दुष्कर्मी को मिली ऐसी सजा का एलान प्रमुखता से संचार माध्यमों को दिखाना चाहिए
वो दिन था 21 मई का ,साल यही 2018 ,मध्यप्रदेश के सागर जिले के रहली थाना क्षेत्र में एक नौ वर्षीया बालिका को एक धार्मिक जगह पर ले जाकर दुष्कर्म किया था। भग्गी उर्फ़ भगीरथ मौके से भागते वक्त पकड़ा गया। केस फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में गया। पुलिस ने मामले में ईमानदारी से महज बहत्तर (72 )घंटे में जाँच पूरी कर 24 मई 2018 को कोर्ट में चालान पेश कर दिया। न्यायलय में सुनवाई हुयी और केवल 46 दिनों में दोषी भग्गी उर्फ़ भगीरथ को फांसी की सजा सुना दी। यह इस जिले का पहला मामला था जिसमे इतनी जल्दी कार्रवाई कर सजा का एलान कर दिया गया।
अब मामला नo 2, इसी सागर जिले की खुरई कोर्ट ने भी 19 जून 2018 को एक और फांसी की सजा सुनाई थी,13 अप्रेल 2017 को आरोपी सुनील आदिवासी ने एक नौ वर्षीया बच्ची से बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी। सवा साल के करीब मामले की सुनवाई चली और न्यायलय ने यहाँ भी आरोपी को फांसी की सजा मुक़र्रर किया।
कबीले तारीफ है यहाँ की पुलिस और यहाँ के लोग जिन्होंने इस तरह के मामलों की गंभीरता को समझा और शीघ्र पीड़िताओं को न्याय मिले,इस ओर ईमानदार पहल की। तारीफ के काबिल वो न्यायालय और न्यायतंत्र भी है जिन्होंने मामले को यथासंभव शीघ्रता से देखा और उचित फैसला देकर सजा का एलान किया।
तीसरा मामला भी मध्य प्रदेश से ही है। शहडोल जिले में चार वर्षीया बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी शेख गुलाम उर्फ़ छोटू, निवासी सोहागपुर को सामान्य मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है। साथ ही पच्चीस हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। 25 अक्टूबर 2017 को कोतवाली थाने में दर्ज मामले के अनुसार छोटू ने बच्ची को फल खिलाने का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया था।
मिसाल हैं ये फैसले हाल फिलहाल के,हालाँकि ये पहला फैसला या आखिरी फैसला नहीं है, इस तरह के मामलों में। कई और जगह इस तरह के फैसले लिए गए हैं।बिहार सहित कई दूसरे राज्यों में भी इसतरह के फैसले लिए गए हैं। अब जरुरत है कि इस तरह के फैसले जिस भी कोर्ट से आये हैं उनसे आगे के कोर्ट भी इतनी ही तत्परता से मामले की सुनवाई कर जल्द से जल्द दोषियों को फांसी के फंदे से लटकाया जाये। उम्मीद है ऐसा ही होगा।
अब लगता है हम संचार माध्यमों के ध्वजवाहकों को भी अपनी जिम्मेवारी निभाने का ख्याल मन में जागेगा। देश भर में या फिर उससे भी आगे निकलकर ग्लोबल स्तर पर बलात्कार जैसे मामलों पर सुनाई गयी सजा को प्रमुखता देंगे,उसे अंदर के पन्ने या फिर सुपरफास्ट खबरों में चलाकर औपचारिकता निभाकर चिंतामुक्त न हो पाएंगे।
मामले की केमिस्ट्री में ना जाया जाये। मसलन,रेप कैसे हुआ,किसने किया,धर्म क्या था,गरीब या अमीर थी,कहाँ हुआ,किसके राज में हुआ,आदि-आदि? दर्द सबको एक सा होता है,पीड़ा का रंग एक ही होता है,सबकी तड़प एक सी होती है। ऐसे में बिना किसी सवाल के हमे सिर्फ न्याय और सच्चाई के साथ होकर चलना पड़ेगा।वरना कभी हम रेप को कठुआ कहेंगे तो कभी मंदसौर। हमे ऐसे मामलों को एक ही नजरिये से देखना होगा ,वो है एक बेटी के साथ ज्यादती हुयी है और उसे न्याय का हक़ मिलना चाहिए,जो हमारी कोशिशों से संभव है।
ऐसे मामलों में सजा तक दोषी को पहुँचाना सबसे अहम् है,इसके साथ ये भी अहम् है कि ऐसे दरिन्दे फिर पैदा ना हो,मन में खौफ और डर हो इसके लिए जरूरी है कि इस तरह की जो भी सजा हो उसे प्रचारित प्रसारित किया जाये। माध्यम जो भी हो सीधा संवाद हो,अखबार हों,टेलेविज़न हों,सोसल मीडिया हो इनसबमे प्रमुखता से आरोपी और सजा को दिखाया सुनाया जाये। जहाँतक मेरा मानना है कि इससे अपराध शून्य तो नहीं पर हो सकता है पर एक भी ऐसा सख्श तो होगा जो ऐसे अपराध को करने से पहले सजा के बारे में जानकर एक बार तो सोचेगा ही और जहाँ शातिर के मन में इस तरह की बात आएगी निश्चित वो अपने नापाक इरादे में तबदीली लाने को तैयार हो जायेगा। इसलिए कम से कम अख़बार,पत्रिका,टेलेविज़न और सोसल मीडिया तो अपने यहाँ इसे पहली खबर बना ही सकते हैं।