वरिष्ठ पत्रकार और टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक दिलीप पडगांवकर का 72 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन हो गया। 10 दिन पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था जिसके बाद उन्हें पुणे के प्रयाग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पडगांवकर डायबीटीज से भी पीड़ित थे और तीन दिन पहले बेहतर इलाज के लिए उन्हें रूबी हॉल क्लिनिक में भर्ती कराया गया था जहां डॉक्टर अभय सदारे उनका इलाज कर रहे थे। पडगांवकर के निधन से पत्रकारिता के क्षेत्र में एक रिक्तता का अहसास कई वरिष्ठ पत्रकारों ने महसूस किया।
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव ने उन्हें ऐसे याद कियाः-
पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिए जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया के इंस्टीट्यूट में दाखिल हुए थे , तब दिलीप पडगांवकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रधान संपादक थे. और हमारे इंस्टीट्यूट के मानद निदेशक भी. पत्रकारिता के अपने प्रमाण पत्र पर उनके भी हस्ताक्षर है. दस दरियागंज के पते से जब बहादुरशाह जफ़र मार्ग पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इमारत में पहुंचे तो कुछेक बार उनके दर्शन भी हुए – हालाँकि तब बस अगर कभी दिख गए फ्लोर पर तो आदर मिश्रित अचकचाए भाव से उन्हें देख कर ही गदगद रहते थे. आखिर हम सब तब बच्चे ही तो थे. उन दिनों हिंदी में नवभारत टाइम्स में राजेंद्र माथुर और एस पी सिंह थे और अंग्रेजी में टाइम्स ऑफ़ इंडिया में दिलीप पडगांवकर और अजय कुमार. बाद में उन्होंने APCA का गठन किया था. टीवी के दौर में उनको कई बार सामने से बोलते देखा- सुना- शानदार, गंभीर वक्ता.बहुत पढ़े लिखे. अपने उस बयान के चलते काफी चर्चा में रहे थे कि देश में प्रधानमंत्री के बाद दूसरा सबसे महवपूर्ण पद टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक का है. टीवी पत्रकारिता में ही आँख खोल रही पीढ़ी के लिए शायद इतनी पढ़ाई लिखाई का न तो कोई महत्व है और न ही गूगल युग में शायद उसकी कोई अहमियत. सच तो ये है कि पडगांवकर जैसे संपादक अब प्रिंट में भी नहीं हैं. वो पूरी की पूरी पीढ़ी हमारे सामने से ओझल हुई जा रही है. उनकी स्मृति को विनम्र प्रणाम.
(लेखक अमिताभ श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं, देश के प्रमुख न्यूज चैनलों आजतक और इंडिया टीवी में प्रमुख पदों पर रह चुके हैं )