नोटबंदी के बाद देश बदल रहा है, भुगतान के तरीके बदल रहे हैं और साथ ही बदल रहा है हिंदुस्तान का पारंपरिक इतिहास। हम-आप में से कइयों को याद होगा बार्टर का सिस्टम। जब करेंसी चलन में नहीं थे या कम थे तो यह प्रचलन में था, फिर नोट आए। धीरे धीरे नोट जरुरत से ज्यादा मात्रा में आ गए और तभी आया हमारे सिस्टम में आया कालाधन। अब इसको रोकने के लिए सरकार नई नीति लेकर आई और बड़े नोट बंद कर दिए। इस नोटबंदी से देश उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। अब अगर सब्जी वाला आपसे दो हज़ार के नए नोट की जगह पेटीएम से सब्जी का पैसा मांग ले या चाय वाला चाय की पेमेंट पेटीएम से मांगे तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आप के पास खुदरा पैसे नहीं हैं फिर भी आप समोसे खा सकते हैं बस पास में पेटीएम या इस किस्म का कोई भी दूसरा साधन हो।
लेकिन क्या आपने सोचा है कि सब्जी वाला, चाय वाला या फिर समोसेवाला जो पैसा डिजिटल मनी के तौर पर आपसे लेगा, क्या उसपर उसे टैक्स नहीं देना होगा। अब टैक्स के नए सेंटर होंगे ये छोटे-छोटे व्यवसायी जिसे आप दिहाड़ी मजदूर भी कह सकते हैं। 124 करोड़ की आबादी वाले देश में अभी तक महज 3 करोड़ से कम लोग टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं। इनमें टैक्स भरने वालों की तादाद और कम है। डिजिटल मनी या फिर कैशलेस इकॉनॉमी के इस बदलते दौर में यह छोटे व्यवसायी सीधे इसकी जद में आएंगे। अभी तक ठेले रेहड़ी वाले अपनी जमा पूंजी घर बनाने, बेटी की शादी करने और जमीन खरीदने जैसे कामों में लगते है। एक तरफ तो कैशलेस इकॉनॉमी से वे सब बैंकिंग व्यवस्था की तरफ आकर्षित होंगे लेकिन साथ ही टैक्स की उलझी हुई और जटिल प्रक्रिया से दो चार होने पर उनकी परेशानी बढ़ेगी।
कालाधन सिस्टम से बाहर करने और देश में जमा कालाधन को बैंकिंग व्यवस्था में लाने के लिए प्रयासरत मोदी सरकार को सबसे पहले देश का टैक्स सिस्टम दुरुस्त करना चाहिए। टैक्स सिस्टम अगर सरल और पारदर्शी होता तो ऐसे हालात न बने होते, निश्चित तौर पर कम पढ़े लिखे तबके के लोग भी इसको अपनाते लेकिन हमारी जटिल टैक्स व्यवस्था ने आम लोगों की परेशानियां बढ़ा रखी हैं, अब यह और ज्यादा बढ़ेगी और इसमें यह चाय-समोसे-सब्जी वाले भी उलझेंगे। अभी जिसमें उलझे हैं उसके बारे में जानिए।
क्या है कैशलेस ट्रांजेकशन ?
कैशलेस ट्रांजेकशन एक प्रकार का ऑनलाइन लेनदेन है। जैसे आप अपने जेब वाले बटुए से पैसे निकाल कर किसी को देते है या किसी से लेकर उसमें रखते हैं। ठीक उसी प्रकार अब आप अपने डिजिटल बटुए यानि बैंक खाते में रखने के साथ किसी को दे भी सकते हैं लेकिन हाथ से नहीं बल्कि डेबिट या क्रेडिट कार्ड, पेटीएम जैसे ऑनलाइन पोर्टल अथवा ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से।
किनको हो रहा है फायदा ?
नोटबंदी के बाद पेटीएम या इस जैसे अन्य उपाय छोटे दूकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है। सब्जी वाले, छोटे और अस्थाई दुकानदार को पैसे देने में, डीटीएच का रिचार्ज, मोबाइल का रिचार्ज या फिर दोस्तों को पैसे भेजने में, विभिन्न ब्रांडों एवं सेवाएं जैसे कि ओला, उबेर, मेक माय ट्रिप एवं बुक माय शो इत्यादि का भुगतान करने में अब परेशानी का सामना करना नहीं पड़ रहा है।
क्या कहना है लोगों का?
खुले पैसों की कमी के चलते अब लोगों को सेक्टर – 62 मार्केट से से निराश नहीं लौटना पड़ रहा । 500 और 1000 रुपये के नोट बंद होने के बाद दुकानदारों ने ग्राहकों के लिए पेटीएम की सुविधा दी है। नोटबंदी की वजह से ग्राहकों को खुले पैसों के कारण काफी परेशानी हो रही थी और खुले पैसों के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा था।
“खुले पैसों को लेकर काफी परेशानी रही थी जब भी कोई ग्राहक 500 और 1000 का नोट लेकर समान लेने आते हैं तो मजबूरन हमें उन्हें वापस लौटना पड़ता था। जिससे हमारी दुकानदारी काफी कम हो गई थी। मैंने पांच दिन पहले दुकान पर पेटीएम लगवाया है जिसका काफी अच्छा रेस्पॉन्स देखने को मिल रहा है। रोजाना 7 से 8 ग्राहक पेटीएम से समान खरीद रहे हैं” – भावेश, दुकानदार
“नोट बंदी के बाद से समान बेचने में परेशानी हो रही थी। ग्राहक खुल्ले पैसे नहीं दे पा रहे थे जिससे दुकान मंदा चल रहा था। पेटीएम लगवाने के बाद अब रोजाना 12 से 15 ग्राहक पेटीएम से पेमेंट दे रहे हैं” – भोला, नोएडा में एक कॉलेज के सामने चाय की दुकान लगाते है।
“मैंने 3 महीने पहले दुकान में पेटीएम लगवाया था लेकिन तब इसका कोई खास रेस्पॉन्स नहीं मिल रहा था लेकिन सरकार के नोट बंदी के फैसले के बाद से ग्राहक खरीदारी के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।” – रामपवन गुप्ता, मालिक , स्टेशनरी दुकान
मयूर विहार फेज़-3 में समोसे- जलेबी की दुकान लगाने वाले दुकानदार का कहना है कि मोदी जी ने कहा था कि किसी भी ट्रांजेक्शन के लिए कोई चार्ज नहीं ले रहे हैं, इसलिए उन्हें लगा कि अगर पेटीएम लगा लें तो उस पर कोई चार्ज नहीं देना होगा और बिजनेस भी प्रभावित नहीं होगा. खास बात ये है कि इन दुकानों पर ग्राहकों की संख्या पहले से ज्यादा हो गई है।