बुलंदशहर गैंगरेप मामले में आजम ख़ान को सुप्रीम कोर्ट में बिना शर्त माफी मांगनी ही पड़ी। उन्होंने इस गैंगररेप को एक राजनीतिक साज़िश करार दिया था। यह घटना इसी साल 30 जुलाई की थी और आजम खान के बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया था। इसके बाद गैंगरेप का शिकार हुई 13 साल की नाबालिग लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उनसे माफी मांगने को कहा था।
इसके बाद, आज आजम खान ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में लिखा- “अगर पीड़िता को मेरे किसी बयान से तकलीफ पहुंची हो या उसने अपमानित महसूस किया हो, तो मैं बिना शर्त खेद जताता हूँ।”
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान के पिछले माफीनामे को खारिज कर दिया था, क्योंकि अपने हलफनामे में उन्होंने गोल-मोल तरीके से माफी मांगी। उन्होंने लिखा था- ‘यदि मेरे बयान से किसी को चोट पहुंचा हो तो…।’ ज़ाहिर तौर पर कोर्ट ने इसे बिना शर्त माफी नहीं मानी और उनसे दोबारा हलफनामा देने को कहा। तब आजम खान के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से गुज़ारिश की थी कि उनके मुवक्किल माफी के बजाय खेद शब्द का इस्तेमाल करेंगे।
गौरतलब है कि आजम के बयान की जानकारी मिलने के बाद कोर्ट ने काफी सख्त रुख अख्तियार कर लिया था। अगस्त में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- “संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्या ऐसा बयान दे सकता है? इससे पीड़ित की मनोदशा पर क्या असर पड़ेगा? ऐसे बयानों से आम आदमी का सिस्टम से भरोसा उठता है।”
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले के बाद नेताओं और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की गैरज़िम्मेदाराना बयानबाजियों के मामले में विस्तार से सुनवाई करने की ज़रूरत महसूस की और इसपर सलाह देने के लिए वरिष्ठ वकील फाली एस नरीमन को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। आजम खान के आज के माफीनामे के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई तो बंद कर दी जाएगी, लेकिन नेताओं की गैरजिम्मेदाराना बयानबाज़ियों पर सुनवाई चलती रहेगी, ताकि ऐसे बयानों पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए जा सकें।
कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े पदों पर बैठे लोग कुछ भी नहीं बोल सकते। कोर्ट के मुताबिक, बयानों के लिए लक्ष्मण रेखा तय करनी ही होगी।