देश के पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मी जोर पकड़ रही है और दूसरी तरफ एक छोटे से राज्य अरुणाचल में पिछले डेढ़ साल से चल रहा राजनैतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा । गठबंधन की सरकार, विद्रोह ,राष्ट्रपति शासन और फिर पूरी पार्टी का एक साथ विद्रोह, सुप्रीम कोर्ट का दखल, हटाए गए मुख्यमंत्री की आत्महत्या, ऩई सरकार और अब नई सरकार के मुखिया का पार्टी से निलंबन । यही पिछले डेढ़ साल की कहानी है अरुणाचल प्रदेश की।
जिस किस्म की राजनीति इस प्रदेश में हो रही है और समस्या का स्थायी हल नहीं निकल रहा वैसे में यहां विकास के बारे में सोचना ही बेमानी है । प्रदेश में आए मोजूदा संकट में सत्तारूढ़ दल पीपल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (PPA) ने गुरुवार रात मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उप मुख्यमंत्री चोवना मेन समते पांच विधायकों को पार्टीविरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया। जिन विधायकों को सस्पेंड किया गया है उनमें जेंबी टाशी, सीटी मेन, पीडी सोना, जिंगनू नामचोम और कामलुंग मोसांग शामिल हैं।
इन संकटों के मद्देनजर अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमिटी (APCC) के अध्यक्ष पाडी रिचो ने पार्टी के सदस्यों से कहा है कि वे राज्य में मध्यावधि चुनावों के लिए तैयार रहें। रिचो ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम फिर से जनता के बीच जाएं उनकी राय लें और एक आंदोलन खड़ा करें जिसमें यह साबित हो कि प्रदेश में कांग्रेस से बेहतर सरकार किसी की नहीं हो सकती। साथ ही हम नोटबंदी से हुए नुकसान की चर्चा केंद्र में रखेंगे।
आपको बता दें कि महीनों तक चले सियासी उठापटक के बाद पेमा खांडू इस साल 16 जुलाई को राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। अदालती आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी सत्ता में आए थे। जनवरी २०१६ में तुकी की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार के बिखरने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उस वक्त 19 विधायक बागी हो गए थे और कलिखो पुल ने बीजेपी की मदद से बहुमत साबित करने का दावा किया और सत्ता में आ गए, युवा और तेज-तर्रार नेता कालिखो पुल मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई ।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के हक में फैसला दिया, वर्तमान मुख्यमंत्री कालिखो पुल को पद से हटना पड़ा, कांग्रेस सत्ता में आई और कालिखो पुल ने खुदकुशी कर ली। मामला यहीं नहीं रुका जिस कांग्रेस के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया उस पार्टी के एक सदस्य को छोड़कर सभी पीपीए में शामिल हो गए और विधायकों ने पेमा खांडू को नये मुख्यमंत्री के तौर पर चुन लिया।
निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट को एक बार इस मामले पर गौर करना चाहिए। सदन में बहुमत साबित कर चुके एक सरकार को अदालत ने अवैध ठहरा दिया, उसके बाद एक पूर्व मुख्यमंत्री ने आत्महत्या कर ली और जिसे सत्ता सौंपी वो अपनी पार्टी से बगावत कर पार्टी ही तोड़ डाली। क्षेत्रीय दल में विलय कर सत्ता में आए और उस क्षेत्रीय दल के नेता ने मौजूदा मुख्यमंत्री पर पार्टी विरोधी गतिविधि का आरोप मढ निलंबित कर दिया है। देखा जाए तो इन सारे उठापटक और प्रदेश के विकास में रुकावट की वजह मुख्यमंत्री पेमा खांडू ही नजर आते हैं। अरुणाचल प्रदेश की जनता और शीर्ष अदालत दोनों को इस बार सोच समझकर फैसला लेना चाहिए।