समाजवादी पार्टी के परिवार की नूरा-कुश्ती अब भी जारी है। पिछले पचास दिनों से नोटबंदी की समस्याओं से दो-चार हो रहे देश में, उत्तर -प्रदेश के राजनैतिक माहौल की चर्चा थोड़ी धीमी हो गई थी । लेकिन जैसे जैसे नोटबंदी की मियाद खत्म हो रही है समाजवादी परिवार का कलह भी सामने आ रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनैतिक चर्चा भी होने लगी है और मीडिया में खबरें भी।
पहले चाचा शिवपाल यादव ने 175 कैंडिडेट्स की सूची जारी की उसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिताजी से मुलाकात की औऱ उनको पूरे 403 उम्मीदवारों की सूची सौंप दी। अखिलेश किसी भी कीमत दागी और अपराधी छवि वाले नेताओं को फिर से पार्टी की उम्मादवारी देने के पक्ष में नहीं है। बाद ने नेताजी ने भाई शिवपाल के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस कर 325 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। इन उम्मीदवारों में 43 फीसदी दागी मोजूदा विधायक शामिल हैं। औऱ यही दागी विधायक अब पार्टी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में गुल खिलाएंगे।
दिखने में लगता है कि समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे में अनदेखी किए जाने से न सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दुखी होंगे बल्कि कांग्रेस की उम्मीदों को भी जोरदार झटका लगा होगा। अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। चाचा शिवपाल खुलेआम कह चुके हैं कि अखिलेश अलग पार्टी बनाकर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सोच रखते हैं। ऐसे में अगला एक दो दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम होगा। लेकिन इसके पीछे की राजनीति को समझना जरुरी है।
समाजवादी कुनबे में चल रही इस तनातनी पर कांग्रेस की उम्मीद आ टिकी है। जोशोखरोश और पूरे तामझाम के साथ यूपी चुनाव लड़ने का इरादा लेकर उतरी कांग्रेस को जमीनी हालात का जब अंदाजा हुआ तो उसने अपनी रणनीति में बदलाव किया और इस वक्त कांग्रेस समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के लिए लालायित है, बशर्ते समाजवादी पार्टी उसके लिए 403 में से 80-100 सीटें छोड़ दे। अखिलेश ने 72 सीट का फार्मूला दिया था और अंदरखाने की खबर यह है कि कुछ औऱ सीटें अखिलेश कांग्रेस को देने का मन बना चुके हैं। साथ ही कांग्रेस को उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के जरिए वह पांच साल पहले का प्रदर्शन दोहरा सकती है। और बड़े मिशन के लिए समझौता किया जा सकता है।
अब कांग्रेस की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि क्या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता के खिलाफ बगावत करते हुए अपनी नई पार्टी बनाएंगे और कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे। कांग्रेस को लगता है कि अगर अखिलेश समाजवादी पार्टी छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तो कांग्रेस की उम्मीदें फिर जिंदा हो जाएंगी। साथ ही अखिलेश की साफ और ईमानदार छवि का लाभ मिलेगा। कांग्रेस का यह भी मानना है कि राजनीति में देर कभी नहीं होती।
दरअसल उत्तर प्रदेश की राजनीति जिस कदर समाजवादी परिवार की राजनीति के ईर्द गिर्द घूम रही है ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक कुश्ती के फोगाट पिताजी ने अपना आखिरी दांव किसे सिखाया है, बेटे मुख्यमंत्री को या फिर भाई शिवपाल को। कहते हैं कि धुरंधर खिलाड़ी अपना आखिरी दांव किसी को नहीं सिखाता औऱ मौके पर दांव पटकता है साथ ही यह भी कहा जाता है अच्छे से अच्छे धुरंधर को बेटे के सामने मात खानी पड़ी है। हाल में ही आई आमिर खान की फिल्म दंगल देखिए, पिता फोगाट बेटी से इसलिए नहीं हारता कि उसे दांव नहीं आते, बल्कि इसलिये मात खाता है कि क्योंकि उम्र ने उसे थका दिया है। यहां दोनों बाते हैं, नेताजी पिताजी भी है और पिताजी नेताजी भी हैं। 325 उम्मीदवारों की सूची जारी करना निस्संदेह नेताजी का आखिरी दांव नहीं है। पलड़ा बेटे के साफ छवि के पक्ष में भारी है इसलिए एक छोबिया पाट का इंतजार है। कौन चित होगा जल्द ही पर्दा हटेगा।