रोहित वेमुला और अब रामकिशन ग्रेवाल – इन दोनों ने कथित रूप से ख़ुदकुशी की। एक आतंकवादी याकूब मेमन का समर्थक था, लेकिन तथाकथित ख़ुदकुशी के बाद उसे दलित चेतना का प्रतीक घोषित कर दिया गया। दूसरा एक पूर्व फौजी था, जिसने कांग्रेस के 10 साल के शासन में orop लागू नहीं होने पर ख़ुदकुशी नहीं की, लेकिन जब यह काफी हद तक लागू हो गया है, तब ख़ुदकुशी कर ली।
भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाँहें चढ़ाकर मनमोहन कैबिनेट के अध्यादेश की कॉपी फाड़ डालने वाले राहुल गांधी अगर पूर्व सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन की मांग के प्रति इतने संवेदनशील होते, तो उन्हीं की सरकार में यह लागू हो गयी होती। लेकिन तब तो पूर्व सैनिकों से मिलने और बात करने तक का वक़्त नहीं था उनके पास। इसलिए जब आज वे बगुला भगत बन रहे हैं, तो यह एक फ्लॉप राजनीतिक शो जैसा ही अधिक लग रहा है।
राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल- इन दोनों ने ही रोहित वेमुला और रामकिशन ग्रेवाल की लाशों पर जिस गिद्ध-दृष्टि के साथ राजनीति की, उससे यह संदेह होना स्वाभाविक है कि जिसे हम ख़ुदकुशी समझ रहे हैं, वह सुनियोजित तरीके से की/करायी गयी राजनीतिक हत्याएं हो सकती हैं। मुमकिन है कि ये दोनों राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल के बलि के बकरे हों। इसलिए इन दोनों मामलों की सीबीआई से जांच करायी जानी चाहिए।
न तो किसी आतंकवादी को फांसी से बचाने की लड़ाई लड़ने वाला व्यक्ति स्वयं फांसी झूल सकता है, न ही कोई बहादुर फ़ौज़ी किसी मांग के लिए आत्महत्या जैसी कायराना हरकत कर सकता है। इसलिए मुमकिन है कि उन्हीं लोगों ने सुनियोजित तरीके से इनकी हत्याएं की/करायी हैं, जो इन्हें ख़ुदकुशी बताकर इनका राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं।
मुझे हैरानी होती है कि जिन लोगों का दिल इस देश में लाखों किसानों, हज़ारों छात्रों की आत्महत्याओं से न पसीजा, सीमा पर रोज़ शहीद हो रहे सैनिकों के लिए नहीं रोया, वे एक आतंकवादी समर्थक छात्र या पूर्व सैनिक की तथाकथित ख़ुदकुशी पर इतने संवेदनशील कैसे हो गए?
ये तो वे लोग हैं, जिन्होंने बाटला हाउस में आतंकियों से मुठभेड़ में मारे गए इंस्पेक्टर मोहनलाल शर्मा को शहीद नहीं माना, उलटे बकौल सलमान खुर्शीद जिनकी माँ आतंकवादियों के लिए रात भर रोती रही थी, जो आतंकवादी इशरत जहाँ और सोहराबुद्दीन को भी शहीद जैसा ही मानते रहे, जो pok में सर्जिकल स्ट्राइक के सेना के एलान पर भरोसा नहीं करते। अगर वे लोग दो ख़ुदकुशी करने वालों को शहीद घोषित करके घड़ियाली आंसू बहा रहे हों, तो शक करना तो बनता है।
मुझे रोहित वेमुला और रामकिशन ग्रेवाल- दोनों के लिए बेहद अफ़सोस है, जिनकी जान सियासत की भेंट चढ़ गयी और मुआवज़े और अन्य आर्थिक सहायताओं के पहाड़ के नीचे दबकर जिनके अपने परिवार के लोग भी संभवतः इन भयानक सियासी साज़िशों को नहीं समझ पाए।