नई दिल्ली। हिंदी के प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपालदास नीरज नहीं रहे। लंब वक्त से बीमारी से जूझ रहे गोपालदास नीरज ने दिल्लीके एम्स अस्पताल में कल शाम 7 बजकर 35 मिनट पर अंतिम सांस ली। 4 जनवरी 1925 को जन्में गोपालदास नीरज को लंबे वक्त से सांस लेने में तकलीफ की समस्या थी। पहले उनका इलाज आगरा के लोटस अस्पताल में करवाया गया, फिर डॉक्टरों ने उन्हें एम्स रेफर कर दिया। लेकिन पद्मश्री, पद्मभूषण गीतकार और कवि गोपालदास नीरज ने गुरुवार को हम सब को छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गए।
महान कवि नीरज का जन्म इटावा के पुरावली में हुआ। उनका पूरा नाम गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ था। बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पारिवारिक समस्याओं के बावजूद नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, लेकिन उनका मन उस काम में नहीं लगा। घर की जिम्मेदारी थी इसलिए काम छोड़ नहीं सकते थे। उन्होंने सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। नौकरी करने के साथ उन्होंने प्राइवेट से परीक्षाएं देकर उन्होंने बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया था। उन्होंने मेरठ के एक कॉलेज में अध्यापन का काम किया लेकिन इसके बाद इन्होंने वो नौकरी छोड़ दी। उन्होंने अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त किए गए। नीरज की मंजिल तो कहीं और थी सो उनका मन इसमें भी नहीं लगा। कलम का जादूगर ने लिखना शुरू किया। जब उन्होंने लिखना शुरू किया तो पढ़ने वालों की तादात बढ़ने लगी। कवि सम्मेलन में उनके नाम पर भीड़ जमा होने लगी। उन्हें कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता मिलने लगी।
फिर नीरज की अगली बॉलीवुड थी। उन्होंने गीतकार के रूप में ‘नई उमर की नई फसल’ के गीत लिखने का निमंत्रण मिला। फिल्म में लिखी उनकी पहली ही गीत ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ‘ सुपरहिट हो गई। जिसके बाद उन्हें एक के बाद एक ऑफर मिलने लगे। काम बढ़ा तो नीरज ने मुंबई का रुख कर लिया। महान कवि और गीतकार गोपालदास नीरव को पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से फिर फिल्म फेयर से सम्मानित किया गया। उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। फिल्मों में बेहतरीन गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला है। उन्हें 1991 में पद्मश्री सम्मान, 1994 में यश भारती सम्मान, 2007 में पद्म भूषण सम्मान, इसके अलावा विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार और फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
8- बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ
गोपालदास नीरज की कुछ कविताएं शायद जिन्हें कोई न भूला है और न कभी भूल सकेगा। इन कविताओं के माध्यम से नीरज हमेशा से हमारे दिल में जिंदा रहेंगे। हमारे बीच जींवत रहेंगे और अपने कविताओं के बोल से हमें अपने शब्दों के जाल में फंसाए रखेंगे। उनकी सबसे चर्चित क विया जो हर किसी के जुंबा पर है….कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे’ रही:
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे.
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पांव जब तलक उठें कि ज़िंदगी फिसल गई…
गोपालदास नीरज पहले शख्स हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने 1994 में गोपालदास नीरज को ‘यश भारती पुरस्कार’ प्रदान किया।गोपाल दास नीरज को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था। गोपालदास शब्दों के जादूगर थे। उनकी एक दर्जन से भी अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें उनकी प्रमुख कृतियों में ‘दर्द दिया है’ (1956), ‘आसावरी’ (1963), ‘मुक्तकी’ (1958), ‘कारवां गुज़र गया’ (1964), ‘लिख-लिख भेजत पाती’ (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं।
महान कवि गोपालदास नीरज के निधन प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी ने अफसोस जताते हुए कहा कि उनकी कमी हमेशा खलेगी। उन्होंने गोपालदास नीरज को धर्मनिरपेक्ष रचनाकार बताया और कहा कि उन्होंने हिंदू तथा उर्दू के मंचों पर सबके साथ ताज़िंदगी मोहब्बत बांटी । उन्होंने कहा कि नीरज के बारे में सबसे बड़ी बात यह है कि वह जितने नामचीन हिंदी कविता के मंचों पर थे, उन्हें उतनी ही शोहरत और मोहब्बत उर्दू शायरी के मंचों पर भी हासिल थी। राजनेता से लेकर फिल्मकार, कवि से लेकर लेखक , प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सबने गोपालदास नीरज के निधन पर गहरा शोक जताया है।