प्रिय ओम पुरीजी,
आपने सही कहा, किसने इन्हें कहा फ़ौज में भर्ती हो जाओ, वैसे भी हमारे श्री कन्हैया कुमार तो कह ही चुके हैं की जब कुछ काम नहीं मिलता तो फ़ौज में जवान बन जाते हैं.
ये फौजी भी पागल ही होते हैं एक इशारे पे चल पड़ते हैं मरने को, इन्हें क्या पड़ी थी की 26/11 को पंहुच गए फाइव स्टार होटल में टेररिस्ट अटैक में फंसे लोगों को बचाने, पागल हैं. अरे इनकी तो ड्यूटी है। ये तो कश्मीर में पत्थर मारने वालों को भी बाढ़ में बचाने पंहुच जाते हैं।
क्या है कि इतने पागल हैं इन्हें समझ नहीं आता की एनडीए या सीडीएस की जगह जेएनयू तक जाने की कोशिश करते। फिर तो वहीँ 40 साल तक आराम से रहते और दुनिया भी कहती भाई बुद्धिजीवी हैं, मोटी-मोटी किताबें पढ़ते हैं। तगड़ी पगार-वजीफा पाते हैं, बहुत ज्ञानी हैं। हवाई जहाज में घूमते हैं। इंटरनेशनल एनजीओ से भर-भर के डोनेशन पाते हैं।
सिरफिरे कहीं के, आये बड़े फौजी। जो बेचारे मासूम, भटके हुए आतंकवादियों की गोली खाके मर जाते हैं ये फौजी, आखिर क्या मिलता है इन्हें? झंडे में लपेट के घर आते हैं। बेवकूफ माँ-बाप भी हैं जो फ़ोकट फख्र भी करते हैं। और तो और अगली पीढ़ी सर उठा के खड़ी हो जाती है कि “हम भी पापा की तरह फौजी बनेंगे।“
पता है अब तो फौजियों की बीवियां भी पागल हो गयी हैं पति मर जाता है तो वो फ़ौज में भर्ती हो जाती हैं। जबकि वो अच्छी खासी पेज थ्री की ‘शोभा’ बढ़ा सकती हैं!
वैसे गांधीजी बड़े काम की बात कर गए हैं ( मैं मानती नहीं हूँ ) कोई एक गाल पे थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। तो ये जो रोज़ आतंकवादी हमले कर रहे हैं न , क्यों नहीं आप ही जाके अपना गाल आगे कर दें? नहीं ?
बेवकूफ फौजियों को बता दीजिये, वो बेकार का काम कर रहे हैं .. आप जाइये न ज़रा सीमा पे आतंवादियों को दुरुस्त कर आइये, लगे हाथ मासूम आतंकवादियों को भी थोड़ा समझा-बूझा दीजिए.
ये देश किसी के बाप का नहीं है, सही बात, इसलिए अपनी ज़हनी गन्दगी को फौजियों के कफ़न में मत पोंछिए, क्योंकि वो अपनी मां, भारत मां के लिए निछावर होते हैं, ताकि जिनके बाप का ये देश है, वो चैन से सो सके।
(लेखिका मुंबई में एक एडवर्टाइजिंग कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)