उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों चले 72 घंटे के नॉन स्टॉप राजनीतिक महाभारत में कई किरदार और कई कहानियां सामने आईँ। यहां रामायण की कैकेयी तो थी लेकिन उसे राम का वनवास नहीं चाहिए था। इस कैकेयी को महाभारत के अभिमन्यु की तरह उस किरदार को चक्रव्यूह में उलझा देखना था। शह और मात का खेल शुरु हुआ। मामा शकुनि पासा फेंककर किनारे बैठ गया। और कहानी ऐसी बुनी जाने लगी जैसे लोककथाओँ में होता है, 72 घंटे तक कुछ भी ऐसा नहीं हुआ हो जो लोकतंत्र में होना चाहिए। एक परिवार की लड़ाई सत्ता का केंद्र बन गई। इस लड़ाई के चेहरे समाजवाद के चेहरे बन गए।
जैसे शकुिन गायब, वैसे ही कैकेयी गायब, दोनों नेपथ्य में और यहां धृतराष्ट्र भी वही, भीष्म पितामह भी वही औऱ दशरथ भी वही। दूसरा किरदार राम भी वही, अर्जुन भी वही और चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु भी वही। जाहिर है ड्रामा तो होना ही था, हुआ भी और लंबा हुआ। अभी तक ड्रामे का पटाक्षेप नहीं हुआ है लेकिन जिस तरीके से अभिमन्यु ने चक्रव्यूह के दरवाजे भेदे, अर्जुन की मानिंद कृष्ण का ज्ञान लेकर रणक्षेत्र में सगे-संबंधियों से निपटा और फिर राम की तरह दशरथ का आज्ञाकारी बनकर फूट-फूट कर रोया। 72 घंटे की स्क्रिप्ट गड्डमड्ड हो गई।
एक बार को लगा कि यह क्या हो रहा है, हर कोई दूसरे के हिस्से का संवाद तो नहीं बोल रहा। मंच से पुत्र को उसकी हैसियत बताई गई लेकिन सत्ता की चाबी उसके पास ही छोड़ कर दूसरे सगे संबंधियों को उनकी औकात समझाई गई। शकुनि का संग देने का वादा किया गया लेकिन उनके सारे सिपहसालार सत्ता से बेदखल किए गए। हां कैकेयी जरुर चुपचाप बाहर से मंच का नजारा देखती रही।
अब आप गौर से सोचिए कि क्या उत्तर प्रदेश में जो हुआ वो स्क्रिप्टेड ड्रामा था ? हमें लगता है कुछ हिस्सा स्क्रिप्टेड था लेकिन कई किरदार अपने अपने संवाद भूल गए। दूसरे के हिस्से का रोल अदा करने लगे और इसी में यह सब कुछ उलझ गया। दर्शक दिग्भ्रमित हो गए। निर्देशक परेशान हो गया लेकिन निर्देशक तो निर्देशक होता है। 100 घंटे बीतते-बीतते सब कुछ साफ नजर आने लगा। यहां निर्देशक नेताजी था और नेताजी तो पिताजी हैं। पिताजी तो पिताजी ही होते हैं। पिताजी की वजह से ही तो रामायण के किस्से भी हैं औऱ महाभारत के भी। अब समाजवाद के किस्से भी होंगे । लोकतंत्र के होंगे या नहीं साफ नहीं है।
समाजवादी पार्टी की लड़ाई परिवार तक सीमित रह गई। प्रदेश की जनता शायद ठगी रह गई। जिन वोटों पर इन समाजवादियों को सबसे ज्यादा अहंकार है वहां से आवाज आई, अपने लिए ही सोचोगे या फिर हमारे लिए भी। अब तक तो हम मान रहे हैं कि हमारे लिए सोचते हो लेकिन इस 72 घंटे में तो ऐसा लग रहा है कि हमारे लिए बिल्कुल नहीं सोचते।
अब बारी थी क्लायमेक्स की लेकिन वो सेमी क्लायमेक्स में तब्दील हुआ। एक वीडियो जारी हुआ, अर्जुन को केंद्र में रखकर , अभिमन्यु को केंद्र में रखकर लेकिन उसमें न तो राम था, न ही दशरथ, न तो धृतराष्ट और न हीं पितामह । इतना ही नहीं इस बार तो िपताजी भी गायब। लेकिन आप क्या समझते हैं, वो पिताजी नेताजी हैं। वो भी अखाड़े के मंजे हुए। इस ढलती उम्र में भी लाठी की ताकत की याद दिलाना नहीं भूलते । लेकिन इस वीडियो में चक्रव्यूह की मानिंद घूमता हुआ साइकिल का पहिया भी गायब । बात सिर्फ अभिनेता की। वो भी सोलो हीरो की माफिक।
मान गए नेताजी, क्योंकि आप तो पिताजी हैं, वो भी लोहिया के लंबरदार, हम न कहते थे कि एक दांव आपने जरुर बचा कर रखा होगा। क्या यही वो आपका दांव है या अभी कुछ बाकी है। आपकी इस स्क्रिप्ट के बाद इस लेख को खत्म करते हुए क्या लिखूं – मिलते हैं एक ब्रेक के बाद या फिर ये थी खबरें अाज तक , इंतजार कीजिए कल तक ।
Photo Courtesy: Bakwas News