नोटबंदी लागू करने के बाद सबसे पहले इसे कालाधन के खिलाफ मुहिम करार दिया गया। नोटबंदी के बाद आम लोगों को हुई परेशानियों को विपक्ष ने मुद्दा बनाया लेकिन आम जनता के मन में एक सवाल हमेशा से कौंधता रहा कि क्या राजनैतिक पार्टियां अपने चंदे औऱ खर्चे का सही हिसाब देंगी।
अब इस मामले में चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई है, चुनाव में ब्लैकमनी का इस्तेमाल रोकने के लिए इलेक्शन कमीशन सख्ती दिखाते हुए केंद्र सरकार को 3 अहम सुझाव दिए हैं।
- पहला सुझाव सियासी दलों के गुपचुप तरीके से 2000 रुपए से ज्यादा चंदा लेने पर रोक लगाने का है। अभी यह सीमा 20 हजार रुपए है।
- दूसरा सुझाव है कि चुनाव नहीं लड़ने वाली पार्टियों को इनकम टैक्स में छूट न दी जाए।
- तीसरा सुझाव है कि पार्टी कूपन से चंदा देने वालों का भी पूरा ब्यौरा रखा जाए।यह सुधार लागू करने के लिए आयोग ने केंद्र से कानून में बदलाव की सिफारिश की है।
नोटबंदी से आम लोगों को हो रही दिक्कतों के बीच पहले यह चर्चा सामने आई कि सियासी दलों के खातों में जमा हुए पुराने नोटों की जांच नहीं होगी। इस चर्चा भर से आम लोगों के बीच गुस्सा देखने को मिला। विवाद बढ़ने पर रेवेन्यू सेक्रेटरी हसमुख अढिया ने साफ किया था कि सियासी दल पुराने नोटों में डोनेशन नहीं ले सकते। गड़बड़ी मिली तो उनसे भी पूछताछ होगी।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, सियासी दलों को मिलने वाले 75% डोनेशन का सोर्स नहीं बताया जाता। 10 साल में सियासी दलों का डोनेशन 478% बढ़ गया है। 2004 के लोकसभा चुनाव में 38 पार्टियों ने 253.46 करोड़ रुपए डोनेशन जुटाया। 2014 में यह आंकड़ा 1463.63 करोड़ रुपए हो गया। पिछले 3 लोकसभा चुनावों में भी 44% डोनेशन कैश में ही मिला था