आप और हम आए दिन ऐसे चुटकुले सुनते रहते हैं जिसके केंद्र में कोई न कोई सिख पात्र होता है। सिखों पर चुटकुले तो इस कदर बने कि दो पात्र संता और बंता दुनिया के किसी भी पात्र से ज्यादा मशहूर हैं। इतना ही नहीं किसी भी मशहूर सिख के साथ भी चुटकुलों की लंबी कहानी है चाहे वो मनमोहन सिंह या फिर नवजोत सिंह सिद्धू। अब तो प्रधानमंत्री ने संसद में भी सिख सांसद भगवंत मान को ही चुटकुला बना दिया।
ऐसे में सिखों पर बनने वाले चुटकुलों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई गई, मांग की गई थी कि कोर्ट ऐसे चुटकुलों को रोकने के लिए गाइडलाइन बनाए। लेकिन दो जजों की बेंच ने किस्से और उदाहरण सुनाकर चुटकुलों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा-सिख समुदाय पर बनने वाले चुटकुले कोई रैगिंग नहीं है। अगर किसी को ऐसे चुटकुलों से परेशानी है तो उसके लिए आईटी एक्ट या आईपीसी के प्रावधान हैं। वो केस दर्ज करा सकता है।
अदालत में वकील और जज की बहस
मंगलवार को कोर्ट में इस मसले को लेकर जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस भानुमति और याचिकाकर्ता के वकील आरएस सूरी के बीच बहस हुई।वकील सूरी: लोगों ने सिखों पर चुटकुले बनाकर पूरे समुदाय का मजाक बना डाला है। इससे सिखों के बच्चे हीनभावना का शिकार हो रहे हैं। समाज का विकास रुक गया है। ऐसे चुटकुले रैगिंग की तरह हैं। समुदाय को ऐसे चुटकुलों से सुरक्षा चाहिए। इस पर गाइडलाइन बनना चाहिए।जस्टिस मिश्रा: हर किसी की अपनी शख्सियत होती है। प्रतिबंध लगाना हमारा नहीं, विधायिका का काम है। सिखोंं पर चुटकुलों से कुछ लोग हंसते हैं, तो कुछ को फर्क नहीं पड़ता है। सिख समुदाय का बहुत सम्मान है। लेकिन इस तरह की याचिकाएं सिख समुदाय की गरिमा ही कम करती हैं।
वकील सूरी: मजाक करना और किसी का मजाक बनाना दोनों अलग-अलग बातें हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट विशाखा मामले में छेड़छाड़ को लेकर गाइडलाइन जारी कर सकता है तो सिख समुदाय पर बनने वाले चुटकुलों पर क्यों नहीं कर सकता?
जस्टिस भानुमति: ये दो मामले पूरी तरह अलग हैं। इस मामले में उसका हवाला न दें। यह सिर्फ आपकी धारणा है। आपकी याचिका में मांग कुछ और है और आपका फोकस कहीं और जा रहा है।
जस्टिस मिश्रा:मैं उदाहरण के तौर पर कहानी सुनाता हूं। एक रस्सी से जाने वाला एक रास्ता था। उसमें एक ट्राली में दो लोग बैठकर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे। उनमें से एक फ्रांसीसी था और दूसरा अंग्रेज था। रास्ते में रस्सी टूटने लगी। फ्रांसीसी नागरिक रोने लगा और अंग्रेज शांत रहा। अंग्रेज ने पूछा कि रो क्यों रहे हैं? फ्रांसीसी बोला कि मैं मर गया तो मेरे बैंक बैलेंस, बीवी और बच्चों का क्या होगा? कुछ समय बाद दोनों सकुशल दूसरी ओर पहुंच गए। ट्राली से उतरते ही अंग्रेज रोने लगा। इस पर फ्रांसीसी ने कारण पूछा तो अंग्रेज बोला कि अगर मैं मर गया होता तो? कहानी का सार ये है कि किसी मामले को आप किस तरह लेते हैं। किसी मामले को समझना धारणा और प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है।
वकील सूरी: कोर्ट को ऐसे चुटकुलों को रोकने के लिए एक गाइडलाइन बनानी चाहिए
जस्टिस मिश्रा : क्या किसी अन्य धर्मया समुदाय के लिए इस तरह की गाइडलाइन बनी है? इसे समझने के लिए सैनिकों से जुड़ा एक और उदाहरण सुनिये… 1. सैनिक न्यूनतम तापमान में देश के लिए युद्ध लड़ रहे हैं। जब हम सोते हैं तो वो हमारी सुरक्षा के लिए रात को जागकर सीमा पर युद्ध करते हैं। 2. शांंतिकाल में सैनिक पिता के लिए चिंतित रहता है और युद्ध के समय पिता बेटे के लिए चिंतित रहता है। कहने का मतलब है कि हर बात के दो अर्थ होते हैं। यह हम पर है कि हम किसी बात को किस संदर्भ में लेते हैं।
इस मामले में वकील हरविंदर चौधरी ने अर्जी लगाई थी। फैसले के दौरान जज ने कहा कि सिखों का दुनियाभर में सम्मान है। जब देश पर हमला हुआ तो सिखों ने वीरता से युद्ध किया था। जज ने कहा, “आप अपसाइड डाउनबुक पढ़िए। मैं इस पर 27 मार्च को आपसे पूछूंगा। मामले पर अंतिम फैसला सत्ताइस मार्च को सुनाया जाएगा