बहुत पहले अमिताभ बच्चन की एक फिल्म का गाना था – “नशा शराब में होती तो नाचती बोतल, नशे में कौन नहीं है ये बताओ जरा”. वाकई कई हादसे ऐसे होते हैं कि लगता है कि नशा शराब में नहीं होती, नशे का रंग ही अलग होता है। समय समय पर नशे के नए रंग रूप देखने को मिलते रहते हैं और जो सबसे खतरनाक नशा होता है वो है सत्ता का नशा, पैसे का नशा यानि कुल मिलाकर अहंकार का नशा ।
सत्ता के भी की रंग है लेकिन सत्ता तो सत्ता है महाराज। सत्ता के नशे में चूर में एक ताजा उदाहरण हैं झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास। 2014 में जब झारखंड में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बाजी मारी तो सत्ता के शीर्ष के कई दावेदार थे। पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री तक लेकिन संघ औऱ नरेंद्र मोदी ने रघुवर दास को तवज्जो दी और उसकी वजह थी रघुवर दास का बेदाग होना।
दो साल से ज्यादा समय बीत गया प्रदेश में कितनी खुशहाली आई यह तो बहस का विषय हो सकता है और फिलहाल हम उस दिशा में नहीं जा रहे हैं लेकिन हम आपको बताना चाहते हैं कि बिहार में शराबबंदी लागू करने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड में भी शराबबंदी को हवा दी तो उस मुहिम को झटका कैसे लगा होगा। सूबे के मुखिया जब प्रेसवार्ता में हाथी पर उड़ने लगे और हाथी उड़ाने लगें तो आप समझ सकते हैं कि वहां नशाबंदी की नसबंदी कैसे हो गई होगी।
पिछले हफ्ते देश भर के अखबारों और चैनलों पर झारखंड की उपलब्धियों का बखान करती हुई मोमेंटम झारखंड के विज्ञापन आपने जरुर देखे होंगे। लेकिन हम आपको झारखंड के मुख्यमंत्री के एक मोमेंट से आपको रु-ब-रु कराते हैं जिससे यह साबित होता है कि आखिर क्यूंकर प्रदेश में इंवेस्टर्स आते नहीं उड़ जाते हैं।
दरअसल पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास क्या कहना चाह रहे थे यह किसी को समझ में नहीं आया, हां बार बार उन्होंने जिस किस्म से हाथी के उड़ने, झारखंड के उड़ने और खुद के उड़ने का जिक्र किया उससे यह साफ हो गया कि वो कहीं उड़ रहे थे। कहां यह आप खुद ही अंदाजा लगाइए।