देश में तीन तलाक का लंबे वक्त से लंबित पड़ा है, लेकिन लोकसभा से पहले अब मोदी सरकार ने इस बहुचर्चित तीन तलाक के मुद्दे पर अध्यादेश पारित कर दिया है। आपको बता दें कि पिछले दो सत्रों से राज्यसभा में तीन तलाक बिल अटक रहा था। कांग्रेस समेत विपक्ष की कई पार्टियों ने तीन तलाक बिल में संशोधन की बात कही थी, जिसके बाद इस बिल में संशोधन हुआ, लेकिन अध्यादेश पारित होने के बाद भी विपक्ष ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया। सरकार ने तीन तलाक के अध्यादेश में कई संशोधन किए, महिलाओं को अधिक अधिकार दिए गए हैं। वहीं दो साल की सजा का प्रावधान भी है।
- संसोधन के बाद अध्यादेश के अनुसार तीन तलाक मामले में अब पति को ज़मानत मिलना इतना आसान नहीं होगा। नए संसोधन के मुताबिक जब मजिस्ट्रेट पत्नी का पक्ष नहीं सुन लेता तब तक शौहर को ज़मानत नहीं मिलेगी।
- नए अध्यादेश में दोनों पक्षों के बीच समझौता पत्नी की पहल पर ही हो सकता है। मतलब ये कि एक बार मामला अदालत पहुंचेगा तो अदालती समझौता ही होगा। अदालत में मामला पहुंचने के बाद भी अगर शौहर सुलह करना चाहता है, तो पत्नी का भी मानना ज़रूरी होगा।
- अब नए अध्यादेश के मुताबिक अगर तलाक के समय पति-पत्नी का कोई नाबालिग बच्चा है, तब तक बच्चे मां के पास ही रहेंगे और कोर्ट के आदेश पर पति को महिला और बच्चे को गुज़ारा भत्ता देना होगा।
- वहीं अगर पति ज़मानत की अपील करता है तो उसे ज़मानत तभी मिलेगी जब वह पत्नी को मुआवज़ा देने की बात कहेगा।
- अगर शौहर पर कोई इसी तरह का मामला पहले से चल रहा है, तो ये नए प्रावधान उसपर लागू नहीं होंगे।
नए संसोधन के मुताबिक ट्रायल से पहले पीड़िता का पक्ष सुनकर मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है। वहीं महिला के परिजन और खून के रिश्तेदार ही एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। एक बार में तीन तलाक बिल की पीड़ित महिला मुआवजे की हकदार होगी।