”मैं इसलिए चिल्लाता हूं क्योंकि इस देश में चिल्लाओगे नहीं तो कोई सुनेगा नहीं।” ये बातें भास्कर उत्सव के तहत जयपुर में बुधवार को जर्नलिस्ट अर्नब गोस्वामी ने कही। टाइम्स नाऊ में अपनी पारी खत्म करने के बारे में अर्नब ने कहा, ”मेरे जाने पर सेलिब्रेट करने वाले अब अफसोस मनाएंगे। मैं वापसी कर रहा हूं। मेरा नया वेंचर है ‘रिपब्लिक’।’
कॉलेज की शुरुआत में सामना धर्म और जाति से
अर्नब ने कहा, ”मैं 90 के दशक का स्टूडेंट हूं। हिंदू कॉलेज में एंटर नहीं करने दिया गया क्योंकि मेरे नाम में गोस्वामी है। कॉलेज के पहले साल में हम इंडिविजुअल नहीं थे, हम सिर्फ कास्ट थे। सेकेंड ईयर में चाणक्य थियेटर से मूवी देखकर आ रहा था और चांदनी चौक के बाहर रुका। पूछा तो लोगों ने बताया कि बाबरी ढांचा तोड़ दिया। यानी कॉलेज के पहले साल में जाना कि आपकी कास्ट क्या है और सेकेंड ईयर में जाना आपका धर्म क्या है। उसके बाद मेरी बैच के 70% लोग विदेश चले गए और लौटे नहीं। मैं यहीं रुक गया।”अलग-अलग शहरों में रहा, लेकिन मध्य प्रदेश से मेरा गहरा रिश्ता रहा है। यहां ऐसा कोई स्कूल नहीं रहा होगा, जहां मैंने डिबेट या पार्टिसिपेशन नहीं किया हो।”
नाकामियों से भरी है जिंदगी
अपने करियर के बारे में अर्नब ने कहा, ”मेरी जिंदगी भी नाकामियों से भरी हुई है। मैं शुरुआत में यह नहीं तय कर पा रहा था कि मुझे कहां जाना है। अर्नब ने कहा, ”जब हमने प्रिंस के गड्ढे में गिरने की खबर दिखाई और वो जिंदा निकला तो सभी की आंखों में आंसू थे। आप कोई स्टोरी कर रहे हैं और आपके पास उसके पेपर हैं। यदि कुछ कम ज्यादा भी है तो जर्नलिस्ट का कॉन्फिडेंस ही उसको जीत दिलाता है।”
अपने करियर के बारे में अर्नब ने कहा, ”मेरी जिंदगी भी नाकामियों से भरी हुई है। मैं शुरुआत में यह नहीं तय कर पा रहा था कि मुझे कहां जाना है। अर्नब ने कहा, ”जब हमने प्रिंस के गड्ढे में गिरने की खबर दिखाई और वो जिंदा निकला तो सभी की आंखों में आंसू थे। आप कोई स्टोरी कर रहे हैं और आपके पास उसके पेपर हैं। यदि कुछ कम ज्यादा भी है तो जर्नलिस्ट का कॉन्फिडेंस ही उसको जीत दिलाता है।”
साभार – दैनिक भास्कर.कॉम