हमें गर्व है,अच्छी पहल है यहाँ के लोगों की।
एक ट्रेन ऐसी भी, जहाँ बिना टिकट अगर आप ट्रेन पर चढ़े तो शर्म के मारे टिकट खरीदने पर मजबूर हो जायेंगे। जी हाँ सही सुन रहे हैं आप एनएफ रेलवे के कटिहार डिवीजन अंतर्गत कटिहार-मनिहारी ट्रेन में कुछ ऐसा ही होता है।बिना टिकट जाँच कर्मचारी या पुलिस नागरिक आपका टिकट खुद चेक करते है, अगर आप बिना टिकट ट्रेन में सवार है तो कुछ लोग हाथ जोड़ कर आपसे टिकट खरीदने की गुहार करते है,और बेटिकट यात्री शर्म के मारे टिकट खरीदने पर मजबूर हो जाता है और ऐसा वर्षो से चला आ रहा है। कटिहार जिले के मनिहारी के अंगद पिछले कई वर्षो से इस रुट पर चलने वाली हर ट्रेन में यात्रियों की टिकट चेक करते हैं और टिकट खरीदने का अनुरोध करते नजर आ जाते है।
ये हमारे देश क्या शायद विश्व का पहला और आखिरी उदहारण है जहा इस तरह की व्यवस्था के तहत रेलवे का परिचालन होता है और इस परिचालन से रेलवे को लगातार मुनाफा होता रहा है। रेलवे विभाग के अधिकारियों का मानना है कि जिस समय ये ट्रेन आरम्भ की गयी थी उस समय इसकी आशंका जताई गयी थी कि यहाँ इस लाइन पर इस ट्रेन को चलाना शायद फायदेमंद नहीं होगा परन्तु चलने से लेकर अभी तक की टिकट विक्री का आंकड़ा देखा जाये तो इसमें बढ़ोतरी ही हुयी है।ये सब हुआ है एक खास सख्सियत की वजह से,गाँधी का एक दूसरा रूप जिसने सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया है। वो व्यक्ति है 54 वर्षीय अंगद ठाकुर,जो प्रायः करवद्ध रहते है इस रुट की ट्रेनों के लिए।अंगद ठाकुर आरम्भ से ही ये सोच अनवरत इस कार्य में लगे हुए हैं, इस ट्रेन में सफर के दौरान बेटिकट सफर करने वाले सवारी के सामने याचक की भांति खड़े ये कहते मिल जाते हैं कि पैसे देकर सफर करो,इसी में क्षेत्र और इस रेलवे का अच्छा भविष्य है। अगर इस ट्रेन में मौजूद कोई ऐसा यात्री बेटिकट इन्हें मिल जाता है जिसके पास हक़ीक़त में पैसा नहीं है और सफ़र करनी मज़बूरी है तो इसके लिए भी अंगद के पास सहायता राशि उपलब्ध है, जो अंगद ने लोगो से चंदा कर एक फंड बनाया है, इस फंड से सहायता लेने की शर्त ये है कि जब भी उक्त यात्री के पास पैसा हो तो वो अंगद के सहायता कोस में उसे लौटा दे। लेकिन बेटिकट इस ट्रेन में चलना बिलकुल नामुमकिन सा है, राम जीवन बताते हैं कि कटिहार से मनिहारी के बीच किराया काफी कम है, ऐसे में अगर ये भी देना मुश्किल हो तो फिर अंगद भाई की गुजारिश काम आती है। और इस काम में अंगद ठाकुर अकेले नहीं,अब तो कई और लोग साथ देने लगे हैं। अंगद की इस मुहीम को अब नागरिक संघर्ष मोर्चा का बैनर भी मिल गया है जिसमे लोग जुड़ते जा रहे है
रेलवे इस इस रूट पर पहले मीटर गेज (छोटी लाइन) की ट्रेन चला करती थी, जिसे ब्रॉडगेज में परिवर्तित कर ट्रेनों का परिचालन करने की जो तय समय रेलवे ने जनता को दिया था उस समय के दो साल बाद इस रूट पर परिचालन शुरू हो पाया, इस दौरान अंगद ने ट्रेनों के परिचालन को लेकर कई आंदोलन किये, इस आंदोलन के दौरान एक रेलवे के अधिकारी ने अंगद से कहा कि इस रूट में लोग टिकट लेकर यात्रा नहीं करते है, लिहाजा अभी ट्रेन का परिचालन परीक्षण मोड़ में होगा उपयुक्त रेवेन्यू अगर सरकार कोआती है तो ट्रेनों की संख्या बढ़ेंगी नहीं तो ये भी बंद कर दी जायेगी, तब से अंगद इस प्रयास की एक मशाल जलाई है।और यही वजह है कि लगातार बढ़ोतरी की वजह से ट्रेनों की फेरी भी बढ़ाई गयी है। इस इलाके की पहचाहन बना चुके अंगद ठाकुर का वेशभूषा भी एक खास तरीका रहा,रोज अपने इस जिम्मेवारी को निभाने के दौरान खास परिधान कुरता-पजामा में होते हैं ये वस्त्र भी खादी का होता है।गले में सफ़ेद अंगोछा या गमछा डाले रहते हैं, इसके अलावा जो एक खास पहचान होती है वो है गाँधी टोपी। मनिहारी-कटिहार के बीच ३० किलोमीटर की दूरी तय करती है ये ट्रैन, जिसमे अंगद ठाकुर काम करते हैं, ये इनकी समाज सेवा है साथ में दो बेटों की जिम्मेवारी भी बखूबी निभाते हैं,कमाई का जरिया है एस डी ओ ऑफिस के बाहर कागजात आदि की बिक्री। अंगद का यह अभियान साल 2011 में आरम्भ हुआ था जब पहली बार अंगद ने स्थानीय लोगों के साथ एक आंदोलन को लेकर प्रदर्शन किया था। पहले के मीटर गेज लाइन के बाद ब्रॉड गेज की मांग को लेकर जो मुहीम आरम्भ किया गया उसमे सफलता मिली और उसके बाद जब ब्रॉडगेज रेल की शुरुआत हुयी तो उसके बाद से ये गांधीगिरी ब-दस्तूर अभी तक जारी है।