बैंकों के बाहर अपने पैसे बदलवाने के लिए खड़ी कतार खत्म होने का नाम नहीं ले रही। एटीएम के ठीक से नहीं चलने और उसमें पर्याप्त पैसे की कमी से वहां दिन-रात लंबी कतारें देखी जा रही हैँ। धीरे धीरे सरकार की तैयारियों की पोल खुल रही है। कालाधन के खिलाफ चलाई जाने वाली मुहिम में या तो आम जनता परेशान है या फिर कालाधन के व्यापारी उसका रंग बदलने की तैयारी और जुगत जुगाड़ में जुटे हैं।
8 नवंबर की रात को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की तब से लेकर अब तक 10 दिनों के भीतर तीन बार उन नियमों में परिवर्तन किया जा चुका है जिसके तहत नोट बदलना, जमा करना या फिर जमा पैसे की निकासी करना था। 10 महीने से चल रही गोपनीय तैयारी का ये हश्र समझ से परे है। कतार में घंटो में खड़े रहने, काम काज छोड़ कर चंद पैसों के लिए कतारबद्ध होने और तमाम तरह की परेशानियों के झेलने के बाद भी आम जनमानस सरकार के इस फैसले के पक्ष में खड़ा दिखता है तो इसकी वजह है कि वो देश से कालाधन का अंत होते देखना चाहता है। अपनी रोजमर्रा की समस्याओं से दो चार होने वाला शख्स कल के हिंदुस्तान की तस्वीर बेहतर देखना चाहता है ताकि उसकी अगली पीढ़ी का भविष्य संवर सके।
याद कीजिए 5 साल पहले का जनलोकपाल को लेकर अन्ना का आंदोलन, एकबारगी देश जैसे सड़क पर आ गया था और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए दिल्ली-आस-पास नहीं बल्कि दूर-दराज के कई राज्यों के लोग भी रामलीला मैदान के लिए कूच कर गए थे। 13 दिनों के आंदोलन ने जनता में भ्रष्टाचार खत्म हो जाने की एक उम्मीद जगाई थी लेकिन उसका क्या हश्र हुआ और उससे उपजे नेताओं ने किस कदर जनता को मूर्ख बनाया देश का इसका गवाह है । भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करके उससे निकले नेता आज कालाधन के इस मुहिम के खिलाफ राष्ट्रपति भवन तक मार्च करते हैं और सब्जी मंडियों में रैलियां कर रहे हैं।
जनता आखिर क्या करे उम्मीद ही लगाती है, देश से कालाधन खत्म होने की इस बार उम्मीद लगा बैठी है। ठीक उसी तरह जैसे 2011 में भ्रष्टाचार खत्म होने की उम्मीद लगा बैठी थी। जनलोकपाल आंदोलन की दुखदायी परिणति के बाद इस देश की जनता बोलने लगी थी अब फिर से किसी आंदोलन की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन कालाधन के खिलाफ एक बार फिर पूरा देश आंदोलन के मूड में है तभी तो दिन-रात कतार में खड़ा है, जान जा रही है लेकिन टस से मस नहीं हो रहा । लेकिन इस बीच जब यह खबर आती है कि बीजेपी का एक नेता जो कभी पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को अपनी मां का दर्जा दे चुका है जब सुषमा स्वराज किडनी फेल होने की वजह से डायलिसिस करा रही है और वो अपनी बेटी की शादी में पांच सौ करोड़ फूंक रहा है तो तकलीफ होती है। जिस सलीके से नोटबंदी के इस फैसले को सरकार ने सीधे कालाधन से जोड़ा है उससे जनता में एक बार सरकार को लेकर उम्मीद जगी लेकिन 10 दिनों में जिस किस्म की तैयारी दिखी है उससे साफ हो गया है कि सरकार इस देश की नब्ज पहचानने में अभी भी फेल है। पत्रकार नरेंद्र नाथ कहते हैं यह रिटर्न ऑफ जनलोकपाल मूवमेंट, मुझे आशंका है कि हश्र बस उसी आंदोलने की तरह नहीं हो। हमारे आपके जमा लाखों करोड़ों रुपए किसी और माल्या के पास नहीं चले जाएं।
