औरंगजेब की शहादत बेकार नहीं जाएगी,घाटी में खूनी खेल को रोकेंगे कश्मीर के युवक
कश्मीर के पुलवामा में 14 जून को आतंकियों ने जवान औरंगजेब की हत्या कर दी थी। औरंगजेब छुट्टियां बिताने घर आया था। वे ईद मनाने के लिए छुट्टी लेकर घर जा रहे थे। आतंकियों ने औरंगजेब का मरने से पहले का वीडियो भी जारी किया था। औरंगजेब के पिता हनीफ सेना से रिटायर्ड हैं। 2014 में आतंकियों ने औरंगजेब के चाचा को अगवा कर उनकी हत्या कर दी थी। पुंछ में औरंगजेब के सुपुर्द-ए-खाक के दौरान अंतिम विदाई देने के लिए हजारों लोग मौजूद थे।इसी साल जून महीने में आतंकियों ने उसे अगवा कर उसके साथ टॉर्चर किया जिसका बड़ी बहादुरी से औरंगजेब ने सामना किया और दो टूक में जबाब भी देता गया। दिलेर जवान को बाद में गोलियों से छलनी कर दिया। शोक में डूबे औरंगजेब के पिता मोहम्मद हनीफ ने खुद अपने बेटे की मौत का बदला लेने की बात कही थी। यहाँ तक कि अपने दूसरे बेटे को भी फ़ौज में भेजने की बात कही थी। उसके गांव के कई युवा किया था कि उसे फ़ौज में भर्ती किया जाये वो अपने भाई की हत्या का बदला लेना चाहते हैं। अब दो महीने बाद शहीद औरंगजेब के गांव सलानी में उसके करीब 50 दोस्त जुटे हैं, जो खाड़ी देशों से अच्छी-खासी तनख्वाह वाली नौकरियां छोड़कर लौटे हैं। इनका मकसद सेना और पुलिस में भर्ती होकर आतंकियों से अपने दोस्त की हत्या का बदला लेना है।
जानकारी के अनुसार मोहम्मद किरामत और मोहम्मद ताज ने बताया कि उन्होंने औरंगजेब की मौत की खबर मिलते ही नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया था। किरामत ने कहा, “सऊदी में ऐसे अचानक नौकरी छोड़ने की इजाजत नहीं है, लेकिन हमने किसी तरह यह कर लिया। हमारा एक ही मकसद है औरंगजेब की शहादत का बदला।”औरंगजेब के दोस्तों ने कहा है कि फ़ौज में भर्ती का मौका इन्हे दिया जाये,ये लोग आतंकवादियों से लोहा लेने को तैयार हैं। अब घाटी में इस तरह अपने भाईयों को मरते नहीं देखना चाहते। इसलिए विदेश की अच्छी नौकरी छोड़कर अपने वतन लौट आये हैं। आतंकियों की मुहीम को ख़त्म करने के लिए जो भी कदम उठाना पड़ा उठाएंगे। औरंगेज़ के एक भाई सेना में ही है उनके अनुसार उनके भाई की मौत के लिए आतंकियों से ज्यादा उन्हें यह हिंसा करने का निर्देश देने वाले उनके आका जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि सेना की चेतावनी और कार्रवाई के बाद भी आतंकी बेखौफ हैं।6 जुलाई को आतंकियों ने कॉन्स्टेबल जावेद अहमद डार को अगवा कर उनकी हत्या कर दी थी। जावेद के सिर पर गोलियां मारी गई थीं और बाद में उनका शव कुलगाम के सेहपोरा में सड़क किनारे मिला था। वहीं, 29 जुलाई को आतंकियों ने पुलिसकर्मी मुदासिर अहमद लोन का अपहरण कर लिया था,लेकिन मां की अपील के बाद आतंकियों ने दो दिन बाद उसे छोड़ दिया था।
अब जबकि कश्मीर में कुछ भटके बेटे वापस भी लौटने लगे हैं ,आतंकियों के खिलाफ लोग एकजुट भी होने लगे हैं ऐसे में विदेशों से नौकरी छोड़ कर आतंकियों से लोहा लेने के लिए स्वेच्छा से युवकों का आना एक बड़ी बात है जो आनेवाले समय में उन युवकों के लिए भी रास्ता दिखायेगा जो भटक गए हैं या उस रस्ते को अख्तियार करना चाहते हैं।