नई दिल्ली। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के खिलाफ विरोध की लहर चल पड़ी है। पहले सीबीआई में भ्रष्टाचार के खुलासे को लेकर सरकार की पोल खुली तो अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकार को काम में दखल न देने की चेतावनी दी है। आरबीआई ने सरकार को उनके कामों में दखल न देने की सलाह देते हुए चेतावनी दी है अगर ऐसा चलता रहा तो परिणाम भुगतने के लिए देश तैयार रहे।
सीबीआई का विवाद खत्म ही नहीं हुआ कि भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच मतभेद शुरू हो गया।मोदी सरकार की मुश्किलें बढती ही जा रही हैं। धीरे धीरे सारे सरकारी विभाग या संवैधानिक संस्थान विवाद के घेरे में आते जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के साथ सरकार की नाराजगी से अर्थव्यवस्था की सेहत पर गहरा असर करेगा जो कि देश के लिए सही नहीं है. आरबीआई ने केंद्र के नोटबंदी के फैसले का समर्थन भी किया था।
आखिर विवाद शुरू होने की वजह?
सरकार और आरबीआई के बीच का विवाद आज से नहीं पिछले वित्तीय वर्ष यानि मार्च-अप्रैल 2017 से ही चल रहा है। सरकार ने नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के भाग जाने के पीछे का कारण भी आरबीआई और उसके सख्त एनपीए नियमों और निगरानी तंत्र को बताया है।
ब्याज दरों को लेकर भी आरबीआई और सरकार के बीच तकरार हुई आरबीआई ने सरकार से स्पष्ट तौर पर कहा है कि सरकार अन्य विभागों की तरह हमारे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप ना करे इससे हमारे अधिकारों का हनन होता है आरबीआई को बैंकों की निगरानी और कड़ाई बरतने के लिए और भी अधिकार की आवश्यकता है,उनके इस अधिकार पर टिप्पणी देते हुए सरकार ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि आरबीआई के पास पहले से ही पर्याप्त अधिकार हैं।
इसी वर्ष सरकार ने तेल कंपनियों के लिए आरबीआई से डॉलर की बिक्री के लिए विशेष खिड़की की भी माँग की थी जिसको लेकर सरकार और आरबीआई के बीच तनाव का माहौल हो गया था और उन्हें इसके लिए मजबूर होना पडा. आरबीआई को यह बात भी खराब लगी जब सरकार ने आरबीआई बोर्ड से नचिकेत मोर की जगह पर संघ परिवार से ताल्लुक रखने वाले एस. गुरुमूर्ति और एस. मराठे को बोर्ड में नियुक्त कर दिया जबकि उनका कार्यकाल खत्म होने में अभी दो साल बाकि ही था।मुख्य ब्याज दर के मुद्दे को लेकर आरबीआई पर सरकार ने आरोप लगाए जिसकी वजह से उनके बीच विवाद हो गया