँ-बाप की संताने नहीं थी क्या? हाँ ये अलग बात है कि उनके लिए इतनी सारी मोमबत्तिया,मशालें और तख्तियां नहीं होंगी पर सोचिये उन निर्भयाओं ने कम दर्द महसूस किया होगा क्या ?
आज हर रोज हमारे बीच निर्भया को दबोचने को शातिर तैयार बैठा है। हम उसे पहचानते और जानते भी है। ऐसी वारदातों को अंजाम देनेवाला कभी नवसिखुआ नहीं होता है,या ये वो शातिर नहीं होते हैं जिनसे एकाध बार गलती हो जाती है(एक बड़े राजनेता के अनुसार)। इनकी मानसिकता ही स्वाभाविक रूप से आपराधिक होती है। इस बात से कार्रवाई करनेवाले इंकार कर सकते है,क्योंकि उन्हें अपने आप से पाप का आरोप जो धोना है। मिसाल के तौर पर मंदसौर में जिस आरोपी को पकड़ा गया है वो शतिर बदमाश था,पुलिस रिकॉर्ड में उसपर पहले से ही गंभीर आरोप दर्ज़ हैं। पुराने अपराधों के मामले में पुलिस ने क्या किया,कैसे वो खुलमखुल्ला घूम रहा था? उसे तो सलाखों के पीछे होना चाहिए था। आरोपी के आसपास और इर्दगिर्द के लोगों ने क्या किया? पुलिस और हमारी सजगता से अगर ये निर्भया इस यातना से बच जाती तो एक निर्भया की संख्या तो कम होती।
दिल्ली की निर्भया कांड के बाद कठोर कानून भी बने पर इसतरह का अपराध घटा नहीं ,बल्कि और ज्यादा बढ़ गया।क्या इस कानून को सख्ती से लागू किया गया?कितनेअभियुक्तों पर करवाई की गयी?
अगर करवाई की गयी तो इस सन्देश या फैसले को किस हद तक लोगों के बीच फैलाया गया? सरकार अथाह पैसा खर्च करती है अपना चेहरा चमकाने को,क्या अभी तक आपने कभी सरकार या पुलिस और न्यायालय द्वारा किसी ऐसी जानकारी भरी सूचना या प्रचार-प्रसार को देखा है कि किसी निर्भया के आरोपी को तय सजा दे दी गयी? नहीं ,ऐसा हो न सका। अगर ऐसा हुआ होता तो शायद खौफ पैदा होता ऐसे दरिंदों में,कोई नया इरफ़ान ( मंदसौर कांड का आरोपी ) पैदा लेने से डरता। हम भी सार्वजानिक तौर से कह सकते ,सचेत कर सकते,क्योंकि सभी इरफ़ान को हम पहचानते नहीं परन्तु एक सन्देश तो दे ही सकते हैं कि अंजाम भुगतना होगा। वारदात शून्य हो जाता ऐसा नहीं कहा जा सकता पर कम तो हो सकती थी ऐसी घटना।
वैसे ये केवल पुलिस और सरकार भर की जबाबदेही नहीं है,ये हमारी भी जबाबदेही है,हम इस तरह के संदिग्धों को पहचाने,इनके खिलाफ सही जगह पर शिकायत या सूचना दें। और इसमें पुलिसिया तंत्र को भी थोड़ा सजग और सरल होना होगा,ताकि ऐसी पहल करनेवाले लोग सामने आने की हिम्मत बना सके। केवल तोड़फोड़,बंद,आगजनी,उग्र प्रदर्शन और आरोप-प्रत्यारोप से कुछ नहीं होनेवाला,चार दिनों तक मिडिया की सुर्खियां बनेगी फिर अगले दिन कोई और कठुआ की निर्भया इन्हे रंगीन स्क्रीन बनाने को मिल जाएगी। इसलिए हमे खुद से अपनी तस्वीर बनानी होगी,हमें खुद अपनी संतति के लिए आगे आना होगा।