पुराने दफ्तर से रेकॉर्डतोड़ प्रदर्शन किया था भारतीय जनता पार्टी ने,फिर वैसा कैसे होगा?
यूँ तो भाजपा का आधार ही सम्पूर्ण तौर पर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है और भाजपा अपने हर काम को शुभ मुहूर्त,शुभ लग्न,और शुभ स्थल से करने के लिए सर्वविदित है। ऐसे में 2014 में जिस भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में बड़ी सफलता हासिल कर दिल्ली पर कब्ज़ा किया था,उसे फिर 2019 में कैसे बरक़रार रखा जाये,इसी पशोपेश में अब भाजपा फिर वास्तुशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के शरण में है। वजह है2014 के बाद हुए कई उपचुनावों में हार। खासकर जब से भाजपा ने अशोका रोड की जगह नए बहुमंजिला ईमारत में दफ्तर बनाया है,तबसे हार की लड़ी लग गयी लगती है। और यही हार अब भाजपा के लिए चिंता का विषय है।
अब ये खबर अंदरखाने से आ रही है कि वास्तुशास्त्रियों ने अति-शीघ्र भाजपा आलाकमान को अपना जगह बदलने को कहा है,खासकर भाजपा आनेवाले चुनाव से सम्बंधित कामों को नए दफ्तर से कदापि नहीं करे। उनके अनुसार चुनावी कमान पुराने जगह से ही काटने चाहिए। और चुनावी कमान का मतलब होता है किसी भी चुनावी घोषणा से लेकर टिकट के बारे में निर्णय लेने का फैसला पुराने जगह से ही किया जाये। कम से कम नए दफ्तर से तो नहीं ही किया जाये। ऐसे में ये मानकर चला जाये कि पुराने जगह यानि कि 11 अशोका रोड पर जो इनदिनों रंगाई पुताई का काम जोरो पर है उसकी मुख्य वजह वास्तुशास्त्र की सलाह पर पार्टी का निर्णय ही है।
ज्ञात हो कि पुराने दफ्तर से भाजपा ने लगातार कई राज्यों में अपना झंडा बुलंद किया ,लोकसभा में 283 सीटें हासिल की और यहीं से मोदी सरकार ने लगातार देश-विदेश में देश और दल की छवि को चमकाने का दावा भी किया। सदस्यों के हिसाब से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा भी यहीं से हासिल किया।
अब अशोका रोड को एक बार फिर से वार-रूम की तरह देखा जायेगा,जिसकी तैयारी अभी लगातार चल रही है। दरअसल लोकसभा उपचुनावों में पूरा दमखम लगाने के बावजूद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के क्षेत्र गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाने से मात्र सात सीटों से चूक गई। यहां तक कि गुजरात चुनावों में पार्टी 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई।
अब चुनाव से सम्बंधित जितने भी तीर चलेंगे पुराने अशोका रोड से ही चलेंगे। खासकर मीडिया विंग की एक बड़ी टीम यहीं से अपना काम करेगी।
भाजपा के कुछ बड़े लोगों ने जब वाश्तुशास्त्र के जानकार से इस वावत उपाय पूछा तो उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित दफ्तर की खामियों को गिनकर कहा कि यहाँ का औरा पार्टी के हित में नहीं।
जिसके बाद पार्टी के उच्च पदाधिकारियों को लगने लगा कि जब से पार्टी ने दील दयाल उपाध्याय मार्ग स्थित नए मुख्यालय में प्रवेश किया है, तब से पार्टी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रही है और नया ऑफिस उनके लिए लकी साबित नहीं हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि नए ऑफिस में शिफ्ट करने के बाद से ही पार्टी को लगातार अवरोधों का सामना करना पड़ रहा था। जिसके बाद पार्टी ने एक नहीं तीन-तीन वास्तुशास्त्रियों से परामर्श किया और उन्होंने नए दफ्तर में वास्तु से संबंधित कई खामियां पाईं। उन्होंने पुराने दफ्तर का भी वास्तु के लिहाज से निरीक्षण किया और पाया कि वह पार्टी के हिसाब से पूरी तरह माकूल है।वहीँ पुराने दफ्तर की तुलना में नया कार्यालय नकारात्मक ऊर्जा वाली जगह है जो पार्टी को सूट नहीं करता।
फिलहाल पार्टी पदाधिकारियों ने सीधे तौर पर इस फैसले से इंकार किया है परन्तु अनाधिकारिक रूप से दल के खास व्यक्ति के अनुसार इस तरह का फैसला लेने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। खैर फिलहाल मामला तो भाजपा का है,अब देखना ये है कि अगर अशोका रोड से चुनावी संग्राम के सञ्चालन को किया जाता है तो इसके बाद होनेवाले चुनावो के परिणाम को भाजपा अपने पक्ष में कर पायेगी क्या?