नई दिल्ली। क्या आपको भी लगने लगा है कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी खत्म होती जा रही है? क्या देश में लोगों को अपने विचार प्रकट करने की भी इजाजत नहीं है? क्या लोगों के इस स्वतंत्र देश में अपने मन के भावों को, अपनी सोच को व्यक्त करने की आजादी नहीं हैं? संविधान देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी देता है, लेकिन कुछ लोग इस आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं। मलयालम लेखक एस हरीश को भी ऐसे ही लोगों के आगे झुकना पड़ा। दक्षिणपंथी समूह से धमकी मिलने के बाद उन्हें अपना उपन्यास ‘मीशा’ वापस लेना पड़ा है।
दक्षिणपंथी समूह से धमकी मिलने के बाद शनिवार को एस हरीश ने अपना उपन्यास ‘मीशा’ वापस ले लिया है। आपको बता दें कि मीशा हरीश का पहला उपन्यास है जो मातृभूमि समाचार पत्र में प्रकाशित हो रहा था, लेकिन अब इसे वापस ले लिया है। समाचार पत्र के संपादक कमलराम संजीव ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी। दरअसल पिछले कुछ दिनों से दक्षिणपंथी समूह के सदस्य हरीश और अखबार के संपादक दोनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि इस उपन्यास में मंदिर जाने वाली हिंदू महिलाओं और उनकी परंपराओं को गलत तरीके से दिखाया गया है। विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया है।
अखबार से वापस लिया उपन्यास
उनका यह पहला उपन्यास है जो कि मातृभूमि समाचार पत्र में प्रकाशित हो रहा था। उपन्यास वापस लेने की जानकारी समाचार पत्र के संपादक कमलराम संजीव ने ट्वीट करके दी है।बताया जा रहा है कि कुछ दक्षिणपंथी समूह के सदस्य हरीश और संपादक दोनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि इस उपन्यास में मंदिर जाने वाली हिंदू महिलाओं और उनकी परंपराओं को गलत तरीके से दिखाया गया हैै। शनिवार को बीजेपी महिला मोर्चा की महिला सदस्यों ने मातृभूमि मुख्यालय के बाहर मार्च भी किया था और मांग की थी कि उपन्यास को वापस ले लिया जाए।
मिल रही है लगातार धमकियां, परिवार पर हमले की धमकी
अखबार के संपादक ने लिखा कि एस हरीश ने अपना उपन्यास ‘मीशा’ वापस ले लिया है, साहित्य की पीट-पीट कर हत्या की जा रही है, केरल के सांस्कृतिक इतिहास में सबसे काला दिन है। उन्होंने लेखक की बेबसी को शब्दों में बयां कर दिया। जानकारी मिल रही है कि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने लेखक और उनके परिजनों को सोशल मीडिया पर धमकी दी, उपन्यास में लिखी गई बातों पर नाराजगी जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि उपन्यास में मंदिर जाने वाली महिलाओं को खराब तरीके से दिखाया गया है। हरीश और उनके परिवार पर हमला करने की धमकी दी गई। संजीव ने कहा कि उपन्यास के तीन अंश साप्ताहिक में प्रकाशित हो चुके हैं। आगे अंक प्रकाशित होने थे, लेकिन लेखक को लगातार मिल रही धमकियों के बाद उन्होंने इसे वापस ले लिया है। वहीं इस मामले पर कांग्रेस नेता एवं तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो लोग हिंदुत्व तालिबान के उभार के बारे में मेरी चेतावनी पर विश्वास नहीं करते थे , वो मलयालम लेखक के साथ हुई घटना से सबक लें।
हिंदूवादी संगठन का आरोप
वहीं केरल के एक हिंदूवादी संगठन का कहना है कि हम जानते हैं कल्पना क्या है और इसका आनंद कैसे लें? लेकिन कल्पना की एक सीमा होती है। उन्होंने फिल्मों का उदाहरण देते हुए कहा कि क्या फिल्मों में दिखाए गए लिप-लॉक दृश्यों के बाद कोई इसे यह कहते हुए सही ठहरा सकता है कि दृश्य केवल एक सपना था। उन्होंने कहा कि उनका विरोध प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा जब तक की मातृभूमि अपमान करने वाले उपन्यास के प्रकाशन के लिए माफी नहीं मांगता।
भाजपा महिला मोर्चा का प्रदर्शन
बाजार में उपन्यास के आने के बाद से ही इसका विरोध शुरू हो गया है। प्रदर्शन करने वाले संगठनों का आरोप है कि इस उपन्यास में मंदिर जाने वाली महिलाओं और हिंदू पद्धतियों के खिलाफ बातें कही गई है। यह उपन्यास दलित बैकग्राउंड पर आधारित है, जो केरल में मौजूद जाति विवाद पर चोट करती है। ये बातें इन हिंदुवादी संगठनों के गले से नीचे नहीं उतर रही है। उपन्यास को रोकने के लिए विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा है। शनिवार को भाजपा महिला मोर्चा की महिला सदस्यों ने कोझिकोड में मातृभूमि के मुख्य दफ्तर तक मोर्चा निकाला था। उनका कहा है कि इस उपन्यास का प्रकाशन तुरंत बंद किया जाए. यह उपन्यास दलित बैकग्राउंड पर आधारित है। इसमें केरल में मौजूद जाति विवाद पर चोट की गई है। उपन्यास के तीन खंड प्रकाशित हो चुके हैं, लेकिन इस विरोध प्रदर्शन और लगातार मिल रही धमकियों के बाद लेखक ने विवश होकर इसे वापस ले लिया है।
कौन हैं एस हरीश
हरीश को सोशल मीडिया के जरिए लगातार धमकियां मिल रही है। इन धमकियों की वजह से उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट तक बंद कर दिए। 43 साल की एस. हरीश केरल के एक मलयालम भाषा के लेखक हैं। उनके लेखन के विषय विभिन्न सामाजिक पहलू और कल्पना होते हैं। आपको बता दें कि एस हरीश को पिछले साल लघु कथाओं के लिए केरला साहित्य अकादमी का पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।