साथ ही लंबी कतारों के जो कुछ कारण सामने आए हैं वो काफी डरावने हैं। कई जगह दिहाड़ी पर लोग पैसे बदलवाते नजर आए, इसे रोकने के लिए सरकार ने वोटिंग वाली स्याही लगाने का फरमान सुनाया जो न तो इस समस्या का निदान था और न हीं नीति निर्धारकों की सही सोच का परिचायक। उपर से शक्तिकांत दास का यह कहना कि नए नोट से रंग छूटेगा इतना हास्यास्पद है कि आऩे वाले दिनों में कोई जालसाज जब नकली नोट बाजार में उतारेगा तो यही उदाहरण पेश करेगा और कहेगा कि देखो यह असली है क्योंकि रंग छोड़ता है। मैंने बार बार कहा है कि बहुमंजिला इमारतों के एसी कमरो में बैठ कर इस देश की तकदीर नहीं लिखी जा सकती । एक दूसरा पहलू है कि बाहर तो लोग कतार में खड़े हैं लेकिन अंदर कई बैंकों के अंदरखाने से कालाधनवालों के नोट अलग अलग तरीके से बदले जा रहे हैं और यह लंबी कतार कम नहीं होने का एक प्रमुख कारण यह भी है।
वित्त मंत्री से लेकर सरकार का पूरा अमला अखबारों और टेलीविजन चैनलों के जरिए इस बात को सही ठहराता दिखा कि जिसके घर में शादी है वो सारे खर्च चेक या कार्ड के जरिए करे, रजत शर्मा से बात करते हुए अरुण जेटली ने कहा था ऐसी कौन सी परंपरा है कि शगुन का पैसा कैश में ही दिया जाएगा। रजत जी ने जब यह कहा कि धरातल पर आकर देखिए बारात बैंक में ठहरेगी और फेरे एटीम में लिए जाएँगे तो लगा कि समस्या हंसी में उड़ाने लायक नहीं है क्योंकि कई जगह दुल्हा-दुल्हन कतार में खड़े नजर आए। अगर सरकार को अपनी तैयारी और फैसला इतना सही लग रहा था तो आखिर अब क्यूं यह फैसला िलया गया कि शादी वाले घरो के लोग बैंक में शादी का कार्ड दिखाकर ढाई लाख रुपए तक निकाल सकते हैं। प्रतिदिन नोट बदलने की सीमा साढ़ेचार हजार से घटा कर 2000 कर दिया गया गया है। साथ ही किसानों को २५ हजार रुपए साप्ताहिक या एक दिन में निकालने की छूट दी है । जिनकी KYC अपडेटेड है, जिनको कृषि लोन मिला है इत्यादि। कहने का मतलब यह है कि शादी और रबी बुआई के मौसम में लिया गया यह फैसला इन दोनों की अनदेखी करके ही लिया गया था।
प्रधानमंत्री के भावुक भाषण के बाद देश की जनता ने जरुर ५० दिन उन्हें देने का मन बनाया है तभी तो विपक्षी पार्टियों के लाख उकसाने पर भी जनता अपने भाव में कतार में खड़ी है। और हो भी क्यूं नहीं, जो जनता कतार में खड़ी है वो हर काम के लिए कतार में लगती है और दूसरे जो चंद लोग कतार में खड़े हो रहे हैं उन्हें भी कभी कभार कतार में खड़े होना चाहिए। राशन की चीनी, मिट्टी तेल और सिनेमा के टिकट के लिए हम भी घंटो में कतार में खड़े हुए हैं। कतार को हीन भावना से देखने वालों को जरा बीस साल पहले का हिंदुस्तान याद करना चाहिए जहां हर काम के लिए कतार में आम बात थी। लेकिन अगर कतार में खड़े होने के बाद भी उसके साथ छल हुआ, कालाधन के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए गए और जैसा हिंदुस्तान देने का वादा प्रधानमंत्री सीना ठोक कर कह रहे हैं वैसा नहीं हुआ तो निश्चित तौर पर दुखदायी होगा। ऐसे में यह मामला रिटर्न ऑफ जनलोकपाल ही साबित न हो जाए।