प्रधानमंत्री जी!
आश्वासनों की चासनी से अपनी क्षुधा तृप्त करने की आदी जनता ने एक बार फिर आपके शब्दों पर विश्वास कर 50 दिनों का समय दे दिया हैं, शर्त यह है कि चुनाव पूर्व के 15 लाख के वादे की तरह आपकी पार्टी की ओर से जुमला निरूपित न कर दिया जाए। देश ने वादे और चुनाव पश्चात ‘सबका साथ सबका विकास’ के वादे को सच मान आपका साथ दिया। कालाधन के मुद्दे पर भी आपने चुनाव पूर्व जब सिर्फ 100 दिनों की सरकार की मांग की थी, जनता ने आपको 1825 दिनों की सरकार दे डाली। बावजूद इसके क्या यह सच्चाई मोटी रेखाओं से चिन्हित नहीं हुई और हो रही है कि अबतक वे सभी वादे पूरे नहीं हुए। देश की अति सहनशील जनता आपकी और आपकी पार्टी की ओर से अग्रसारित तकनीकी व व्यवहारिक अड़चनों के तर्क को भी मानने को तैयार है, लेकिन इसके साथ भी एक शर्त ‘नीयत’ की ! जनता अब आपकी ‘नीयत’ को परखना चाहती हैं। जनता वादों के लिए उपयुक्त शब्दों की शब्दिक अर्थावली में न जाकर आपकी ‘भावना’ को समझना चाहती है ‘नीयत’ और ‘भावना’ में निहित इच्छा को परखना चाहती है। मैं दोहराना चाहूंगा कि देश की जनता ‘परिवर्तन’ की प्रतीक्षा कर रही है। हांलािक ढाई वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, चंहुओर, निराशा व्याप्त है। संयम की बेड़ियां ढीली पड़ने लगी हैं। बावजूद इसके जनता प्रतीक्षारत हैं ‘नवपरिवर्तन’ के उदय की।
प्रधांनमंत्रीजी! आप गाांठ बांध आश्वस्त हो सकते हैं कि देश की जनता आप पर विश्वास कर आपका साथ देने को तैयार है। अगर जनता की कसौटी पर आपकी नीयत और भावना की स्वच्छता प्रमाणित होती है, फिर 50 दिन क्या वह आपको कई 5 वर्ष दे देगी लेकिन, सकारात्मक, ईमानदार संकेत तो मिलने चाहिए।
प्रधानमंत्रीजी ताजा नोटबंदी को लेकर जनता के बीच उठी शंकाओं का प्रभावी निराकरण करना ही होगा। लोकतंत्र में सवाल उठते हैं, सवाल उठाये जाते हैं, तो निर्वाचित सरकार को समाधानकारक तर्कों के साथ सामने आना ही होगा आपने निर्णय के पीछे देश की अर्थ व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने वाली कालाधन की समांतर अर्थव्यस्था को जिम्मेदार ठहराते हुए ‘बड़ा कड़वा डोज’ देने की बात कही है। आपने जनहित मेें सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा भी व्यक्त की हैं, बल्कि देश को आश्वस्त किया है कि परिणाम से आनेवाले दिनों मेें देश का सामान्य वर्ग व गरीब मजदूर, किसान लाभान्वित होंगे। देश मेें एक ऐसी खुशहाली आएगी, जिसकी कल्पना पिछले 70 वषों में किसी ने नहीं की, अगर सही साबित होता है, तब प्रधानमंत्रीजी आप निश्चय ही युगप्रवर्तक के रूप में इतिहासपुरूष बन जाएगें। इसलिए देश आपको एक बार फिर संदेह का लाभ देने को तैयार है। लेकिन, क्या सचमुच नोटबंदी के ताजा कदम से भ्रष्टाचार मुक्त भारत की आपकी कल्पना साकार हो पाएगी विशेषकर, जब देश की जनता अभी भी प्रतीक्षा कर रही है कि विदेशों में जमा बडे़ उद्योगपतियों, राजनेताओं, अभिनेताओं आदि के लाखों करोड़ो का कालाधन वापस देश लाए जाने की। क्या यह सच नहीं है कि ये धनपशु बेखौफ मुदित विचर रहें हैं ? आरोप तो यहां तक कि इन्हें हर तरह का सरकारी संरक्षण प्राप्त हो रहा है। उन्हें कालेधन को सफेद कर लेने या ठिकाने लगाा देने के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाते रहें है विशेषकर जब ललित मोदी और विजय माल्या को कथितरूप से विदेश भगा दिए जाने के आरोपोें के बाद सरकार की नीयत पर संदेह किए गए। ‘पनामा पेपर्स’ के सार्वजनिक होने के बाद भी अभी तक कोई दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या बड़े मगरमच्छों को छुट्टा छोड़ छोटी मछलियों को जाल में फांस लेने से भ्रष्टाचार से प्रदूषित तालाब स्वच्छ हो जाएगा? हवाला से लेकर देश के अंदर जारी अन्य कालाधन आधारित लेनदेन पर आपके इस ताजाकदम से अंकुश तो लगेंगे, किंतु क्या जटिल टैक्स प्रणाली का सिस्टम भविष्य में इन रोगों को पुनः उभरने से रोक पाएगा ? छोटे-मोटे खुदरा व्यापारी, दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर, कर्ज ले खेतों में करनेवाले छोटे किसान व वेतन भोगी वर्ग के समक्ष उत्पन्न परेशानियों का तत्काल इलाज चाहिए । कहीं ऐसा ना हो कि छोटी मछलियों की मौत के बाद पूरी की पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था कालेधन व शोषण कर बड़े हुए मगरमच्छों के हाथों में ना चली जाए। भारत जैसे विशाल देश मेें क्या एकाधिकार आधारित अर्थव्यवस्था सफल हो पाएगी? ये कोरी कल्पनाएँ, आकांक्षाए हो सकती हैं, किन्तु व्यवहार के स्तर पर निर्मूल नहीं.
प्रधानमंत्रीजी! अगर साफ नीयत से राष्ट्रहित में कदम उठाने का दावा करते तो हैं उन्हें व्यवहार के स्तर पर शासकीय प्रणाली की सोच को क्रियाविन्त करने के उपाय ढूंढने होंगे. यह काम सरल नहीं. वर्षो पुरानी भ्रष्ट व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन को चुनौतियां अंदर से ही मिलेंगी. प्रधानमंत्रीजी आपने स्वंय के प्राण ले लिए जाने की आशंका व्यक्त की है इसलिए पूरा देश फिर आपको 50 दिनों का अवसर दे रहा है। आपसे प्रार्थना भी है और चेतावनी भी कि राजनीतिक लफ्फाजी से दूर इस बार सुनिश्चित करें कि देश की जनता जुमलों के जाल में ना फंसे, राजनीति ठगी की शिकार ना हो। अगर जनता की इस कसौटी पर आप खरे उतरते हैं, तब 2014 की तरह ‘हर हर मोदी,घर-घर मोदी’ पुनः गुंजयमान हो उठेगा! आप”युग प्रवर्तक” बन अमर हो जायेंगे प्रधानमंत्री मोदी!