भाजपा घरेलु पिच पर जोरदार प्रैक्टिस में लगी ,दावा फॉलोऑन से हराएंगे
भाजपा की टीम जब भी कही किसी मिशन पर बैठती है तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत पार्टी के अमूमन नेता अपनी भागीदारी निभाते दिखते हैं। जबकि कांग्रेस में इसका नितांत ही अभाव दिखता है। कभी काँग्रेस एन आर सी या 3 तलाक जैसे मुद्दे पर अपना एक रुख नहीं तय कर पायी, देश के अलग-अलग हिस्सों को समझ कोई अभीयान नहीं चला पायी . महिला आरक्षण काँग्रेस के समझ से परे रहा ।नीति न तो हिन्दू रही न ही इस्लाम। टोपी और जनेऊ की हेरफेर में खुद को बीचवाला बनाकर रख दिया।
दूसरी तरफ शाह ये भी दावा करते हैं कि अगले वर्ष होने वाले चुनाव में पार्टी 2014 से भी अधिक बहुमत से सरकार बनायेगी। तो वहीँ कांग्रेस अभी इसी उहापोह में फांसी है कि गठवन्धन की रूप रेखा और नेतृत्व क्या होगा ? एक तरफ जहाँ शाह को पूरा विश्वास है कि संकल्प की शक्ति को कोई पराजित नहीं कर सकता है। वहीँ कांग्रेस के लोग ये भी कहते हैं कि पोस्ट पोल स्ट्रेटेजी भी काम करेगी। भाजपा ‘‘अजेय भाजपा’’ के नारे को अभी से दुहराते हुए रणक्षेत्र में कूच कर चुकी है तो कांग्रेस अभी बन्दूक और कारतूस के ही इन्तेज़ामात में लगी है ।
अब जरा ये तस्वीर देखिये , कांग्रेस अध्यक्ष अक्टूबर में मिडिल ईस्ट के दौरे पर जाएंगे। वे तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही दो दिन के मिडिल ईस्ट दौरे पर जाएंगे। राहुल गांधी के दौरे का केन्द्र दुबई में होगा। इस दौरे को एतिहासिक बनाने के लिए कांग्रेस ने पूरी तैयारी कर ली है। राहुल के दुबई दौरे के लिए बकायदा एक स्टेडियम बुक कराने की कोशिश की जा रही है जिसकी क्षमता 50 हजार लोगों के बैठने की होगी। लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर चुनाव के समय दुबई जाकर किस रणनीति को अमली जामा पहनाएंगे ?50 हजार लोगों से स्टेडियम को भरकर राहुल के इस दौरे को लोकप्रिय बनाने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगाएगी। दरअसल दुबई में करीब 34 लाख लोग ऐसे हैं जिनका नाता भारत से है। इस लिहाज से राहुल के दुबई दौरे की रुपरेखा तैयार की जा रही है। हम आपको बता दें कि राहुल का ये दौरा कांग्रेस ठीक उसी अंदाज में करने की कोशिश कर रही हैं जैसे चुनाव प्रचार के दौरान मोदी विदेशी दौरे करते हैं। लेकिन बात समझ नहीं आती कि मोदी की नक़ल काम आएगी क्या ?मोदी कहीं भी जाते हैं तो वो अपनी छवि एक पी एम को साथ लेकर जाते हैं ,कुछ दावा झूठ ही सही ,लेकर जाते हैं ,राहुल क्या लेकर जाएंगे ? अपनी असफलता ,कमजोर कमान ? या अपनी कमजोर मार्केटिंग ?
खैर हर टीम को अपनी रणनीति के हिसाब से मैच को खेलने का हक़ है पर कभी कभी अतीत और संभावनाओं का भी ख्याल कर लेना चाहिए ,नहीं तो बाद में ऐसा ना हो कि एक अनाड़ी और अदना भी ये ना कहने लगे कि सिफारिशी सेलेक्शन के दम पर चयनित कैप्टन उसी तरह बारहवां खिलाडी ना बनकर रह जाये जैसे कभी क्रिकेट के मैदान पर लालू पुत्र तेजस्वी का था।