कुछ समय पहले तक यूपी में कांग्रेस की बेहद चहेती नेत्री रही रीता बहुगुणा जोशी अब बीजेपी में हैं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने राजनीतिक जीवन में कई पार्टियां बदलीं और कई समझौते किए। लेकिन जनसंघ या बीजेपी से कभी हाथ नहीं मिलाया। वास्तव में बहुगुणा एक प्रगतिशील कांग्रेसी नेता थे जो कांग्रेस में इंदिरा गांधी के सामने अपनी न चला पाने की वजह से सियासी पैंतरे बदलते रहे। उनके खून में कांग्रेसवाद कायदे से था भी नहीं। कांग्रेस या कह लीजिए इंदिरा के विरोधी खेमे के साथ वह खुद को ज्यादा सहज महसूस करते थे।
खुशवंत सिंह ने उनके बारे में लिखा है कि देवताओं ने उनका साथ नहीं दिया। कहा तो यह जाता है कि खुशवंत सिंह के ये ‘देवता’ और कोई नहीं बल्कि उस दौर के जनसंघी थे। बहुगुणा के ‘डीएनए’ में कांग्रेसी जड़ें बहुत गहरी नहीं थीं, लेकिन वे दक्षिणपंथी भी नहीं थे। सत्ता की अदम्य चाहत उनके भीतर हमेशा रही। इसलिए कांग्रेस छोड़ने के बाद दोबारा कांग्रेस में भी लौटे थे। फिर कांग्रेस से किनारा कर लिया।
गंगा किनारे वाले राजनीतिक छोरे अमिताभ बच्चन ने जब ऐसे दिग्गज नेता को 1984 में उनके अपने शहर इलाहाबाद में ही करीब दो लाख वोटों से हरा दिया तो इसका उन्हें गहरा सदमा लगा था। यह सदमा वे मरते दम तक बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। बहुगुणा जीवन भर चुनौतियों से लड़ते रहे और शह-मात का खेल खेलते रहे। लेकिन कभी जनसंघ या बीजेपी का दामन नहीं थामा।
आज उन्हीं बहुगुणा की इकलौती बेटी को यूपी में मरणासन्न कांग्रेस का समूल नाश करने के मकसद से बीजेपी की सदस्यता लेते हुए अपने बेहद संघर्षशील पिता की याद कैसे नहीं आई होगी? मुझे शक है कि बहुगुणा की बेटी रीता जोशी बहुत दिनों तक बीजेपी का साथ दे पाएंगी। आखिर हेमवती नंदन बहुगुणा के खून के कुछ कतरे तो उनकी नसों में खौलेंगे ही कभी न कभी।